Wednesday, August 7, 2013

महाबलीपुरम के समुंद्र तट की मुठ्ठी भर रेत

अंबरीश कुमार करीब तेइस साल बाद उसी काटेज के आगे बैठा था जहां बैठकर सह जीवन की शुरुआत हुई थी । महाबलीपुरम में तमिलनाडु पर्यटन के इस रिसार्ट में बहुत ज्यादा फर्क नहीं आया है ।वैसा ही जंगलों में घूमते हुए जाने का अहसास इस बार भी हुआ जो पहली बार हुआ था ।सागर की लहरे जब पैर को भीगा कर लौटी तो मुठ्ठी भर रेत बटोर ली । कुछ सीपियाँ भी आ गई जिन्हें घर ले आया हूँ ।इस समुन्द्र ने तब इतना डरा दिया था कि कोई उम्मीद भी नहीं बची थी । वर्ष १९९० में विवाह के सिर्फ दो दिन बाद से ही दक्षिण में करीब पखवाड़े भर घूमने का कार्यक्रम था और सीधे चेन्नई (जो तब मद्रास था ) पहुंचे थे । सीधे गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट । देर से पहुंचे थे और बरसात थम नहीं रही थी ।जाना था महाबलीपुरम पर शोभाकांत जी और उनकी पत्नी ने इस बरसात में जाने की इजाजत नहीं दी ,कहा सुबह गाड़ी से भिजवा देंगे ।प्रदीप कुमार ने बताया कि बहुत बड़ा तूफ़ान आ रहा है इसलिए कार्यक्रम रद्द करे और यही रुके । तूफान कि भविष्यवाणी यह थी कि मद्रास शहर का बड़ा इलाका डूब सकता है । पर साथ में यह भी जानकारी दी कि इस तरह की भविष्यवाणी हर साल होती है पर मद्रास तो बच जाता है नेल्लोर में लोग तबाह हो जाते है । खैर प्रदीप ने चौथी मंजिल पर बना अपना कमरा खाली कर दिया और रात खाने के बाद हम लोग आँगन के रस्ते ऊपर चढ़े तो तूफ़ान का अहसास हुआ । तेज आंधी बरसात के चलते सीढी चढ़ते ही भीग चुके थे ।खैर कुछ देर बाद ही लाईट चली गई और आंधी के जोर से खिड़की के पल्ले खुल गए और बरसात से बिस्तर भी भीगने लगा । कुछ देर इन्तजार किया पर कभी एक खिडकी खुल जाती तो कभी दूसरी।और तेज हवा के साथ बरसात के थपेड़े बर्दाश्त से बाहर हो रहे थे ।रात के साढ़े बारह बज चुके थे और तूफ़ान की गति बढती जा रही थी ।अंतत तय हुआ यहाँ रुकना सुरक्षित नहीं है और फिरे नीचे उतरे तो तूफ़ान क्या होता है इसका अहसास हुआ । नीचे सभी लोग जगे ही हुए थे और फिर हाल में सोना हुआ ।सुबह भी मौसम वैसा ही था इसलिए दोपहर बाद जाने का कार्यक्रम बना और रिसार्ट के प्रबंधक को शाम तक पहुँचने की सूचना दे दी गई ।शोभाकांत जी ने वही फियट भेजी जो पहले जयप्रकाश नारायण के साथ थी । समुन्द्र के किनारे किनारे का रास्ता बरसात में देखते बनता था ।नारियल के घने जंगल हवा में लहराते नजर आ रहे थे ।तब तटीय इलाकों पर अतिक्रमण नहीं हुआ था इसलिए लगातार समुंद्र दिख रहा था और उंची लहरे भी । तमिलनाडु पर्यटन विभाग के रिसार्ट तक पहुँचते पहुंचे मौसम और खराब हो चुका था ।कैशुरिना के जंगलों के बीच से एक घुमावदार रास्ता रिसेप्शन के सामने खत्म हो जाता था जहाँ एक तरफ रेस्तरां था तो सामने श्रंखला में बने काटेज । मैनेजर हैरान था क्योकि अकेले हम ही ऐसे सैलानी थे जो आज पहुंचे थे बाकि सभी ने अपने कार्यक्रम तूफ़ान के चलते निरस्त कर दिए थे बहुत से कर्मचारी भी चले गए थे । मैनेजर ने हिदायत दी की अपने काटेज से बाहर बिलकुल ना जाए और समुन्द्र की और तो किसी कीमत पर नहीं । खाने का आर्डर अभी दे दे जो काटेज में सर्व कर दिया जाएगा । नाश्ता तो तब मिलेगा जब सुबह तक बच पाएंगे क्योकि तूफ़ान आधी रात के बाद महाबलीपुरम के तट तक पहुंचेगा । इस बात ने और डरा दिया ।तबतक कार भी जा चुकी थी और कोई चारा नहीं था ।खैर नीचे के काटेज में पहुंचे तो बेडरूम के सामने की दीवार कांच की थी और उसपर लगा पर्दा हटाते ही लगा मानो लहरें कमरे के भीतर तक आ जाएँगी । लगातार बरसात से ठंड बढ़ चुकी थी और पंखा चलाने की भी जरुरत नहीं थी ।आंध्र हो चुका था और कुछ मोमबती दी गई थी इस खौफनाक रात का मुकाबला करने के लिए जहां सामने सी आती उंची उंची लहरे डरा रही थी ।समुन्द्र के पास बहुत बार रुका हूँ पर इतनी उंची लहरे कभी नहीं । सामने पल्लव साम्राज्य के दौर का मशहूर तट मंदिर लहरों औए बरसात में बहुत रहस्मय सा नजर आ रहा था ।नारियल के पेड़ों के झुण्ड तक लहरा रहे थे और सामने कैशुरिना के जिन दो पेड़ों पर आराम करने वाला झूला पडा था वह हवा के झोंके से ऊपर नीचे हो रहा था ।चारो ओर से आ रही तूफानी हवा की आवाज और कमरे के बाहर तक आतीं लहरे । खाना खाते खाते रात के दस बज चुके थे और बैरे के मुताबिक करीब साढ़े बारह बजे तक तूफ़ान के इस तट पर आने की आशंका थी ।मन अशांत था और तब मोबाइल भी नहीं होते थे और फोन लाइन भी शाम को खराब हो गई थी । खैर कब नींद आई पता नहीं चला ,उठा तो कमरे में रौशनी थी हालाँकि सूरज नहीं निकला था ।चाय के लिए बैरे को बुलाया तो पता चला तूफ़ान लेट हो गया है अब दस बारह घंटे बाद आएगा ।बहुत समय था और कई विकल्प भी जिसमे पांडिचेरी की तरफ जाना भी क्योकि वहाँ अरविन्दों आश्रम में भी दो दिन बात काटेज बुक कराया हुआ था । दर भी काफी हद तक निकल चुका था और बरसात थमते ही तट पर आ गए पर लहरों से दूर ही थे ।आसपास घुमे और बरसात के माहौल का आनंद भी उठाया और दक्षिण भारतीय व्यंजनों का भी । कुछ घंटों बाद ही खबर मिली की संभावित तूफ़ान आन्ध्र प्रदेश के नेल्लोर की तरफ चला गया है और पांडिचेरी से लेकर मद्रास के समुन्द्र तट पर अब कोई खतरा नहीं था । इस खबर के बाद महाबलीपुरम के इस रिसार्ट में ही ठहरने का फैसला किया और फिर इस समुंद्र तट और लहरों दोनों से नया सम्बन्ध बना ।उस यादों को सहेजने के लिए ही मुठ्ठी भर रेत लेकर लौटा हूँ जो सविता को दिया शंख सीपियों के साथ रखने के लिए ।

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