Sunday, July 29, 2012

बुंदेलखंड पर मंडराता हरा भरा अकाल

अंबरीश कुमार
सपरार बांध (मऊँरानीपुर ) ,२९ जुलाई । उरई से ओरछा होते हुए बुंदेलखंड के इस अंचल में पहुँचने पर चारो और हरियाली ही हरियाली नजर आती है । पर दुर्भाग्य यह है कि इस हरियाली पर अकाल की छाया मंडरा रही है । पानी तो बरस भी रहा है पर जितना पानी चाहिए उतना नहीं बरसा है । जिसके चलते किसान परेशान है तो सीमांत किसान और मजदूर पलायन कर रहा है । छोटे पहाड़ों के बीच से आती और मनोरम दृश्य दिखाती सपरार नदी पर बना यह बांध पानी के संकट को दर्शाता है । इस बांध का जलस्तर २२४ मीटर की जगह २१६ मीटर है पर आकड़ों का खेल है । बांध में पानी का जल स्तर समुन्द्र तल से नापा जाता है जो देखने में कही ज्यादा नजर आता है जबकि मौके पर यह बहुत कम दिखता है । इसी तरह इस अंचल के अन्य बांध मसलन माताटीला ,सुंक्वा ढुकवा बांध ,लहचूरा बांध ,पथराई बांध से लेकर बधवार झील तक में इस मौसम में पानी अपने स्तर से काफी कम है । ओरछा में भी बेतवा का वह प्रवाह बही दिखता जो इस मौसम में होना चाहिए । पानी के चलते जालौन ,हमीरपुर और महोबा में ज्यादा संकट है और किसानो की फसल ख़त्म होती जा रही है । झांसी ,ललितपुर ,छतरपुर और टीकमगढ़ में स्थिति कुछ बेहतर है इसलिए यहाँ पर इन तीन जिकों जैसा संकट नहीं है । फिर भी झांसी के आसपास मूंगफली की पंद्रह फीसद फसल ख़त्म हो चुकी है तो तिल की फसल तीस फीसद से ज्यादा बर्बाद हो चुकी है । पानी के इस संकट की एक वजह बुंदेलखंड के करीब हजार साल पुराने आठ हजार ताल तालाब का बर्बाद होना भी है । इस अंचल के ताल तालाब खुद तो बदहाल हो रहे है पर इनके नाम पर नेता ,अफसर और ठेकेदार मालामाल भी हो रहे है । यह बात आज मऊँरानीपुर में नए बुंदेलखंड के विमर्श पर उभर कर सामने आई । इस विमर्श में बुंदेलखंड के तेरह जिलों से रखी गई अध्ययन रपट में इस अंचल की जो त्रासदी सामने आई वह सभी के लिए आँख खोलने वाली है । जब यह बताया गया कि चंदेल कालीन ताल तालाबों के लिए पिछले पांच साल में बारह सौ करोड़ खर्च किए गए और तालाब वैसे ही है तो केंद्रीय मंत्री प्रदीप ने इसकी जाँच करने को भी कहा । खास बात यह है की इस क्षेत्र की विधायक रश्मि आर्य खुद एक बड़े तालाब वाजपेयी ताल को बचाने की लड़ाई लड़ रही है ।तीस एकड़ में फैला यह तालाब मऊँरानीपुर के जल स्तर को बचाने में महत्यपूर्ण भूमिका निभाता रहा है । ताल तालाब कैसे बचाए जाए इसके लिए बृज फाउंडेशन की तरफ से विनीत नारायण ने एक वीडियो प्रस्तुति भी की जिसमे बृज क्षेत्र में किस तरह बड़े पैमाने पर ताल ,तालाब और कुंड बचाए गए है यह बताया गया ।प्रवास सोसायटी ,वीर बुंदेलखंड समाजोत्थान संस्थान ,परमार्थ समाजसेवी संस्थान और एकेडमी आफ जर्नलिस्ट की तरफ से कराए गए इस विमर्श में विशेषग्य और जन संगठनों ने हिस्सा लिया ।उरई से सुनील शर्मा की रपट में कालपी के वाल्मीकि आश्रम तालाब पर प्रकाश डाला गया जो आठ एकड़ में फैला है और सदियों से लोगो की प्यास बुझाता रहा है । इसी तालाब के चलते बारह गांवों के हैंडपंप रिचार्ज होते रहे है ।पर अब यह बदहाल है जिसे जल्द न बचाया गया तो यह ऐतिहासिक ताल भी अपना वजूद खो देगा । महोबा से आई रपट में बताया गया कि पिछले पांच सालों में चंदेल कालीन तालाबों के लिए बारह सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए पर इन तालाब पर कोई असर नहीं पड़ा क्योकि सब कुछ कागजों में हुआ । पिछले कुछ सालों में बुंदेलखंड के नाम पर किस तरह लूट हुई इसका यह महत्वपूर्ण उदाहरण है। धीरज चतुर्वेदी की रपट में कहा गया कि विध्यं की सुरमय पर्वत श्रृखंलाओ से घिरे हुए इस भूभाग के सौंदर्यीकरण के लिए राजाओ ने यहां एक विशाल झील का निर्माण किया था। जिसे विलंवत डांग नाम दिया गया। जिसके किनारे असंख्य खजूर के वृक्ष थे जिससे इसका नाम खजूरवाहक या खजुराहो पडा। कांलातर पूर्व की विशाल झील छोटे-छोटे जलाशयो के रूप में आज भी दिखाई देती है। जिसके किनारे कई गांव बस गये। खजराहो में आज भी दो महत्वपूर्ण जलाशय है। खजुराहो गांव से लगा हुआ निनौरा ताल पुरानी बस्ती के नजदीक है एंव दूसरा शिवसागर ताल जो मंदिरो के पश्चिमी समूह से लगा हुआ है। इन दोनो तालाबो का पुर्ननिर्माण लगभग 160 से 200 वर्ष पूर्व के बीच हुआ था। यहाँ का ननौरा तालाब तीन दशक पूर्व तक खजुराहो की शोभा कहलाता था। जिसके लगभग 80 एकड के क्षेत्र में पानी का भराव होता था। लेकिन आज यह दुर्दशा का शिकार है। बंधान से अनवरत रिसाव होने से बारिश के कुछ माह बाद ही यह तालाब सूख जाता है। शिवसागर तालाब- मुख्य मार्ग पर पश्चिमी समूह के मंदिर के बाजू में ऐतिहासिक शिवसागर तालाब स्थित है। पर ज्यादातर तालाब बदहाल है जिन्हें बचाना बहुत जरुरी है । जबकि बांदा से आये आशीष सागर ने कहा - जल संसाधन और प्रबंधन के कारण ही बांदा जैसे पिछड़े बुन्देलखण्डी क्षेत्र वर्ष 1887 से 2009 तक 17 सूखे झेलने के बाद भी विषम जलवायु परिवर्तन के झंझावत सहने में सक्षम हुए है। पुरातन तालाब पद्धति, जल संग्रहण तकनीकि और उनमें लगी मानवीय श्रमशक्ति का बदलते विकास के परिदृश्य में बिखराव प्राचीन प्राकृतिक संसाधनो को नष्ट करने की प्रवृत्ति को रेखांकित करता है। जिनके संरक्षण की आवश्यकता है । बांदा की भौगोलिक ऊबड़-खाबड़ जमीन, धरातलीय बसावट है। भूगर्भ जल रिचार्ज करने, जल संरक्षण के लिये चलायी जा रही लोकशाही योजनायें विफल रही है। बुन्देलखण्ड विकास निधि, बुन्देलखण्ड पैकेज, मनरेगा, कूप योजना के तहत करोड़ो रूपयो की बंधियां , मेडबन्दी, माडल तालाब-बांध बनाये गए लेकिन फिर भी वह सब अपने किरदार के साथ ईमानदार सिद्ध नहीं हुए ।सतही जल के रूप में पराम्परागत जल स्रोतो के स्वरूप तालाब, कुएं, पोखर, जलाशय, चोहडधीरे-धीरे इतिहास बनते जा रहें है। प्राचीन प्रसिद्ध तालाबों में शामिल गणेश बाग, कोठी तालाब, गोल तालाब , दुर्गा साहब तालाब तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बिखरे 687 तालाब जर्जर अवस्था में आज भी उपस्थित है।

No comments:

Post a Comment