Tuesday, August 14, 2012

जाति के जाल में

आज काफी दिन बाद दफ्तर पहुंचा तो सिद्धार्थ कलहंस से बात हुई .वे इंडियन एक्सप्रेस का मेरा नंबर पहचानते है .चुनाव पर चर्चा हुई तो बताया अलग अलग जातियों के पत्रकारों की अलग अलग बैठके भी हुई थी .मैंने मजाक में कहा -पर मुझे तो बुलाया नहीं गया ,इसपर उनका जवाब था -आपको लोग कम्युनिस्ट मानते है ..कलहंस उसी संगठन से निकले है जिसे मैंने विश्विद्यालय में बनाया था .वैसे 'युवा भारत' जिसका पहला संयोजक मै रहा बाद में गोपाल राय हुए जो टीम अन्ना में है और दूसरे साथी बाबा रामदेव के साथ .पर पुराने मित्रों के साथ सम्बन्ध बरक़रार है .कलहंस की बात सुनकर जाती पर फिर सोचने लगा .आज दफ्तर भी जातीय गोलबंदी और पुलिस अपराधियों के गठजोड़ पर खबर के लिए आया था .आमतौर पर अपराध और दुर्घटना से संबंधित खबर नहीं करता रहा हूँ .अपने सहयोगी ही कर देते रहे .पर कई बार लिखना भी पड़ता है .इंडियन एक्सप्रेस के बहुत से कर्मचारी उत्तर प्रदेश के है जिनके गाँव की बहुत सी समस्याए आती रहती है जिसमे फौजदारी ,गंभीर दुर्घटना और पुलिस से संबंधित कई मामलों में दखल भी देना पड़ा .कई बार ये लोग चाहते है कि अख़बार में खबर आ जाए तो शायद इंसाफ मिल जाए .अपने दिल्ली के दफ्तर में एक पिछड़ी जाति का चपरासी है टेकराम .लगातार्र फोन कर रहा था और एक दिन उसका भतीजा भी दफ्तर आकर लौट गया .इससे पहले भी जब सीतापुर में उसके भतीजे को थाने में बर्बर तरीके से मारा गया तो खबर के बाद कार्यवाई हुई .इस बार उसने बताया कि उसकी चौदह साल की भतीजी के साथ गाँव के दबंगों ने बलात्कार किया और पुलिस भी उनके साथ है .फोन पर गाँव में उसके परिवार वालों से बात हुई .अदम गोंडवी की 'चमारों की गली 'याद आई .फिर लगा अख़बार से आज भी लोग बहुत उम्मीद लगाये हुए है .बाद में बहुत दिन बाद दफ्तर में बैठकर खबर लिखी .पर सीतापुर के उस छोटे से गांव की जातीय गोलबंदी से लेकर मीडिया सेंटर में हुई जातीय गोलबंदी पर सोचा तो लगा नेताओं को तो रोज गाली देते है पर खुद पर नजर नहीं डालते .

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