Thursday, August 9, 2012

जन संगठनों ने अन्ना से कहा -राजनीति नहीं ,आंदोलन

अंबरीश कुमार लखनऊ, 9 अगस्त । अन्ना हजारे का राजनैतिक विकल्प देने का रास्ता आसान नहीं है । इस आंदोलन की धुरी रहे विभिन्न जन संगठनों ने हजारे के राजनैतिक दलदल से दूरी बनाने का फैसला किया है । इनमे गांधीवादी ,सर्वोदयी ,समाजवादी धारा के अलावा विभिन्न किसान और अन्य जन संगठन शामिल है । कई प्रदेशों में अन्ना आंदोलन से जुड़े लोगों ने अन्ना हजारे और उनकी मंच वाली टीम का विरोध किया है । उत्तर प्रदेश ,बिहार से लेकर मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों में अन्ना आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने आंदोलन जारी रखने का एलान किया है । इस आंदोलन के समर्थन में जुटे किसान संगठनों ने २१ से २३ अगस्त तक दिल्ली में प्रदर्शन कर अपनी ताकत दिखने का एलान किया है । वे किसानो की जमीन छीने जाने के खिलाफ प्रदर्शन तो करेंगे ही साथ ही अन्ना हजारे को यह दिखाएंगे कि आंदोलन की ताकते किस तरह लामबंद है । इसमे कई राज्यों के किसान आएंगे । दरअसल अन्ना के अचानक आंदोलन ख़त्म करने से कई राज्यों में इंडिया अगेंष्ट करप्शन के कार्यकर्त्ता आहत हुए है । मध्य प्रदेश के तो पचास जिलों से कार्यकर्ताओं ने इस संबंध में अन्ना हजारे को पत्र लिखकर कई सवाल उठाए है और अन्ना से कहा है कि वे आंदोलन का नेतृत्व करे । पर अगर अन्ना इसपर राजी नहीं हुए तो भी आंदोलन जारी रहेगा । टीम अन्ना की कोर कमेटी के सदस्य डा सुनीलम ने कहा -हम तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव का पद छोड़कर इस आंदोलन से जुड़े थे । पर जिस तरह यह आंदोलन छोड़कर राजनैतिक दल बनाने का फैसला किया गया उससे कई राज्यों के वे कार्यकर्त्ता जो एक सपना लेकर संघर्ष की तैयारी में रहे वे निराश हो गए है । अगर राजनैतिक विकल्प की बात हो तो १९३४ में जिस तरह जेपी .लोहिया ,अच्युत पटवर्धन ,युसूफ मेहर अली से लेकर आचार्य नरेंद्र देव ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया था वह एक आदर्श हो सकता है । राजनीति में गिरावट आई है पर इतनी भी नहीं आई कि केजरीवाल ,विश्वास और संजय आदि इतने बड़े सपने का नेतृत्व करने की लोग अपेक्षा करे ।बिहार आंदोलन के पुराने कार्यकर्त्ता जो बाबा नागार्जुन के साथ जेल में रहे महात्मा भाई ने कहा -राजनैतिक विकल्प किस तरह देंगे यह भी साफ नहीं किया गया है । राजनैतिक सामाजिक बदलाव की लड़ाई पार्टी बना लेने से पूरी नहीं हो सकती । जयप्रकाश आंदोलन के बाद पहली बार बड़े पैमाने पर हिन्दी पट्टी का नौजवान इस आंदोलन से जुड़ा था जिसे अन्ना हजारे के फैसले से बहुत निराशा हुई है और वह ठगा हुआ महसूस कर रहा है । समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -टीम अन्ना तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ ही नहीं रही रही वर्ना उत्तर प्रदेश में कोई संघर्ष करती । इन्होने जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है । इनके चक्कर में हमारा राष्ट्रीय पदाधिकारी सुनीलम भी फंस गया था । दरअसल आंदोलन का एक तबका इस बात से भी आहत है कि लोकतांत्रिक परिपाटी को तोड़ते हुए इतना बड़ा फैसला किया गया । आज कहा जा रहा है कि जनता घोषणा पत्र बनाएगी ,जनता उम्मीदवार तय करेगी । जब आंदोलन वापस लेने जैसा बड़ा फैसला बिना कोर कमेटी की राय से कर लिया गया तो आगे जनता की कौन राय लेगा । सुनीलम भी इस तर्क के समर्थक है । सुनीलम ने कहा -ऐसे फैसले में कोर कमेटी के सदस्यों को भरोसे में नहीं लिया गया । इसलिए लोग ज्यादा सवाल उठा रहे है । आंदोलन वापस लेना बहुत बड़ा फैसला था । ऐसा नहीं कि देश में आंदोलन नहीं चल रहे हो । इस समय देश में एक हजार से ज्यादा जमीनी आंदोलन चल रहे है और उनका समर्थन इस आंदोलन को मिला था । कई नए कार्यक्रम दिए जा सकते थे मसलन भ्रष्ट मंत्रियों के साथ दागी सांसदों को हराने की अपील हो सकती थी । बहरहाल कई जन संगठन जो अन्ना आंदोलन के साथ जुड़े थे वे अचानक आंदोलन वापस लेने के साथ राजनैतिक दल बनाने के पूरी तरह खिलाफ है । संघर्ष वाहिनी मंच के राजीव हेम केशव ने कहा -टीम अन्ना के फैसले से आंदोलन करने वालों की साख पर असर पड़ा है जो बहुत दुर्भाग्पूर्ण है ।

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