Wednesday, June 12, 2013

नरेंद्र मोदी के लिए उत्तर प्रदेश में रास्ता आसान नही

अंबरीश कुमार लखनऊ ,१२ जून ।नरेंद्र मोदी और आडवाणी के विवाद के बाद सबकी नजर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश की तरफ है । उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है जहां नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है । आज जैसे ही नरेंद्र मोदी के सिपहसालार अमित शाह लखनऊ पहुंचे उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमा गई । भाजपा बम बम दिखी और पार्टी के एक धड़े का मानना है कि नरेंद्र मोदी के आने से भाजपा उत्तर प्रदेश में मुकाबले में आ सकती है हालाँकि पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ से लेकर अयोध्या के विनय कटियार तक जैसे नेता नरेंद्र मोदी का जयकारा लगाने वाले नहीं है । आडवाणी समर्थक खेमा मोदी के साथ नही आने वाला । भाजपा के एक नेता ने कहा -उत्तर प्रदेश में यह पार्टी फादर और गाड फादर के बीच झूल रही है और यहां लीडर कम चियर लीडर्स ज्यादा है । नेता तो भारी भारी पहले भी थे और बाहर से और भारी नेता आ रहे है पर कार्यकर्त्ता किन औजारों से प्रदेश के बड़े क्षत्रपों से लड़ेगा यह उन्हें नहीं पता है ।यह मायावती और मुलायम जैसे बड़े क्षत्रपों का प्रदेश है जो एक बड़े वोट बैंक के साथ खड़े है जिनसे अत्याधुनिक संचार साधनों से आप नहीं लड़ सकते ,यंहा सोशल मीडिया से चुनावी जंग नहीं जीती जा सकती जंहा ज्यादातर जिलों के गांवों में पन्द्रह घंटे बिजली ही नहीं रहती । इस बीच समाजवादी पार्टी ने साफ़ किया कि उत्तर प्रदेश में किसी मोदी की दाल नहीं गलने जा रही ।यहां सांप्रदायिक ताकतों की कलई खुल चुकी है और वह तीसरे चौथे नंबर की पार्टी है ।सांप्रदायिक ताकतों की पहले ही कलई खुल चुकी है और फिर से उन्हें मजबूत करना आसान नहीं है ।समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने आज यहां कहा कि सांप्रदायिकता के बल पर उत्तर प्रदेश में किसी के मंसूबे सफल नहीं होनेवाले हैं। प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है जो धर्मनिरपेक्षता से गहरे जुड़ी है। गुजरात में मुस्लिमों का कत्लेआम करनेवालों को प्रदेश की जनता जरा भी भाव देनेवाली नहीं है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा का सिर्फ आधार ही नही खिसका बल्कि शीर्ष नेताओं की कलह के चलते पार्टी संगठन का भठ्ठा बैठ बैठ चुका है ।पिछले विधान सभा चुनाव में पार्टी ने एक छोड़ सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारा था जिसमे अढतालीस उम्मीदवार जीते थे अगडी जातियों के तीस उम्मीदवार थे तो बारह पिछड़े और तीन दलित ।इससे इनकी सोशल इंजीनियरिंग को समझा जा सकता है । बाबूसिंह कुशवाहा के बावजूद इन्हें पिछडों की राजनीति में कोई खास फायदा नहीं हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय सीट रही लखनऊ में बड़ी मुश्किल से कलराज मिश्र की सीट के चलते इज्जत बची थी । पिछली लोकसभा में पार्टी की दस सीटें थी जिसे बहुत ज्यादा बढ़ाना आसान नहीं ।ऐसे में नरेंद्र मोदी भाजपा के लिए जनाधार बढा सके यह बहुत आसान नहीं दिखता । यहां भाजपा खेमों में बंटी है तो अंचलों में भी बंटी है ।पूर्वांचल में सिर्फ और सिर्फ योगी आदित्यनाथ है और वहां पहुँचते पहुँचते भाजपा हिंदू युवा वाहिनी में तब्दील हो जाती है जिसके सर्वेसर्वा योगी है । टिकट उनकी मर्जी से नहीं दिया गया तो उस उम्मीदवार की हार वे सुनश्चित कर देते है ।इसी तरह कुछ और नेता भी अपने गढ़ में किसी की चलने नहीं देते ।यह सब चुनौतियां नरेंद्र मोदी के सामने है तो उन्हें लेकर भाजपा को कुछ फायदा भी मिल सकता है । धार्मिक आधार पर जिस भी जगह गोलबंदी हुई वह मोदी के आने के बाद और तेज होगी यह तय है । ऎसी जगहों पर भाजपा को फायदा मिल जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए ।भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा -मोदी के आने से पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढा है और लोकसभा चुनाव में हमें बड़ा फायदा होने जा रहा है । वैसे भी अमित शाह ने आज कहा कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर ही जाता है ।साफ़ है उन्हें भी उत्तर प्रदेश से बहुत उम्मीद है । अमित शाह की इस टिपण्णी से नरेंद्र मोदी के मंसूबों को भी समझा जा सकता है । jansatta

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