Tuesday, July 10, 2012

पत्रकारों के उत्पीडन पर दखल दे सरकार -पत्रकार संगठनों ने कहा

लखनऊ , जुलाई । वेब पोर्टल एसोसिशन ने आज उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीडन पर चिंता जताते हुए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है । ताजा उदहारण जालौन में दर्जन भर पत्रकारों पर झूठा मुकदमा दर्ज किया जाना है । इससे पहले नोयडा में भड़ास पोर्टल के संचालक यशवंत को गिरफ्तार कर जेल भेजे जाने का मामला भी सामने है । जालौन के पत्रकारों के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज किए जाने के खिलाफ इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के अध्यक्ष के विक्रम राव ने जालौन की कलेक्टर से बात की तो उन्होंने फ़ौरन इस मामले में कार्यवाई करने का भरोसा दिया । यह भी कहा कि पत्रकारों को न्याय दिलाया जाएगा । खास बात यह है कि जालौन के पत्रकार बलात्कार की पीड़ित एक महिला के साथ खड़े हुय्र थे और पुलिस बलात्कार के अभियुक्त के साथ । विक्रम राव ने जनसत्ता से कहा - कलेक्टर ने भरोसा दिया है की जल्द से जल्द इस मामले में पत्रकारों को रहत दी जाएगी । दूसरी तरफ वेब पोर्टल एसोसिशन (डब्लूपीए ) के सचिव संजय शर्मा ने भड़ास पोर्टल के संचालक के मामले में उच्च स्तरीय जाँच की मांग की ताकि उन्हें न्याय मिल सके । ऊन्होने कहा कि जिस तरह यशवंत सिंह को भारी भारी धाराओं में फंसकर जेल भेजा गया है उससे साजिश की आशंका से इंकार नही किया जा सकता । यह प्रवृति नहीं रुकी तो पोर्टल संचालकों को आगे भी फंसाया जाएगा इसलिए सरकार इस मामले में जाँच कराकर स्थिति साफ़ करे । संगठन के अध्यक्ष पवन सिंह ने कहा -हम इंसाफ चाहते है और किसी के भी निजी जीवन में दखल के खिलाफ है । मीडिया को खासकर न्यू मीडिया को भी अपनी सीमा पहचाननी होगी और अराजकता से बचना होगा तभी किसी मुद्दे पर लोग साथ खड़े होंगे वर्ना हाशिए पर चले जाएंगे ।यह मीडिया जिस तरह बिना जाँच पड़ताल के किसी के भी बारे में कुछ भी प्रकाशित कर देता है उससे इसकी साख भी गिरी है ,इसे समझना चाहिए । आज इसी वजह से न्यू मीडिया को जन समर्थन नहीं मिल पाता है । बेहतर हो इस घटना से सबक लेकर नए सिरे से लोगों को एकजुट किया जाय । हस्तक्षेप पोर्टल के अमलेंदु उपाध्याय ने कहा - कारपोरेट मीडिया और सरकार मिलकर जिस तरह से न्यू मीडिया पर हमला कर रहे हैं उस खतरे को पहचानने की आवश्यकता है, इसलिए तमाम असहमतियों के बावजूद हम गिरफ्तार साथी के साथ है । न्यू मीडिया ज्यादा आजाद है और इसके जरिए कुछ देर में ही वे खबरे भी बाहर आ जाती है जो परम्परागत मीडिया में कम आ पाती है और उनपर देशभर में बहस भी शुरू हो जाती है । इसी वजह से यह मीडिया आँखों की किरकिरी भी बन रहा है । संकट के इस मौके पर पत्रकार संगठनों को मदद के लिए आगे आना चाहिए । जनसत्ता

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