Sunday, July 15, 2012

प्रयोगधर्मी पत्रकार थे प्रभाष जोशी -अखिलेश यादव

लखनऊ ,जुलाई । हिंदी पत्रकारिता के शीर्ष पुरुष प्रभाष जोशी के ७५ वें जन्म दिन पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश य
,भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र ,वामपंथी नेता अखिलेन्द्र प्रताप सिंह समेत कई जन संगठनों और बुद्धिजीवियों ने उन्हें याद किया । जन संगठनो ने कहा कि लोकतंत्र की देशज चेतना पर प्रभाष जोशी की अद्भुत पकड़ थी जिसकी छाप उनके लेखन में दिखी और उसने हिन्दी पट्टी की राजनीति को प्रभावित किया था । समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज यहाँ कहा कि हिन्दी पत्रकारिता में प्रभाष जी एक अलग नाम है। अपने अंदाज, भाषा और तेवर के साथ उन्होंने कई दशकों तक अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई थी। तमाम पाठक उनको पढ़ने के लिए बेचेैन रहते थे तो ऐसे भी कम नहीं थे जिन्हें उनकी हर बात की आलोचना करने में रस आता था। आज वे जिंदा होते तो उनका 75 वां जन्म दिवस मनाया जा रहा होता। लेकिन क्रूर काल ने तीन साल पहले हमसे वह अवसर ही छीन लिया।उन्होंने कहा कि प्रभाष जोशी एक प्रयोगधर्मी पत्रकार थे। उन्होंने ‘‘जनसत्ता’’ को एक नया भाषा-संस्कार नए तेवर के साथ दिया। उन्होंने बाजारवाद और सांम्प्रदायिकता के खिलाफ खूब लिखा। धर्म निरपेक्षता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता बेमिसाल थी। उन्होंने कभी बड़ंे से बडे़ नेता का भी लिहाज नहीं किया। आपात काल के विरोध में उन्होंने कोई डर नहीं महसूस किया। इधर समाचार पत्रों में ‘‘पेड न्यूज’’ की बढ़त से वे बहुत चिंतित थे और लगातार अपने लेखन और वक्तव्यों में वे इसका विरोध कर रहे थे। जोशी अपनी बात पर अडिग रहने वाले इंसान थे। ‘कांगद कोरे’ उनका स्तम्भ था, जिसमें बेबाक ढंग से वे अपने जीवन प्रसंगों की भी चर्चा करते थे। समसामयिक घटनाचक्र पर पैनी निगाह रखते थे। खेल की खबर को पहले पेज पर भी महत्व देने की उन्होंने नई परम्परा बनाई थी। वैश्वीकरण के गुण दोष पर कितने ही सटीक आलेख उन्होंने लिखे। पत्रकारों की स्वतन्त्रता के वे सच्चे हिमायती थे। उनकी स्मृति को मेरा शतषः नमन।वरिष्ठ वामपंथी नेता अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा -सामाजिक सरोकार के जितने भी प्रश्न थे प्रभाष जोशी ने उसमे हस्तक्षेप किया और वे बदलाव की राजनीति में सक्रिय ढंग से दखल देने वाले थे पर असमय जाने की वजह से यह संभव नही हुआ । वे जन पक्षधर पत्रकारिता के सबसे बड़े पैरोकार थे । भाजपा नेता कलराज मिश्र ने कहा -हिन्दी पत्रकारिता को प्रभाष जोशी ने एक नई दिशा दी ,नई भाषा दी और देशज शब्दों के जरिए उसे लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचाया । आज प्रभाष जोशी की पत्रकारिता कि ज्यादा जरुरत समाज को महसूस होती है । पत्रकारिता की नई पीढ़ी के लिए प्रभाष जोशी एक आदर्श है । संघर्ष वाहिनी मंच के अध्यक्ष राजीव हेम केशव ने कहा -लोकतंत्र कि देशज चेतना पर प्रभाष जोशी की जबदस्त पकड़ थी जिसकी छाप उनके लेखन में दिखती रही और उनके लेखन ने हिंदी पट्टी की राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया । इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के अध्यक्ष के विक्रम राव ने कहा -प्रभाष जोशी ने पत्रकारिता को एक नई पहचान दी और हिंदी भाषा को नया आवरण दिया । पराडकर के बाद हिंदी पत्रकारिता में बहुत कम संपादक हुए जिन्होंने नए शब्द गढे और नए मुहावरे दिए । प्रभाष जोशी कि कलम धारदार रही तो शैली में रवानगी । नए दौर के पत्रकार प्रभाष जोशी को पढकर बहुत कुछ सीख सकते है । वेब पोर्टल एसोसिएशन ने मौजूदा हालत में एक और प्रभाष जोशी की जरुरत बताई जो समाज को नई दिशा दे सके । पचहत्तर के प्रभाष जोशी प्रभाष जोशी पर अपने अख़बार जनसत्ता के वरिष्ठ सहयोगियों का लिखा पढ़ा और फिर पुरानी यादों में खो गया।यकीन नही होता उन्हें गए तीन साल नवम्बर में हो जाएंगे।लिखने का कोई बहुत मन नहीं था पढना ज्यादा चाहता था ,पर कुछ मित्रों कहा तो लिखने बैठा ।प्रभाष जी से अपनी अंतिम मुलाकात इसी लखनऊ में उनके निधन से ठीक एक दिन पहले तब हुई जब वे तबियत ख़राब है यह सुनकर एक्सप्रेस दफ्तर में मिलने आए । तबियत तो ज्यादा ख़राब नहीं थी प्रभाष जी से कुछ नाराजगी थी एक सज्जन को लेकर जिनका नाम लिखना ठीक नहीं ।इसलिए जब वे एक कार्यक्रम में (जो अंतिम कार्यक्रम साबित हुआ ) यहाँ आए तो तारा पाटकर से मैंने कहा -कार्यक्रम में प्रभाष जी पूछे तो टाल देना कहना तबियत ख़राब थी इसलिए नहीं आ पाए । बाद में दफ्तर पहुंचा तो तारा पाटकर का फोन आया और सीधे बोले प्रभाष जी बात करना चाहते है । उधर से प्रभाष जी की रोबदार आवाज गूजी -क्यों पंडित ,क्या हुआ यहाँ आए नही । मैंने वही बहाना दोहरा दिया और कहा -भाई साहब ,कुछ तबियत गड़बड़ थी ।प्रभाष जी ने फिर कहा -ठीक है पंडित ,अपन देखने आते है ।

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