Wednesday, July 18, 2012

जाना एक सुपर स्टार का

अंबरीश कुमार
साठ के अंतिम दौर से लेकर सत्तर के दशक का बड़ा हिस्सा सुपर स्टार राजेश खन्ना का का रहा । वह राजेश खन्ना जिसने उस दौर की नौजवान पीढी को दीवाना बना दिया और बताया जीवन में रोमांस क्या होता है । बचपन में दिल्ली के गोलचा में पापा मम्मी के साथ राजेश खन्ना की पहली फिल्म आखिरी ख़त देखी तो कई दिन तक विचलित रहा । फिर स्कूल से भागकर जितनी फिल्मे देखी उनमे राजेश खन्ना की फिल्मे सबसे ज्यादा थी । वह राजेश खन्ना का गजब का दौर था जब बालों से लेकर कपड़ों तक की नक़ल होती थी । पहले के नायक खो रहे थे और नए नायक का उदय हो रहा था । हमने तो देखा है वह दौर वह दीवानापन । आजादी के बाद फिल्म इंडस्ट्री पर हर दौर की राजनीति का असर पड़ा और उसी के हिसाब से नायक भ खड़े हुए । राजकपूर ,देवानद और दिलीप कुमार उस दौर के नायक रहे । नए बनते हुए देश और नए समाज की कहानिया आई और ये नायक छा गए थे । रोमांटिसिज्म का एक दौर था । कालेज और विश्विद्यालयों में भी एक अलग दौर था । पर चीन और पाकिस्तान के युद्ध के बाद से राजनैतिक हालात बदलने लगे थे । यथार्थ की राजनीति रोमांस के उस दौर पर भारी पड़ने लगी थी । सत्तर के दशक में ही समूचे विश्व में युवा आक्रोश उभरने लगा था । रोटी ,शिक्षा और रोजगार का सवाल उठने लगा था । राजेश खन्ना इसके पहले सुपर स्टार के यूप में स्थापित हो चुके थे । पर जो यूवा आक्रोश समूचे विश्व में उभरा उसका असर देश पर भी पड़ा । नक्सलबाड़ी से निकली चिंगारी बिहार के खेत और खलिहानों से बढती हुई देश के अन्य हिस्सों में फैलने लगी । इसी दौर में गुजरात के छात्रों ने जो आन्दोलन छेड़ा वह चौहत्तर आन्दोलन में बदला । कांग्रेस के कोटा परमिट से लेकर भ्रष्टाचार का मुद्दा नई पीढी को बेचैन कर चुका था । इसी दौर में अमिताभ बच्चन का उदय होता है जो युवा आक्रोश का प्रतीक बन जाता है । फिल्म दीवार में अमिताभ बच्चन जब कुली की भूमिका में पहली बार भिड़ते है गुंडों से तो वह पूरी भाव भंगिमा और आक्रोश नौजवानों को एक नए प्रतीक के रूप में दिखता है । बाद की फिल्मे खासकर अमिताभ को व्यवस्था से एक नाराज एक नौजवान के रूप में पेश करती है । यही से रोमांस के उस दौर पर युवा आक्रोश भारी पड़ने लगता है और राजेश खन्ना शिखर से नीचे उतरने लगते है । सुपर स्टार पर महानायक निजी और फिल्म दोनों जगह हावी होने लगता है । राजेश खन्ना उस दौर और उस माहौल को समझने में चूक जाते है और अपनी रोमांटिक छवि को बार बार आजमाते है । उनके अन्दर का सुपर स्टार किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं होता । यह समस्या देव आनंद के साथ भी आई पर वे शराब में न डूबे और न संघर्ष से पीछे हटे । राजेश खन्ना से अपना भी परिचय रहा और उनका प्रशंसक था और रहूँगा । पर जब भी मिला एक दर्द महसूस हुआ । जो फिल्म इंडस्ट्री का बादशाह था उससे लोगों ने बाद में किनारा कर लिया । जिन्हें आगे बढाया वे भी साथ छोड़ गए । डिम्पल का साथ भी छूटा । एक के बाद एक बड़े झटको ने राजेश खन्ना को तोड़ दिया और उन्हें यह लगा की शराब साथ दे रही है । राजनीति का भी अजीब खेल है । कांग्रेस में सुपर स्टार से लेकर महानायक दोनों को दांव दिया पर अमिताभ परिवार के साथ थे और परिवार उनके साथ बाहर से भी हमेशा खड़ा दिखा पर राजेश खन्ना के साथ सिर्फ उनके चंद यार बचे थे। कई मित्रों के जाने का बहुत दुःख होता है पर इनमे कई ने तो जल्दी जाने का इंतजाम भी किया था । राजेश खन्ना भी उसी रास्ते पर गए । जीवन जीने की अराजकता भी कई बार भारी पड़ती है । पर राजेश खन्ना बहुत कुछ देकर भी गए है । यह सुनकर संतोष हुआ कि अंतिम साँस राजेश खन्ना ने डिम्पल का हाथ पकड़ कर ली ।

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