Wednesday, October 17, 2012

बादलों के पार एक गांव

अंबरीश कुमार यह एक ऐसा पहाड़ी गाँव है जहाँ हर समय बादल उड़ते रहते है .सेब और नाशपाती के बड़े बगीचों के बीच से जाता रास्ता हर मोड़ पर नया दृश्य रच देता है .कभ सूरज सामने आता है तो कभी बादल उसे ढक देते है .अचानक बादलों का रंग बदलने लगा .बिजली कड़कने लगी और सामने की पहाड़िया बरसात और धुंध में गायब होने लगी .चौथा दिन था अपना
की तरफ .मुक्तेश्वर की शाम यादगार थी तो सुबह अद्भुत हिमालय के इतने रंग कभी नहीं देखे .हिमालय की एक एक कर चोटियाँ बादलों के बीच से उभर रही थी .अल्मोड़ा शहर की रौशनी जो कुछ देर पहले अँधेरे में चमक रही थी वह अँधेरा छटते ही बादलों में डूब चुकी थी और ऐसा लग रहा था मानो उस शहर पर पहाड़ों के बीच कोई नदी बह रही हो .हम इंतजार कर रहे थे कि कब हिमालय की चोटिया आसमान और बादल के बीच उभर कर सामने आए.आसमान भी सफ़ेद ,बादल भी सफ़ेद और ये चोटियाँ भी जिसके चलते सब आपस में गडड मड्ड हो गए थे .इन्जार था तो सिर्फ सूरज की रौशनी का जो इन्हें अलग कर सकती थी और उसी के इंतजार में देवदार के जंगल के किनारे बर्फीली हवा में खड़े थे .बीती शाम से ही ठंडी हवा चल रही थी .डाक बंगले का चौकीदार और खानसामा गोपाल सिंह कई बार चाय दे चुका था वह भी स्टील के ग्लास में जिससे कुछ गरमी मिलती .बाद में भटेलिया और सतबुंगा होते हुए लौटे तो थक चुके थे .नींद भी आ रही थी .शाम को इला मयंक को मल्ला के बस स्टेशन पर गाड़ी में बैठाकर सामने के हिमालय को देखने पहूंचे तो वह बादलों से ढक चुका था और हम लोगों को रात के खाने का सामान लेने के साथ महादेवी सृजन पीठ के पीठ की तरफ भी जाना था .अपना कुत्ता टाइगर जो अपनी माँ घोटू को खोने के बाद घर छोड़ पुलिस चौकी में रहने लगा था अचानक मछली बेचने वाले के पास मिल गया और फिर साथ चल दिया .जोशी जी की दूकान से उसे बिस्कुट दिया .बहादुर ने कल रात ही बताया कि करीब तेरह साल से साथ रहने वाली घोटू को बाघ उठा ले गया तो बहुत ख़राब लगा .वह बीमार भी थी .सविता को फोन पर बताया तो कुछ देर खामोश रहने के बाद बोली ,उसे मुक्ति मिल गई पर बहुत खल रहा है .कुत्ता पालना बचपन में उस समय छोड़ दिया जब एक छोटे से पिल्लै की मौत हो गई और एक दिन दुःख में खाना नहीं खाया .यहाँ कई कुत्ते रहे जो पाला बहादुर ने पर परिवार का हिस्सा बन गए .अम्बर के तो वे दोस्त ही रहे पर एक एक कर सब बाघ का शिकार भी होते गए .पहला कुत्ता काले रंग का भूटिया कुत्ता था जो करीब दस साल पहले बाघ का शिकार बना था. खैर बाजार में ही साथ आए मित्रों का इन्तजार करने लगे .क्योकि खाने सामान लेकर जाना था .राज नवरात्र में शुद्ध शाकाहारी हो जाते है इसलिए एक दिन पहले वे चिकन बनाना चाहते थे पर पता चला आज हल्द्वानी से मुर्गे वाली गाड़ी ही नहीं आई इसलिए दूसरे विकल्प के रूप में पूर्वांचल के एक लोकप्रिय व्यंजन 'निमोना' बनाने का फैसला हुआ जो ताजी हरी मटर को पीस कर बनाई जाती है .आजकल यहाँ बहुत अच्छी किस्म की मटर खेतों से आ भी रही है .रात करीब आठ बजे से खाना बनाना शुरू हुआ जो दो घंटे में पूरा हुआ और हम बरामदे से बीतर आ गए .बरामदे में आग जलवा ली थी क्योकि ठंड बहुत ज्यादा थी .बरामदे में शीशे की बड़ी खिडकियों से सामने का जंगल दिख रहा था और चर्चा के साथ ग्लास भी टकरा रहे थे .कब खाना हुआ और नींद आ गई पता नहीं चला शायद थकान की वजह से .इस दौरे के अंतिम दिन फिट चोटिया सामने थी पर बादल तेजी से बढ़ रहे थे और कुछ देर सामने की पहाड़ी पर तेज बरसात शुरू हो गई .घोडाखाल में तो ओले भी घिरे और अचानक बड़ी ठंड के बाद हम रजाई के भीतर जा चुके थे .रात में जब गागर पर के जंगल से गुजते तो तेज हवा से देवदार और चीड के दरख्त से पानी भी ऊपर आ जा रहा था

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