Thursday, November 29, 2012

सरकार की साख से खेल रहे है बेलगाम नौकरशाह

अंबरीश कुमार लखनऊ ।उत्तर प्रदेश में नौकरशाही बेलगाम हो रही है ।आशंका यह है कि कही इसके चलते प्रदेश सरकार की ज्यादातर योजनाएं लटक न जाएं और साख अलग ख़राब हो ।प्रदेश के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी जैसे कुछ अफसर अपवाद है पर उन अफसरों की संख्या बहुत ज्यादा है जो सरकार के नियंता बनते जा रहे है ।पूर्व मुख्यमंत्री मायावती सूबे के बड़े से बड़े अफसर को तू तूम से संबोधित करती थी और अफसर जो आदेश होता था उसे मानते थे ।मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का अंदाज अलग है तो नौकरशाही का अंदाज भी बदला हुआ है । एक जिले का कलेक्टर बदल दिया जाता है और मुख्यमंत्री को जानकारी नहीं होती । पूर्वांचल के एक असरदार मंत्री राम गोविन्द चौधरी का स्टाफ एक नर्स के तबादले के लिए अदने से अफसर से गुहार लगाता है कोई सुनवाई नहीं । पंचम तल के नाम हर अफसर अपनी चला रहा है और पंचम तल पर भी सत्ता का एक अलग केंद्र है जो अपने अंदाज में काम करता है । पर यह सब हो रहा है सरकार की साख की कीमत पर जिसे लेकर सवाल उठ रहे है ।मुख्यमंत्री चुनाव के घोषणा पत्र के वायदे को अमली जामा पहनाना चाहते है तो एक अफसर कहता है 'चुनावी वायदों से मेरा क्या लेना देना । एक वरिष्ठ अफसर आनंद मिश्र का मामला विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह को जिस अंदाज में उठाना पड़ा वह चर्चा का विषय है ।इस सबकी वजह से न कोई काम हो ढंग से हो पा रहा है और न बजट का कारगर इस्तेमाल । मुख्यमंत्री घोषणा करते है और आमतौर पर अफसर उसपर कोई अमल नहीं करते । उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के सचिव सिद्धार्थ कलहंस ने कहा -सत्ता बदली तो माहौल भी बदला पर अब एक बार फिर वरिष्ठ पत्रकारों को परेशान होना पड़ रहा है क्योकि सूचना विभाग के आला अफसर अपनी चला रहे है और जिन्हें मान्यता मिलनी चाहिए उसे पुराने और अटपटे नियमो के चलते दौड़ना पड़ रहा है और जो ओसे लोगों को मान्यता दी जा रही है जो उसके हक़दार नहीं है । यही कहा जाता है कि पंचम तल की एक अफसर के दबाव में यह सब हो रहा है । यह एक बानगी है । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -ऐसा नहीं कि सभी अफसर गड़बड़ हो पर कुछ अफसरों के चलते सरकार की साख ख़राब होती है तो कुछ अफसर अपने काम से धारणा बदल भी रहे है । नोयडा में जो अफसरों के चलते हुआ वह सामने है ।पावर कारपोरेशन का एक उदाहरण ले वहां प्रबंध निदेशक स्तर के एक अफसर धीरज साहू जब दफ्तर पहुँचते है तो कमरे के बाहर लाल बत्ती जल जाती है और कोई मिल नहीं सकता। ऐसे में क्या एक मेगावाट बिजली का भी अतिरिक्त उत्पादन हो पाएगा यह आसान नहीं लगता ।पर दूसरी तरफ वाराणसी में आज किसानो को अगर आठ दस घंटे बिजलो मिल रही है तो पूर्वांचल में पावर कारपोरेशन के एमडी एपी मिश्र की लोग सराहना भी कर रहे है और इसका श्रेय सरकार को ही जाता है ।इसलिए अफसर दोनों तरह के है यह समझना होगा । राजनैतिक विश्लेषक वीरेन्द्र नाथ भट्ट ने कहा -इस समय ज्यादातर मंत्री नौकरशाही से त्रस्त है ।अफसर मंत्रियों की नहीं सुन रहे है । दरअसल पहले के दौर में मुख्यमंत्री और कैबिनेट सचिव इन अफसरों से किस भाषा में बात करते थे यह जग जाहिर है । उसे भाषा भी कहना गलत होगा सीधे गाली देकर बात होती थी और सत्ता का एक केंद्र था पर अब अलग अलग अफसर अपने अलग अलग सत्ता के केंद्र के प्रति जवाबदेह हो गए है ।इस तरह की प्रतिक्रिया से उत्तर प्रदेश में अफसरों के बदलते अंदाज को समझा जा सकता है । jansatta

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