Friday, September 28, 2012

मालिक तो खूब ही कमात है, पत्रकार भाई खाली हाथ है!

मालिक तो खूब ही कमात है, पत्रकार भाई खाली हाथ है! 31 JULY 2010 5 COMMENTS अंबरीश कुमार श्रमजीवी पत्रकारों के वेतनमान को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए वेज बोर्ड की दिल्ली में मंगलवार को हुई बैठक में जनसत्ता के पत्रकार अंबरीश कुमार ने देश भर के पत्रकारों की सामाजिक आर्थिक सुरक्षा का सवाल उठाया और बोर्ड ने इस सिलसिले ठोस कदम उठाने का संकेत भी दिया है : मॉडरेटर देश के विभिन्न हिस्सों में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लड़ने वाले पत्रकारों का जीवन संकट में है। चाहे कश्मीर हो या फिर उत्तर पूर्व या फिर आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश। सभी जगह पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ समय में आधा दर्जन पत्रकार मारे जा चुके हैं। इनमें ज्यादातर जिलों के पत्रकार हैं। खास बात यह है कि पचास कोस पर संस्करण बदल देने वाले बड़े अखबारों के इन संवादाताओं पर हमले की खबरें इनके अखबारों में ही नहीं छप पातीं। अपवाद एकाध अखबार हैं। इलाहाबाद में इंडियन एक्सप्रेस के हमारे सहयोगी विजय प्रताप सिंह पर माफिया गिरोह के लोगों ने बम से हमला किया। उनकी जान नहीं बचायी जा सकी, हालांकि एक्सप्रेस प्रबंधन ने एयर एम्बुलेंस की व्यवस्था की पर सरकार को चिंता सिर्फ अपने घायल मंत्री की थी। कुशीनगर में एक पत्रकार की हत्या कर उसका शव फिंकवा दिया गया। गोंडा में पुलिस एक पत्रकार को मारने की फिराक में है। लखीमपुर में समीउद्दीन नीलू को पहले फर्जी मुठभेड़ में मारने की कोशिश हुई और बाद में तस्करी में फंसा दिया गया। लखनऊ में सहारा के एक पत्रकार को मायावती के मंत्री ने धमकाया और फिर मुकदमा करवा दिया। यह बानगी है उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर मंडरा रहे संकट की। बावजूद इसके पत्रकार ही ऐसा प्राणी है जिसका कोई वेतनमान नहीं, सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा नहीं। और न ही जीवन की अंतिम बेला में जीने के लिए कोई पेंशन। असंगठित पत्रकारों की हालत और खराब है। जिलों के पत्रकार मुफलिसी में किसी तरह अपना और परिवार का पेट पाल रहे हैं। दूसरी तरफ अखबारों और चैनलों का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है। इंडियन एक्सप्रेस समूह के दिल्ली संस्करण में छह सौ पत्रकार – गैर पत्रकार कर्मचारियों में दो सौ वेज बोर्ड के दायरे में हैं, जो महीने के अंत में उधार लेने पर मजबूर हो जाते हैं। दूसरी तरफ बाकी चार सौ में तीन सौ का वेतन एक लाख रुपये महीना है। हर अखबार में दो वर्ग बन गये है। देश भर में मीडिया उद्योग ऐसा है, जहां किसी श्रमजीवी पत्रकार के रिटायर होने के बाद उसका परिवार संकट में आ जाता है। आजादी के बाद अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों की दूसरी पीढ़ी अब रिटायर होती जा रही है। पत्रकार के रिटायर होने की उम्र ज्यादातर मीडिया प्रतिष्ठानों में 58 साल है। जबकि वह बौद्धिक रूप से 70-75 साल तक सक्रिय रहता है। जबकि शिक्षकों के रिटायर होने की उम्र 65 साल तक है। इसी तरह नौकरशाह यानी प्रशासनिक सेवा के ज्यादातर अफसर 60 से 65 साल तक कमोबेश पूरा वेतन लेते हैं। इस तरह एक पत्रकार इन लोगों के मुकाबले सात साल पहले ही वेतन भत्तों की सुविधा से वंचित हो जाता है। और जो वेतन मिलता था उसके मुकाबले पेंशन अखबार भत्ते के बराबर मिलती है। इंडियन एक्सप्रेस समूह में करीब दो दशक काम करने वाले एक संपादक जो 2005 में रिटायर हुए, उनको आज 1048 रुपये पेंशन मिलती है और वह भी कुछ समय से बंद है, क्‍योंकि वे यह लिखकर नहीं दे पाये कि मैं अभी जिंदा हूं। जब रिटायर हुए तो करीब चालीस हजार का वेतन था। यह एक उदाहरण है कि एक संपादक स्तर के पत्रकार को कितनी पेंशन मिल रही है। हजार रुपये में कोई पत्रकार रिटायर होने के बाद किस तरह अपना जीवन गुजारेगा। यह भी उसे मिलता है, जो वेज बोर्ड के दायरे में है। उत्तर प्रदेश का एक उदाहरण और देना चाहता हूं, जहां ज्यादातर अखबार या तो वेज बोर्ड के दायरे से बाहर है या फिर आंकड़ों की बाजीगरी कर अपनी श्रेणी नीचे कर लेते हैं। इससे पत्रकारों का वेतन कम हो जाता है। जब वेतन कम होगा तो पेंशन का अंदाजा लगाया जा सकता है। जबकि इस उम्र में सभी का दवाओं का खर्च बढ़ जाता है। अगर बच्चों की शिक्षा पूरी नहीं हुई तो और समस्या। छत्तीसगढ़ से लेकर उत्तर प्रदेश तक बड़े ब्रांड वाले अखबार तक आठ हजार से दस हजार रुपये में रिपोर्टर और उप संपादक रख रहे हैं। लेकिन रजिस्टर पर न तो नाम होता है और न कोई पत्र मिलता है। जबकि ज्यादातर उद्योगों में डाक्टर, इंजीनियर से लेकर प्रबंधकों का तय वेतनमान होता है। सिर्फ पत्रकार है, जिसका राष्ट्रीय स्तर पर कोई वेतनमान तय नहीं। हर प्रदेश में अलग अलग। एक अखबार कुछ दे रहा है, तो दूसरा कुछ। दूसरी तरफ रिटायर होने की उम्र तय है और पेंशन इतनी कि बिजली का बिल भी जमा नहीं कर पाये। गंभीर बीमारी के चलते गोरखपुर के एक पत्रकार का खेत-घर बिक गया, फिर भी वह नहीं बचा। अब उसका परिवार दर दर की ठोकरें खा रहा है। कुछ ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि रिटायर होने के बाद जिंदा रहने तक उसका गुजारा हो सके और बीमारी होने पर चंदा न करना पड़े। बेहतर हो वेज बोर्ड पत्रकारों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा की तरफ ध्यान देते हुए ऐसे प्रावधान करे जिससे जीवन की अंतिम बेला में पत्रकार सम्मान से जी सके। पत्रकारों को मीडिया प्रतिष्ठानों में प्रबंधकों के मुकाबले काफी कम वेतन दिया जाता है। अगर किसी अखबार में यूनिट हेड एक लाख रुपये पाता है, तो वहां पत्रकार का अधिकतम वेतन बीस-पच्चीस हजार होगा। जबकि ज्यादातर रिपोर्टर आठ से दस हजार वाले मिलेंगे। देश के कई बड़े अखबार तक प्रदेशों से निकलने वाले संस्करण में पांच-दस हजार पर आज भी पत्रकारों को रख रहे हैं। मीडिया प्रतिष्ठानों के लिए वेतन की एकरूपता और संतुलन अनिवार्य हो खासकर जो अखबार संस्थान सरकार से करोड़ों का विज्ञापन लेते हैं। ऐसे अखबारों में वेज बोर्ड की सिफारिशें सख्ती से लागू करायी जानी चाहिए। एक नयी समस्या पत्रकारों के सामने पेड न्यूज़ के रूप में आ गयी है। अखबार मालिक खबरों का धंधा कर पत्रकारिता को नष्ट करने पर आमादा हैं। जो पत्रकार इसका विरोध करे उसे नौकरी से बाहर किया जा सकता है। ऐसे में पेड न्यूज़ पर पूरी तरह अंकुश लगाने की जरूरत है। खबर की कवरेज के लिए रखा गया पत्रकार मार्केटिंग मैनेजर बन कर रह जाएगा। और एक बार जो साख खतम हुई, तो उसे आगे नौकरी तक नहीं मिल पाएगी। इस सिलसिले में निम्न बिंदुओं पर विचार किया जाए… 1.) शिक्षकों और जजों की तर्ज पर ही पत्रकारों की रिटायर होने की उम्र सीमा बढायी जाए। 2.) सभी मीडिया प्रतिष्ठान इसे लागू करे, यह सुनिश्चित किया जाए। 3.) जो अखबार इसे लागू न करे, उनके सरकारी विज्ञापन रोक दिये जाएं। 4.) सरकार सभी पत्रकारों के लिए एक वेतनमान तय करे जो प्रसार संख्या की बाजीगरी से प्रभावित न हो। 5.) पेंशन निर्धारण की व्यवस्था बदली जाए। 6.) पेंशन के दायरे में सभी पत्रकार लाये जाएं, चाहे वेज बोर्ड के दायरे में हों या फिर अनुबंध पर। 7.) न्यूनतम पेंशन आठ हजार हो। 8.) पेंशन के दायरे में अखबारों में काम करने वाले जिलों के संवाददाता भी लाये जाएं। 9.) पत्रकारों और उनके परिवार के लिए अलग स्वास्थ्य बीमा और सुविधा का प्रावधान हो। 10.) जिस तरह दिल्ली में मान्यता प्राप्त पत्रकारों को स्वास्थ्य सुविधा मिली है, वैसी सुविधा सभी प्रदेशों के पत्रकारों को मिले। 11.) किसी भी हादसे में मारे जाने वाले पत्रकार की मदद के लिए केंद्र सरकार विशेष कोष बनाये। प्रमोद जोशी की पोस्ट पर इसी देना था पर लग नहीं पाया यह मोहल्ला ने भी दिया था जिससे लेकर दे रहा हूँ http://mohallalive.com/2010/07/31/journalists-plight-and-wage-board/

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