Saturday, May 4, 2013

विदर्भ में न बदल जाए बुंदेलखंड

विदर्भ में न बदल जाए बुंदेलखंड अंबरीश कुमार /हरिश्चंद हमीरपुर/झाँसी , मई ।बुंदेलखंड अब विदर्भ की तरह के पानी के संकट को न्योता देता नजर आ रहा रहा है । इसकी मुख्य वजह तालाब के बाद नदियों की दुर्दशा है । इसके लिए राजनैतिक दल जिम्मेदार है जो उन नेताओं और ठेकेदारों को प्राकृतिक संसाधनों को लूट की छूट दिए हुए है । नतीजा सामने है ।बुंदेलखंड में नदियां सूख रही है ।महोबा में ऐतिहासिक चंद्रावल नदी सूख गई है तो चंदेलकालीन तालाब का पानी तलहटी तक पहुँच चुका है । केंद्र सरकार ने चंदेलकालीन तालाबों में पानी लाने के लिए दो सौ करोड रुपए दिए पर कागज में तो पानी बहने लगा ताल तालाब और सूख गए । बेतवा ,पहुज ,केन ,उर्मिल ,बाणगंगा और धसान जैसी कई छोटी बड़ी नदियां संकट में है ।पहले तो छोटी नदियों का पानी गरमी में सूखता था पर अब बड़ी नदियों का पानी भी सूख रहा है । उरई में कोटरा ,सिकरी व्यास ,मोहाना ,गोडा सिमरिया जैसे बेतवा नदी के घाट पर डुबकी मारने लायक पानी मिलना मुश्किल हो रहा है । यह बानगी है बुंदेलखंड में पानी के आने वाले संकट की । पानी के लिए गांव गांव में विवाद शुरू हो चुका है । यह संकट गांव कस्बो से आगे बढ़ता हुआ जंगल तक पहुँच चुका है ।कुछ दिन पहले कुलपहाड़ में पानी तलाशती एक गर्भवती हिरणी को जंगल में कुत्तों ने मार डाला । जंगली जानवर भी पानी के संकट से जूझ रहे है । यह संकट और बढ़ने जा रहा है क्योकि पारा चढ़ते ही ताल तालाब और नदियों का पानी और घट जाएगा । बुंदेलखंड में बड़ी नदियों के किनारे रहने वाले कभी इस तरह का पानी का संकट नही झेलते थे जैसा हाल के कुछ सालों से झेल रहे है । इसकी एक वजह यह भी थी कि नदी के किनारे कैचमेंट एरिया में बरसात का पानी भर जाता था और वह आसपास की जमीन को भी नम रखता था । साथ ही पहाड और जंगल में पानी के स्रोत भी ताल तालाब और नदियों के जल स्तर को बनाए रखते थे ।पर्यावरण से खिलवाड की छूट मिलते ही सबसे पहले पेड़ काटे गए फिर पहाड खोदे गए और अब नदियों की तलहटी खोदी जा रही है ।जब तलहटी खोद दी जाएगी तो पानी ठहरेगा कहा । अवैध खुदाई करने वाले लोगों में ज्यादातर सांसद विधायक नेता और पूर्व सांसद विधायक है । इनका चरित्र भी सत्ता के साथ बदलता है ।मसलन सिंह ,पंडित ,ठाकुर ,बुधौलिया और गोस्वामी कंस्ट्रक्शन या ट्रांसपोर्ट के नाम वाले ट्रक दिखते थे अब यादव ट्रांसपोर्ट या कंस्ट्रक्शन ज्यादा दिखता है ।पर इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योकि यह सब मुखौटे है और धंधा करने वाला सिर्फ चोला बदलता है कमान उसके हाथ में होती है । एक एक नदी से पांच सौ हजार ट्रक बालू / मौरंग रोज निकालेंगे तो पानी कहा जाएगा यह अंदाजा लगाया जा सकता है । महोबा से निकलने वाली चंद्रावल नदी का नाम वहां की राजकुमारी के नाम पर है जिसे चंदेलों ने ग्यारहवीं सदी में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान से युद्ध कर छुडवाया था ।कहा जाता है कि यह युद्ध करहरा गांव के पास हुआ था और बाद में इस नदी का नाम चंद्रावल रखा गया ।यह नदी आसपास के गांवों के लिए वरदान थी । चंद्रावल नदी अब सूख चुकी है और उर्मिल बांध में भी पानी बहुत कम है । जबकि सोलह चंदेलकालीन तालाबों में पानी लाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पहल की है। तालाबों की भी बहुत दुर्दशा हुई है । मसलन चंदेलकालीन मदन सागर तालाब करीब साढ़े छह किलोमीटर का है पर उसका कैचमेंट एरिया बाईस किलोमीटर का है जिसका पानी इस तालाब में आता था । अब इस कैचमेंट एरिया में लोगों ने मकान बना लिए तो सरकार ने सड़क और पुल बनाकर पानी आने का रास्ता ही बंद कर दिया । पर्यावरण विशेषग्य केके जैन ने कहा -यही इस समस्या की जड़ है ठीक उसी तरह जैसे नदियों की तलहटी खोद कर उन्हें बांझ बनाया जा रहा है । सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो फिर विदर्भ जैसे हालत बुंदेलखंड में पैदा हो जाएंगे ।

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