Tuesday, September 4, 2012

बर्फ में वे दस दिन

अंबरीश कुमार
श्रीनगर के हब्बाकदल में राजा घर जो रुके तो दस दिन तक रुकना पड़ा क्योकि जम्मू श्रीनगर राजमार्ग भारी बर्फ़बारी के चलते बंद हो गया था । पर इतने समय में ध्रीनगर को जमकर देखा । मंदिर मस्जिद ,झील झेलम और मुग़ल बादशाहों के बाग़ । शाहजहां ने चश्म-ए-शाही बाग़ बनवाया जहाँ एक चश्मे के आसपास हरा-भरा बगीचा है। पास ही शिकोह का परी महलसे लेकर निशात बाग हैं तो जहाँगीर का बनवाया हुआ शालीमार बाग जो नूरजहां को समर्पित था । यह बाग़ नही मुग़ल बादशाहों के प्रकृति प्रेम और रोमांस के स्मारक की तरह नजर आते है । जहाँ पहुंचकर ऐसा लगता है मानो आप किसी चित्रकला के भीतर पहुँच गए है । इन बागों को जिस खूबसूरती से बनाया गया वह हैरान करता है । हरे भरे पेड़ पौधों के साथ बहता पानी और दूर तक जाती बर्फीली चोटिया । यही पर 1623 में सादिक खान का बनवाया बगीचा और ईशरत महल है तो मशहूर हजरतबल मस्जिद जो डल झील के किनारे है। दूसरी तरफ समुद्र तल से 1100 फीट की ऊंचाई पर बना शंकराचार्य मंदिर है। शहर से करीब दस किलोमीटर दूर निशात बाग़ 1633 बनाया गया था जहाँ से डल झील देखते बनती है । कश्मीर में जब बर्फ पड़ी हो तो सब कुछ सदेद ही दिखता है । बाग बगीचे से लेकर घर तक पर बर्फ की चादर लिपटी नजर आती है । लाल चौक के पास एक घर के ऊपर जमी बर्फ को हटाने के लिए लोग काफी मशक्कत करते नजर आए । दिसंबर का महीना और कड़ाके की ठंड । बचे सिर्फ इसलिए रहे क्योकि राजा ने स्वेटर से लेकर ओवरकोट तक दे दिया था ।अपने पास और कोई काम नहीं था सिर्फ इसके कि बस अड्डे जाकर सड़क खुलने की जानकारी लेना और फिर जगह जगह घूमना । रात में खाने के समय समूचा परिवार एक साथ जमीन पर बैठ कर खाना खाता था और कई विषयों पर चर्चा होती थी खासकर कश्मीरी पंडितों के रीत रिवाज पर । बहुत कुछ जानने को भी मिला । रात में खाने के बाद जब सोने जाते तो पहले लिहाफ के भीतर कांगड़ी रखकर उसे गर्म किया जाता ।लिहाफ भी काफी भारी और तीन तरफ से मोड़कर बंद किया हुआ ताकि ठंडी हवा न जा सके । सोते समय भी वे लोग लिहाफ के भीतर कांगड़ी रखने को दे देते पर मुझे कांगड़ी के साथ सोना रास नहीं आया ।वहा सुबह सात बजे तक अँधेरा रहता था और मुझे रोज सुबह उठकर बस का पता करना पड़ता था । खैर चाय और कहवा के साथ सुबह होती तो देखता परंपरागत तरीके से पानी गर्म कर हर सदस्य को दिया जाता था । ठंढे पानी में हाथ भी नहीं डाल सकते थे । नाश्ता करने के बाद राजा दफ्तर जाते समय मुझे भी ले जाते जहाँ से मै घूमने निकल जाता । राजा की मम्मी यानी रानी आंटी से अपने लोगों का पारिवारिक संबंध था जो लखनऊ में थी और कश्मीरी व्यंजनों का स्वाद मुझे उन्ही के हाथ से मिला था । कश्मीरी त्योहारों के बारे में भी इसी परिवार से जानकारी मिली । कश्मीर में राजा के मामा से दोस्ती हो गई जो अपने गाइड भी थे । वे बर्फ गिराने के बावजूद फेरन के भीतर कांगड़ी लेकर मुझे काफी हाउस लेकर जाते । पहली बार किसी काफी हाउस में मैंने गद्दे के परदे देखे । बताया गया कि हाड कंपा देने वाली सर्द हवा को रोकने के लिए मोटे गद्दे वाले परदे टांगे गए है ।काफी हाउस के भीतर फायर प्लेस में लकड़ी के मोटे लठ्ठे सुलगते नजर आते जिसकी वजह से भीतर का तापमान गर्म रहता । काफी हाउस में आमतौर पर राजनैतिक बहस का लम्बा दौर चलता और फेरन पहने लोग हाथ में अख़बार मोड़कर आते दिखते । अपन भी रात आठ बजे तक काफी हाउस में जमे रहते और फिर घर लौट जाते । दसवें दिन खबर मिली कि रास्ता साफ होगया है और सुबह जम्मू के लिए बस सेवा शुरू हो जाएगी । खैर वे दस दिन आज भी नहीं भूलते है ।

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