Thursday, August 2, 2012

हम सबको इस दौर से गुजरना है

देर रात पापा
को लेकर चिंता बनी रही .अस्सी की उम्र में कैंसर से निजात पाने के बाद स्वास्थ्य पहले जैसा नहीं रहा है चलने में और बोलने में भी दिक्कत आती है कमजोरी की वजह से .मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करते और देश में रहे तो स्लीपर क्लास में ही चलने की जिद और इस उम्र में करीब चौबीस घंटे की लम्बी हवाई यात्रा में उनका हाल लेना मुश्किल था .वह भी जब लन्दन से दूसरी उड़ान हो .यह बताया गया था कि व्हील चेयर की व्यवस्था एयर लाइंस ने की है .प़र कही कोई समस्या न हो यह चिंता लगी हुई थी .अकेले जाने का फैसला भी उनका ही था . समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए सुबह जल्दी उठा ताकि कुछ पता चले .देश में तो अपना संपर्क लगभग सभी जगह है प़र परदेश में नहीं .उनका रहन शहन शुरू से ही काफी सादगी भरा रहा है .पैदल या रिक्से से चलना .रेलवे में इंजीनियर रहे और सारा देश हम सब को घुमाया वह भी अलग तरह के डिब्बे में .यह बात अलग है कि तब एसी नहीं होता था .अपना घूमने का शौक शायद इसी वजह से है .बचपन में ही चारो धाम करा दिया गया था .प़र अब वे बारी बारी से परिवार का साथ चाहते है इसी वजह से इतनी लम्बी यात्रा कर रहे है .सुबह जल्दी उठा तो बुंदेलखंड के यात्रा संस्मरण का दूसरा हिस्सा लिख डाला तो अन्ना की राजनैतिक महत्वकांक्षा पर जनसत्ता में लिखी खबर भी ब्लाग पर पोस्ट कर दी .नींद आई फिर सो गया .कुछ देर पहले अपूर्व का फोन आया और पापा से सविता की बात कराई तो उन्हें लगा मै आफिस में हूँ तब बताया गया यहाँ सुबह के सात बजे है .उनके फोन की बात जानकर चिंता ख़त्म हुई पर लगा हम सबको इस दौर से गुजरना है .वे अकेले हो चुके है और बारी बारी से सबक यहाँ कुछ समय बिताते है .पर गोरखपुर के घर का मोह नही छूटता ..बिजली का बिल और फोन का बिल जाना करने के लिए दिल्ली से गोरखपुर जाना अटपटा भी लगता है .और उस सबसे ज्यादा चिंता पेड़ पौधो की .बेतियाहाता में प्रेमचंद पार्क के ठीक सामने का यह घर हराभरा है और कई दुर्लभ किस्म के पौधे लगा रखे है जिनपर वे काफी समय देते रहे है .प़र अब वह घर काफी बेतरतीब हो गया है .मै बहुत कम जा पाता हूँ .सफाई भी ढंग से नहीं हो पाती है .सबके बावजूद वे रहना उसी घर में चाहते है .करीब महीने भर बाद फिर उन्हें इसी तरह अकेले अमेरिका से लौटना होगा और फिर गोरखपुर .बुजुर्ग लोगों का अपनी घर के प्रति यह मोह समझने का प्रयास कर रहा हूँ .

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