Wednesday, August 1, 2012

हाशिए पर जा रहा है अन्ना का आंदोलन

अराजनैतिक सोच ,लचर संगठन और कार्यक्रम न होने से बिखरा आंदोलन अंबरीश कुमार
लखनऊ , १ अगस्त । अराजनैतिक सोच ,लचर संगठन ,अव्यवहारिक रणनीति और राजनैतिक कार्यक्रम न होने की वजह से उत्तर प्रदेश में अन्ना आंदोलन हाशिए पर जा रहा है । प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आज दोपहर बाद विधान सभा के सामने धरना स्थल पर अन्ना हजारे के समर्थन में चल रहे धरना पर कुल ग्यारह लोग बैठे नजर आए । पिछले साल इस आंदोलन में दिन में ज्यादा लोग होते थे जबकि धरना स्थल शहर के केंद्र में नहीं था । धरना स्थल पर बैठे इंडिया अगेंस्ट करप्शन के इस आंदोलन का जिलों का समन्वय देख रहे अनुराग श्रीवास्तव से एनी जिलों में अनशन पर बैठे लोगो की जानकारी मांगी तो उन्होंने बताया -गोरखपुर में सात से आठ लोग ,मथुरा में आठ से नौ ,अलीगढ़ में आठ और बंद में भी करीब इतने लोग अनशन कर रहे है । जबकि रायबरेली ,सुल्तानपुर ,वाराणसी जैसे शहरों में अलग अलग तरह के कार्यक्रमों में ज्यादा लोगों की हिस्सेदारी जानकारी मिली है । इसकी एक वजह इस बार आंदोलन का उस तरह प्रचार प्रसार भी नहीं होना है जैसा पिछली बार हुआ था । कम भीड़ की वजह से धरना स्थल पर बैठे लोगों का मूड भी बहुत उत्साहजनक नहीं नजर आया । आंदोलन से कई तबके पहले भी कटे थे अब तो पूरी तरह कटे नजर आ रहे है और जो समर्थन में है वे पूरी तरह अराजनैतिक सोच वाले है । किसी अराजनैतिक सोच से राजनैतिक लड़ाई कैसे होगी यह यहाँ कोई नहीं बताता । इस बारे में आंदोलन के कई वरिष्ठ लोगों से बात करने पर साफ़ हुआ कि एक नहीं कई वजहों से इस आंदोलन का बिखराव हुआ है । ऐसा भी नहीं की इस दौर में जन आंदोलन न हुए हो । देश के विभिन्न हिस्सों में कई आंदोलनों को ताकत भी मिली जिनमे बिहार के बागमती आंदोलन से लेकर मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र के आंदोलनों के आलावा तमिलनाडु और ओडिसा में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहा आन्दोलन भी शामिल है । पर इस बार अन्ना आंदोलन को वह जन समर्थन नहीं मिला जो पिछली बार मिला था । तराई क्षेत्र में लंबे समय से काम करने वाले राजनैतिक कार्यकर्ता रामेन्द्र जनवार ने कहा -पिछले साल ग्रामीण क्षेत्रों तक में प्रभात फेरियां निकाली गई जिनमे छात्र से लेकर शिक्षक तक शामिल हुए । ऐसा रुझान हमने पहले कभी नहीं देखा पर इस बार लोग टीम अन्ना से और उनके कामकाज के तरीकों से संतुष्ट नहीं लग रहे है और कही एक अविश्वास भी झलक रहा है । गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में पिछला चुनाव ही लूट और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ा गया था । बावजूद इसके न तब यहाँ अन्ना आंदोलन के लोग प्रदेश के भ्रष्ट और दागी मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोलने को तैयार थे और न आज है । वे जो परचा बाँट रहे है उसमे भ्रष्ट मंत्रियों की सूची में मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का नाम तो है पर यह पूछने पर कि उत्तर प्रदेश में भी कोई भ्रष्ट मंत्री रहा है या घोटाला हुआ है टीम अन्ना के कार्यकर्त्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा -इस बारे में हमें नहीं पता । हम तो राष्ट्रीय स्तर के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे है । जब देश के सबसे बड़े सूबे में एनआरएचएम के हजारों करोड के घोटाले में पांच आला अफसर मार दिए जाए और जनता सत्ता बदल दे पर टीम अन्ना के कार्यकर्ताओं को इसकी जानकारी न हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे किस राजनैतिक जमीन पर खड़े है और उन्हें लोग कैसा समर्थन देंगे । यह भी ध्यान रखना चाहिए कई बार एलान करने के बावजूद अन्ना हजारे उत्तर प्रदेश नहीं आए और उनकी टीम ने चुनाव के दौरान फ़ैजाबाद जाकर रस्मअदायगी जरुर की थी । दरअसल अन्ना आन्दोलन अपने अराजनैतिक सोच ,लचर संगठन और अव्यवहारिक कार्यक्रमों के चलते ज्यादा बिखरा । जब कड़ाके की ठंड हो तो ये जेल भरो आंदोलन का एलान कर देंगे और जब छात्रों के प्रवेश का समय हो तो संघर्ष का एलान । छोटे से छोटे संगठन भी किसी भी कार्यक्रम के लिए सोच समझ कर समय का चयन करते है । राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -पर टीम अन्ना अलग है । उनके कुछ नासमझ समर्थक तर्क देते है यह गाँधी और जेपी आंदोलन से अलग है इसलिए अलग तरीके से चलेगा । यह बिना संगठन के चलेगा और बिना समझ के भी ,नतीजा सामने है लखनऊ में दर्जन भर लोग मुश्किल से जुटते है । इस आंदोलन में जयप्रकाश आंदोलन ही नहीं एनी जन आंदोलनों के लोगों को भी एक चौकड़ी ने अलग थलग कर दिया । जल बिरादरी के राजेंद्र सिंह अलग हुए तो पीवी राजगोपाल के एकता परिषद जैसा बड़ा जन संगठन भी कट गया । किसान आंदोलन के सुनीलम और विस्थापन आंदोलन की मेधा पाटकर की सक्रियता कम हो चुकी है । जयप्रकाश आंदोलन से निकले छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के ज्यादातर नेता मसलन राकेश रफीक से लेकर राजीव हेम केशव आंदोलन की दूसरी धारा के साथ जा चुके है । अन्ना आन्दोलन के प्रमुख नेता और सर्व सेवा संघ के सचिव रामधीरज ने कहा -आन्दोलन में ठाह्रव आया है और इसपर साथियों को मंथन करना चाहिए । कोई भी आंदोलन बिना ठोस कार्यक्रमों और संगठन के नहीं चलता है । हम लोग कई मोर्चे पर पिछड़े है । जल्दी जल्दी कार्यक्रम ले लेना । समय खासकर शहरों में छात्रों के स्कुल और गांव में बुवाई आदि का ध्यान न रखना । फिर दीर्ध कालीन कोई भी ठोस कार्यक्रम हमारे पास नहीं है कब तक झंडा लहरा कर आंदोलन चलाएंगे । जयप्रकाश आंदोलन से निकली एक धारा जो सत्ता में गई वह गुमराह हो सकती है पर दूसरी धारा ने बोधगया से लेकर गंगा मुक्ति आन्दोलन जैसे बड़े आन्दोलन ही नहीं किए आज भी देश के कई हिस्सों में सक्रिय है । नियामगिरी से लेकर बागमती आंदोलन तो हमारे सामने है । दरअसल अन्ना आंदोलन की सबसे बड़ी कमी संगठन न होना और कोर कमेटी के लोगों की नासमझी भी है । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -इन चार लोगों को यह गलतफहमी हो गई कि यही देश को दुरुस्त कर देंगे बाकि सब बेकार है । इनमे अन्ना हजारे को छोड़ एक आदमी भी ऐसा नहीं है जिसका संघर्ष का कोई इतिहास रहा हो । ये तो न एनजीओ के खिलाफ बोलेंगे और न कारपोरेट घरानों के इसलिए इनके इस आंदोलन का समर्थन खत्म होता जा रहा है ।

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