Tuesday, July 10, 2012

कांग्रेस में बढ़ रहा है असंतोष

अंबरीश कुमार लखनऊ , जुलाई । उत्तर प्रदेश में कांग्रेस संकट के दौर से गुजर रही है । पार्टी आलाकमान के चलते संगठन में असंतोष बढ़ रहा है । सलमान खुर्शीद ने जो कहा और बाद में अपने कहे से पलट गए पर यह धारणा बहुत से कांग्रेसी नेताओं की है ।हालाँकि एक तबका यह मानता है कि यह खुर्शीद का खुद का संकट है जिनकी पत्नी बुरी तरह चुनाव हारी और खुद वे मुस्लिम आरक्षण के सवाल पर फंस गए । पर खुर्शीद प्रकरण से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बदहाली फिर सतह पर आ गई है । इसमे उनकी भूमिका भी कम नहीं है जो पहले प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके है । विधान सभा चुनाव की करारी हार के बावजूद शीर्ष नेतृव करीब चार महीने बाद भी प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर कोई फैसला नही हो सका है । राहुल गांधी प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य से गायब है और कांग्रेसी कार्यकर्त्ता निराश । वे राहुल गांधी जो विधान सभा चुनाव में जगह जगह कहते थे -मै हार जीत के लिए यह चुनाव नही लड़ रहा हूँ ।पार्टी हारे या जीते मै आपके बीच ही रहूँगा । विधान सभा चुनाव में तो कांग्रेस बुरी तरह हारी ही उसके बाद निकाय चुनाव में रही सही कसर पूरी हो गई । कांग्रेस के कुछ नेता अब लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में अपनी राजनैतिक संभावना तलाश रहे है । पार्टी ने अगर प्रदेश नेतृत्व के बारे में जल्द कोई फैसला नही किया तो मौजूदा हालात में कांग्रेस के लिए इस प्रदेश में आगे का रास्ता आसान नहीं होगा । खास बात यह है कि विधान सभा चुनाव में हार के खलनायक बने बडबोले नेताओं के बारे में भी कोई फैसला केंद्रीय नेतृत्व नहीं कर पाया । गोंडा के एक कांग्रेसी कार्यकर्त्ता कौशल मिश्र ने कहा -विधान सभा चुनाव में हमारे नेताओं ने बढ़ चढ़ के दावे किए थे और अपना गढ़ तक नही बचा पाए । लोहा मंत्री उदाहरण है जो सबसे ज्यादा बोल रहे थे और सोशल इंजीनियरिंग के झंडाबरदार बने हुए थे पर किसी ने उनसे एक बार नहीं पूछा कि उनकी भी कोई जवाबदेही थी या नहीं। यह एक उदाहरण है अमेठी ,रायबरेली से लेकर बलिया तक कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया एक जैसी मिलेगी । जो पार्टी में बढ़ते असंतोष की झलक दे रही है । ज्यादातर संगठन की खस्ता हालत के लिए पार्टी के प्रदेश नेतृव को जिम्मेदार मानते है और यह भी मानते है कि राहुल गांधी की वजह से ही ऐसा नेतृत्व मिला । कमजोर प्रदेश नेतृत्व के चलते ही कांग्रेस विधान सभा चुनाव में पहले दौर में ही पिछड़ चुकी थी पर मीडिया के चलते वह मुकाबले में दिखाई जा रही थी । जाहिर है पार्टी की हार तय थी पर इसे नेतृत्व समझ नहीं पा रहा था ।पर हार के बाद भी कोई ठोस पहल नही हुई ।प्रदेश कांग्रेस के पूर्व मुख्य प्रवक्ता सुबोध श्रीवास्तव ने कहा - पार्टी संगठन अनिर्णय की स्थिति से गुजर रहा है जिसका असर कार्यकर्ताओं पर पड़ना स्वभाविक है । प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी से इस्तीफा लिया जा चुका है फिर भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हुई और निकाय चुनाव पुरानी कमेटी के नेतृत्व में लड़ा गया ।साफ़ है जब बदलाव होना हो तो जाने वाला नेतृत्व बहुत प्रतिबद्ध होकर काम नहीं कर सकता । फिर टिकट वितरण की जिम्मेदारी हरे हुए नेताओं पर ज्यादा रही और नतीजा सामने है । केंद्रीय नेतृत्व को जल्द से जल्द पार्टी संगठन की और ध्यान देना चाहिए । कंग्रेस प्रवक्ता वीरेंद्र मदान ने कहा -पार्टी कार्यकर्त्ता संगठन में बदलाव का इंतजार कर रहा है जो केंद्रीय नेतृत्व को करना है । इसमे देरी से कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ना स्वभाविक है ।खास बात यह है कि कांग्रेस के संकट के लिए राहुल गाँधी और उनकी टीम भी कम जिम्मेदार नही मानी जाती है ।राहुल गाँधी अगर चुनाव के बाद पार्टी संगठन पर ध्यान देते और अपनी मौजूदगी बनाए रखते तो इतनी ख़राब हालत नहीं होती ।समाजवादी पार्टी को जिस तरह अखिलेश यादव ने सत्ता में पहुँचाया वह और किसी के लिए न हो पर राहुल गांधी के लिए उदाहरण है ।jansatta

1 comment:

  1. अमेबरीष जी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नाराज़गी तो समझ में आती है, पर क्या आपने इनसे पूछा है कि विकल्प क्या है? क्या किया जाए कि कांग्रेस में प्राण आएं? क्या राहुल विकल्प हैं? क्या कांग्रेस में अब नेता नहीं हैं? क्या कोई नीतिगत दोष है?

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