Thursday, July 19, 2012

पर आसान नहीं है राहुल गाँधी का आगे का रास्ता

अंबरीश कुमार लखनऊ ,१९
जुलाई । कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी सँभालने जा रहे राहुल गाँधी के लिए देश से लेकर प्रदेश तक आगे का रास्ता बहुत आसान नही है ।उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद उनकी लंबे समय तक दूरी पार्टी कार्यकर्ताओं को और खली । प्रदेश में चुनाव के दौरान दो नौजवान प्रचार में जुटे थे और तब कहा जा रहा था ' एक नौजवान गुस्से में घूम रहा है तो दूसरा मुस्कराता हुआ ।' साफ़ तौर पर यह इशारा राहुल गाँधी कि तरफ था जो बहुत कमजोर पार्टी संगठन और लचर किस्म के प्रदेश नेतृत्व के साथ बहुजन समाज पार्टी से लड़ने का दिखावा कर रहे थे पर लड़ रहे थे समाजवादी पार्टी से । दूसरी तरफ पार्टी के नेता सब जगह यह प्रचार करने में जुटे थे कि बिना कांग्रेस के समर्थन के कोई सरकार प्रदेश में नहीं बन सकती ।यानी कांग्रेस पहले से यह मान कर चल रही थी कि वह अपनी ताकत पर सत्ता में नही आने वाली है ।जबकि भाजपा के नेताओं ने चुनाव के पहले दौर के बाद ही यह कहना शुरू कर दिया कि त्रिशंकू विधान सभा आने वाली है ।ऐसे में समाजवादी पार्टी जो पूर्ण बहुमत के लिए लड़ रही थी उसे बहुमत मिला और रणनीतिक गलती के बाद कांग्रेस और भाजपा बुरी तरह हारी । राहुल गाँधी ने उत्तर प्रदेश कीं जनता खासकर दलितों ,मुसलमानों और किसानो को लगातार यह सन्देश देने का प्रयास किया कि कांग्रेस उनके साथ है ।इसके लिए वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल के किसानो के बीच गए भी । दलितों के घर रुके और उनके हाथ का बना खाना भी खाया ,हैंडपंप के पानी से नहाया भी ।आजादी के बाद इस तरह गांधी परिवार का कोई नेता गांव तक नहीं पहुंचा । पर उनका यह सब करना एक राजनैतिक सन्देश ही बनकर रह गया । राहुल गाँधी की प्रतिबद्धता और सदाशयता पर किसी को कोई शक नहीं था।वाराणसी में चुनाव के दौरान जब वे दलितों के साथ खाना खा रहे थे तो एक दलित बुजुर्ग ने आंसू पोछते हुए कहा था -कभी सोचा नहीं था इंदिरा जी का पोता हमारे साथ बैठकर खाना खाएगा । इससे उनके असर का अंदाजा लगाया जा सकता है । पर उनके पास वह संगठन नहीं था जो यह भरोसा दिलाता कि कांग्रेस सत्ता में आएगी ।दूसरे वे उत्तर प्रदेश सँभालने को तैयार भी नहीं थे । यह पार्टी के रणनीतिकारों की दूसरी बड़ी भूल थी । अत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले प्रोफ़ेसर प्रमोद कुमार ने कहा -अगर कांग्रेस राहुल गाँधी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर मैदान में उतारती तो कमजोर संगठन के बावजूद राहुल गांधी को बहुमत मिल सकता था । इसके बाद वे केंद्र की राजनीति में जाते तो रास्ता आसान होता । अब प्रदेश का चुनाव हरने के बाद इंदिरा नेहरु परिवार का करिश्मा टूटता नजर आ रहा है ।तीन पीढ़ियों बाद वैसे भी कोई डाइनेस्टी नही चल पाती।' पर राजनीति में भविष्यवाणी आसान नहीं होती इसलिए गांधी परिवार को पूरी तरह ख़ारिज कर देना ठीक नहीं लगता । लेकिन राहुल गाँधी की आगे की राजनीति पर उत्तर प्रदेश हावी रहेगा यह भी सच है । लोकसभा चुनाव में फिर उन्हें दूसरी परीक्षा देनी होगी । वे पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जा सकते है पर इसके बावजूद उत्तर प्रदेश उनका घर ही माना जाएगा ।इसलिए बड़े चुनाव यानी लोकसभा चुनाव में उन्हें काफी परिश्रम करना पड़ेगा ।अखिलेश यादव सरकार जो बेरोजगारी भत्ता ,टैबलेट और लैपटाप के नारे के साथ विधान सभा चुनाव में बहुमत लेकर आई है वह इस रणनीति को फिर लोकसभा में दोहरा कर अपनी लोकसभा सीटों को काफी ज्यादा बढा सकती है । हालाँकि विधान सभा जैसा प्रदर्शन सपा कर पाएगी यह नहीं लगता और तब कुछ और समय बीत चूका होगा । फिर भी सपा पूरी तैयारी में जुट रही है । पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -लोकसभा में सपा अपनी पूरी ताकत दिखाएगी और किसी पार्टी से तालमेल का सवाल भी नहीं है । पार्टी के इस रुख से साफ़ है कि कांग्रेस को इस चुनाव में कोई बैसाखी भी नही मिलनी ।इस सबको देखते हुए राहुल गाँधी ने अगर उत्तर प्रदेश में पार्टी संगठन में जान नहीं फूंकी तो उनका देश का रास्ता भी आसान नहीं होगा ।

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