Monday, August 6, 2012

यह जश्न का नहीं संघर्ष तेज करने का समय है

अंबरीश कुमार लखनऊ,६ अगस्त ।मानवाधिकार कार्यकर्त्ता
की जमानत के बाद उत्तर प्रदेश में उन राजनैतिक बंदियों की उम्मीद बढ़ गई है जो देशद्रोह या इससे मिलते जुलते अपराध के चलते जेल में है । सीमा आजाद और विश्वविजय की जमानत मिलने के बाद प्रदेश में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के हौंसले बुलंद हो गए है और वे अब इस संघर्ष और आगे बढ़ने जा रहे है ।सीमा आजाद को लेकर उत्तर प्रदेश से लेकर देश के कुछ हिस्सों में आंदोलन चला था । पीयूसीएल के राष्ट्रीय सचिव चितरंजन सिंह ने कहा -यह जश्न का नहीं संघर्ष तेज करने का समय है ,सीमा आजाद को अभी सिर्फ जमानत मिली है और जबतक मुकदमा ख़त्म न हो जाए लडाई जारी रहेगी । यह मामला एक नजीर बनेगा जिससे अन्य राजनैतिक बंदियों की रिहाई का रास्ता साफ़ हो सकता है । मानवाधिकार कार्यकर्ताओ का यह आरोप है कि सीमा आजाद को जमानत दिए जाने और आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगाये जाने से यह भी साफ़ हुआ कि निचली अदालते पुलिस की जाँच पड़ताल को अंतिम सत्य मानकर चलती है जिससे बेगुनाह को भी सजा हो सकती है । गौरतलब है कि मिर्जापुर से लेकर वाराणसी तक की जेलों में सौ से ज्यादा राजनैतिक बंदी सालों से बंद है । नक्सली आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किये गए इन बंदियों में ज्यादातर बेगुनाह है पर इनकी जमानत लेने वाला कोई नहीं है । परिवार ने साथ छोड़ा और जिस संगठन के नाम पर ये बदलाव की राजनीति करने निकले उसने भी किनारा कर लिया । नक्सल आंदोलन के नाम पर प्रदेश के विभिन्न जेल में सौ से ज्यादा लोग सालों से पड़े है जिसमे महिलाएं भी शामिल है । मिर्जापुर जेल में बंद सोमरी उर्फ बबिता ,सरिता चेरो और कुसुम आदि इसका उदाहरण है । नौजवानों के बीच सीमा आजाद की रिहाई की मुहिम चलने वाले मानवाधिकार कार्यकर्त्ता शाहनवाज और राजीव यादव ने कहा -पिछली सरकार के कार्यकाल में अगर कोई मुस्लिम फंसा तो उसे आतंकवादी और हिन्दू फंसा तो उसे माओवादी घोषित करने में जरा भी देर नहीं की जाती थी । दुर्भाग्य तो यह रहा कि मीडिया का एक हिस्सा भी पुलिस की जबान बोलता नजर आया था । दूसरी तरफ मायावती सरकार के राज में कई माफिया जो गंभी आपराधिक मामलो में फंसे थे उन्हें धीरे धीरे बरी किया गया । सीमा आजाद के मामले में पुलिस ने शुरू से ही गुमराह करने का काम किया था ।दिल्ली के पुस्तक मेले से वामपंथी धारा की पुस्तके लेकर आने की वजह से उन्हें इलाहाबाद में गिरफ्तार किया गया था । तब इलाहाबाद के डीआईजी प्रेमप्रकाश से यह पूछने पर कि सीमा को क्यों गिरफ्तार किया है, जवाब था -वो देश विरोधी हैं और माओवाद समर्थक हैं और उनके पास से माओवादी साहित्य मिला है । मार्क्स ,लेनिन और चेग्वेरा की पुस्तकों को हर जगह पढ़ाया जाता है पर उत्तर प्रदेश के पुलिस विभाग के अफसर यह नहीं जानते । दुर्भाग्य तो यह है कि पुलिस के वे लोग जो माओवाद विरोधी अभियान की कमान संभाले है उन्हें न तो वामपंथियों के वैचारिक मतभेद का पता है और न यह पता कि वामपंथ की कौन सी धारा हिंसा के विरोध में है । पर सीमा आजाद का मामला अलग था और गिरफ्तारी से पहले वह पूर्वांचल में प्राकृतिक संसाधनों की लूट और घोटालों पर लिख चुकी थी जिससे पुलिस का एक तबका नाराज था । सीमा की गिरफ्तारी के बाद एक पुलिस अफसर से बात हुई तो उसका जवाब था -जाँच अधिकारी जब आरोप पत्र दाखिल कर दे तो अदालत भी कुछ नहीं कर सकती । यह टिपण्णी बताती है कि मौजूदा कानून व्यवस्था में पुलिस का अर्थ क्या है और यही वजह है कि दर्जनों बेगुनाह राजनैतिक बंदी आज भी जेल में है ।

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