Wednesday, April 10, 2013

इन सफ़ेद फूलों की सादगी

इन सफ़ेद फूलों की सादगी अंबरीश कुमार सुबह से बगीचे में हूँ । बगीचा अब अपने पास एक ही जगह है वह भी पहाड़ पर जो करीब दो नाली का है । जिसे गज में नापने चाहे तो पांच सौ वर्ग गज के बराबर होता है जिसमे दो कमरे का ड्यूप्लेक्स '' भी शामिल है । यह फल और फूलों से घिरा हुआ है । कल से इस बगीचे में कई बार टहल चूका हूँ । मौसम ठंढा है और अपने साथी राजू जैकेट शाल और टोपी में बंधे हुए है ।फूलों के पौधों पर तो कम फूल है पर फलों के पेड़ फूलों से लद गए है । सेब के पेड़ों पर सफ़ेद फूलों के गुच्चे भरे हुए है और स्थानीयभाषा में कहें तो फल की सेटिंग होने लगी है । इस साल हालैंड की विशेष प्रजाति के उन सेब पर भी फूल आ गए है जिन्हें पिछले साल अपन ने लगवाया था । इसे देख कर बहुत ख़ुशी हो रही है । बरसों पहले गाँव में दशहरी आम के साथ अमरुद और कटहल अदि का पेड़ लगाया था जिसका फल कभी नहीं खा पाया पर है बहुत फल आता है । पर अबकी अपना लगाया फल और वह भी सेब का सामने फूलों से लदा तैयार था । जब लगाया था तो इसे इसे अपने उन करीबी लोगों के नाम समर्पित किया था जो अचानक छोड़ कर चले गए । सबसे पहले मम्मी गई । उसके बाद बड़ा धक्का प्रभाष जी के जाने का लगा और अंत में साथी आलोक तोमर जो यही पर रुकते थे और इस बगीचे में सिर्फ सिगरेट पीने आते और देर तक सामने के देवदार को देखते । सेब का पेड़ आलोक को बहुत पसंद था । पिछले साल उनकी याद में एक निजी आयोजन किया था । अबकी एक प्रदर्शनी करना चाह रहा हूँ पर्यावरण को लेकर ।महादेवी सृजन पीठ में जो महादेवी जी का घर है । महादेवी वर्मा के इस घर के भी पिचहत्तर साल पूरे हो गए है । कुछ मित्र लोग आना चाहते है अपनी व्यवस्था के साथ जिनके साथ एक दो शाम गुजरेगी । चंचल एक पेंटिंग भेज रहे है जो फ़िलहाल अभी पहुंची नहीं है । सोनू ने सौ साल से करीब दो साल पीछे चल रहे रस्तोगी साहब और उनकी पत्नी की बहुत खुबसूरत फोटो थी जो कल शाम हम सब जब देने गए तो जर्मन टेक्नीकल विश्विद्यालय में हिंदी पढ़ाने वाली अंजना सिंह और उनके जर्मन छात्र छात्राए भी साथ थी । फिर रस्ते भर सेब के सफ़ेद फूलों के बीच से गुजरे । हालाँकि आम के बौर की तरह इनमे कोई मादक खुशबू नहीं होती ।पर सेब के फूल की सादगी आपका ध्यान जरुर खींचती है । जर्मनी की मारियों ने एक पक्षी के बारे में पूछा जिसकी आवाज लगातार आती रहती है और पहाड़ में गूंजती है । मैंने बताया यह पहाड़ की कोयल है जिसकी आवाज मैदान के कोयल से ज्यादा तेज होती है ।शाम तक बीन्स ,धनिया ,भिंडी और मूली के बीज क्यारियों में डलवाता रहा । सविता ने एक तुलसी ,दो पौधे कर्निएशन और एक आर्चिड भेजा था जो कुछ ही दिन में लखनऊ की गर्मी में झुलस जाता । इस सबको क्यारियों में लगवाने के बाद जिम्मेदारी से मुक्त था ।घोटू नाम की कुतिया जो करीब बारह साल से साथ थी उसे कुछ महीने पहले बाघ ले जा चूका था और अपना टाइगर उस सदमे के बाद से घर छोड़ रामगढ बाजार की पुलिस चौकी में रहने लगा है । बाजार में मिला तो कुछ देर साथ भी रहा ।अब परिवार के साथ जाने पर ही वह घर लौटेगा । मौसम ख़राब होने लगा है और हम लौटने की तैयारी कर रहे है ताकि बर्ष से पहले पहाड़ से नीचे उतर जाए ।

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