Thursday, April 4, 2013

उतर प्रदेश में क्या समाजवादी कैडर में बदल गई है पुलिस !

अंबरीश कुमार लखनऊ: 4 अप्रैल । उत्तर प्रदेश में पुलिस क्या समाजवादी कैडर में बदल गई है ,यह सवाल विपक्ष का है । यही वजह है कि कानून व्यवस्था की बिगडती हालत को सुधारना मुश्किल होता जा रहा है । वैसे भी पुलिस के तठस्थ अफसरों का मानना है कि उतर प्रदेश में पिछले कुछ सालों में तीन तरह की पुलिस काम कर रही है जिसे समाजवादी पुलिस ,बहुजनी पुलिस और सामान्य पुलिस के रूप में जाना जाता रहा है । भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विधान सभा में कह चुके है कि बसपा के राज में पुलिस सत्तारूढ़ दल के काडर के रूप में काम करती रही है इसलिए जब एक दल की सरकार पर यह आरोप चस्पां हो सकता है तो फिर सत्ता बदलने पर दूसरा दल भी अगर पुलिस को काडर में बदल दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद बहुजनी पुलिस का शिकार हो चुके है इसलिए उनकी बात गलत भी नहीं है । पुलिस ने मायावती सरकार के समय जिस तरह उन्हें गिरफ्तार किया था वह लखनऊ के लोगों को याद है । वह एक घटना नहीं थी बल्कि कई घटनाएँ ऐसी हुई जिससे पुलिस का बर्बर चेहरा सामने आया था । चाहे विधान सभा पर छात्राओं को गिराकर बेदर्दी से पीटना हो या सपा के युवा नेता का सर बूट से कुचलना हो । अब फिर हालत बिगड़ रही है और विपक्ष फ़ौरन आंकड़े पेश कर बताने लगता है कानपूर के बाइस थानों के थानेदार यादव है तो गोंडा से लेकर गाजियाबाद तक में ज्यादातर थानों के थानेदार सत्तारूढ़ दल की बिरादरी के है । हालाँकि जाति से ही पुलिस का चरित्र बदल जाता हो यह बात गले नहीं उतरती । लखनऊ में एक महिला थानेदार है शिवा शुक्ल जो अपने कामकाज के नए कीर्तमान कायम कर रही है और पुलिसिया हथकंडों को लेकर उनकी शिकायत लखनऊ ही नहीं दिल्ली के आला अफसरों तक पहुँच चुकी है पर कोई बदलाव नहीं आया है । पर फिर भी विपक्ष के निशाने पर एक खास जाति के ही अफसर निशाने पर होते है । भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने आज इलाहाबाद जनपद में पुलिसकर्मियों के घर में घुस कर महिलाओं के साथ की गई बदसलूकी और कई महिलाओं को घायल करने की घटना को राज्य सरकार के माथे पर कलंक का निशान बताते हुए इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना की है । भाकपा ने इस घटना के सभी दोषियों को फौरन गिरफ्तार करने की मांग की है । पार्टी के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि प्रदेश में महिलाओं के साथ दुराचार,उनकी हत्याएं और उत्पीडन की वारदातें थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं । भाकपा का मानना है कि इसकी मुख्य वजह पुलिस-प्रशासन का राजनीतिकरण और उसका एकपक्षीय हो जाना है । प्रदेश सरकार ने ऊपर से नीचे तक हर स्तर पर बड़ी तादाद में एक ही पक्ष के लोगों को तैनाती की नीति अपना रखी है. दलित, कमजोर वर्गों तथा अन्य तबकों से आने वाले अधिकारियों-कर्मचारयों को पुलिस एवं प्रशासन की मुख्य धारा से अलग-थलग कर दिया है । डा गिरीश का इशारा सभी समझ सकते है और इसे समझने के लिए किसी खास योग्यता की जरुरत भी नहीं है । दूसरी तरफ भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक खुलकर कहते है कि जब एक जाति वाले पुलिस पर हावी हो जाएंगे तो संतुलन बिगड़ेगा ही । खुद मुख्यमंत्री अगर सभी जिलों के थानेदारों की सूची देख लें तो उन्हें यह असंतुलन नजर आ जाएगा । दरअसल समाजवादी पार्टी के पहले की सरकार और इस सरकार में काफी फर्क आया है और जिस तरह पिछली सरकारों में जातीय समीकरण का ध्यान रखा जाता था वैसा इस सर्कार खासकर अखिलेश यादव से अपेक्षित नहीं है । इसलिए हैरानी जरुर होती है । पार्टी वोट की राजनीति से चलती है इसलिए उसकी मज़बूरी सभी समझते है पर इसका संतुलन जब बिगड़ता है तो उस पार्टी को खामियाजा भी भुगतना पड़ता है जिसे अन्य जातियों का भी वोट चाहिए होता है । बसपा का सत्ता से बाहर जाना इसका उदाहरण जिसे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समझना चाहिए ।

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