Thursday, August 16, 2012
बैलगाड़ी पर बारात ,सरपुतिया और भुइफोड़
अंबरीश कुमार
कफी समय बाद गोरखपुर पहुंचा क्योकि पापा के बाहर रहने की वजह से बुआ जी की तेरहवी में घर के किसी न किसी सदस्य का होना जरुरी था .हालाँकि यह जाना भी कोई जाना नहीं था क्योकि राप्ती सागर से शाम चार बजे पहुंचा और रात बजे गोरखनाथ से वापस चलकर सुबह पांच बजे घर पहुँच गया .पर गोरखपुर में जीतनी भी देर रहा पुराने लोगों से मिलना और अपने गाँव से लेकर ननिहाल के उस गाँव की जानकारी लेता रहा जहाँ छुट्टियों में बचपन गुजरा .स्टेशन से सीधे घर पहुंचा जहा अन्नू इंतजार कर रही थी घर की स्थिति दिखने के लिए ताकि से ठीक कराया जा सके .घर के पीछे के हिस्से में एक मजदूर परिवार रहता है जो पौधों में पानी देने से लेकर साफ़
सफाई कर देता है .पौधे काफी हरेभरे थे क्रोटन की कई प्रजातियाँ रंग बिखे रही थी .मम्मी का लगता करी पत्ता का पेड़ बड़ा हो चुका था उसकी पत्तियाँ तोड़े लगा तो अन्नू ने कहा ,यह किसलिए .मैंने कहा -मुझे बहुत पसंद है ,यह मम्मी का लगाया पौधा है और हमारे गमले में जो करी पत्ता लगा है उसकी बहुर कम पत्तियां बची है .
आते समय बस्ती से खलीलाबाद के बीच भीषण बरसात पर गोरखपुर में उतरते ही गर्मी और उमस का अहसास हुआ .इससे पहले ट्रेन कुछ देर डोमिनगढ़ में रुकी रही (गोरखपुर में नाम बड़े रोचक होते है उदाहरण 'डोमिनगढ़' भी है ) क्योकि स्टेशन पर कोई प्लेटफार्म खाली नहीं था .यह पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय भी है और पूरब दिल्ली से जोड़ने वाला प्रमुख मार्ग भी .पर स्टेशन पर ऎसी भीड़ मानो सोनपुर के मेले में खड़े हो .जिस पुल से प्लेटफार्म नंबर एक पर आ रहा था वह इतना सकरा कि लाइन लग गई थी .जबकि ज्यादातर जगहों पर पटरियों के ऊपर से जाने वाले पुल काफी चौड़े होते है .करीब चार दशक पहले यह स्टेशन काफी साफ़ सुथरा नजर आता था पर अब वह स्थित नहीं है .यह शहर विकसित तो हुआ पर बहुत बेतरतीब ढंग से .अपना सम्बन्ध बेतियाहाता ,बिछिया कालोनी और बशारतपुर से ज्यादा रहा है .सत्तर के दशक के अंतिम दौर में जब मुंबई से पापा का तबादला होने वाला था तब कुछ महीने मुझे यहाँ रहना पड़ा था और यहाँ के अभय नंदन हायर सेकेंडरी स्कुल में पढना पड़ा था .वजह इस स्कूल से कुछ दूर पर जंगल जैसे इलाके के बीच ईसाइयों की छोटी सी आबादी बशारतपुर थी .जिसमे एक अंग्रेज की पुरानी कोठी हमारे छोटे मामा अपने दोस्तों के साथ रहते थे जो इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे थे और उन्ही के जिम्मे मुझे मुंबई से लाकर वहा रखा गया ताकि बाद में लखनऊ में प्रवेश मिल जाए . पर वे दिन काफी मस्तीभरे थे और पैदल ही गोरखपुर घूमता था .चारो और खूब पेड़ पौधे और आम .अमरुद के बाग़ .घर के सामने कट लीची (लीची की एक प्रजाति )लगी थी तो बगल में अमरुद का बगीचा जिसके बीच बड़ी सफ़ेद कोठी में भी मामा के एक दोस्त अपनी पत्नी के साथ रहते थे .बाद में मामा जी बिछिया कालोनी आ गए तो यही गोरखपुर का स्टेशन अपना सबसे बड़ा पर्यटन स्थल बना जहाँ घंटो गुजार देते थे .तब यह लखनऊ से ज्यादा बड़ा स्टेशन लगता था .सामने जो कैफेटेरिया खुला था वहा पहली बार दक्षिण भारतीय इडली दोशा खाने को मिला था .तब यह इलाका बहुत खुला हुआ था .ईमली के बड़े बड़े दरख्त थे जिसके नीचे रोज कोई न कोई जादूगर भीड़ इकठ्ठा किए नजर आता था .वह गोरखपुर आज के गोरखपुर में खो चुका है .रात में घर पर न रुकने की एक वजह बिजली की समस्या भी थी जिसके बिना अब गरमी में रहना मुश्किल हो गया है .
खैर धर्मशाला बाजार से कुछ आगे ही बढे तो अन्नू ने सब्जी वाले की और इशारा कर कहा ,देखो सरपुतिया मिल रही है जो मम्मी को बहुत पसंद थी ,फ़ौरन गाड़ी रुकवाई और सब्जी वाले से पूछा क्या भाव है तो जवाब मिला बतीस रुपए किलो .तबतक ताजे खीरे पर नजर पड़ी जो लखनऊ में इस ढंग का नहीं मिल रहा है .बीस रुपए में छह हरे खीरे भी साथ ले लिए .बाद में अन्नू ने बताया कि और सब्जी यहाँ मिलती है भुइफोड़ .जो कही और नहीं मिलगी .इसका नाम भी मम्मी के मुह से ही सुना था .कुछ आगे बढ़ने पर ठेले पर इसे बेचता एक सब्जीवाला मिल गया .दाम चालीस रुपए पाव यानी एक सौ साठ रुपए किलो .वह भी लिया और सूरजकुंड की तरफ आगे बढ़ गए .पहले डा आरएन सिंह के यहाँ कुछ देर बैठे और फिर बुआ जी के घर जान कई ऐसे रिश्तेदार मिले जिनसे चार दशक बाद यानी बचपन में मिले थे .ऐसे ही एक फुफेरे भाई मिले जिनकी शादी रुद्रपुर के आगे एक गाव चैनवापुर में हुई थी और बारात एक जीप और बैलगाड़ी से गई .वह भी मूसलाधार बरसात में .पानी इतना बरसा था कि रात में आई आंधी पानी में तम्बू कनात सब गिर गया और एक किलोमीटर दूर स्कूल में शरण लेना पड़ा .तब तीन दिन की बरात होती थी जिसमे बीच वाले दिन महफ़िल लगती थी और आमतौर मछली बनती थी .जिस स्कूल में शरण मिली थी उसमे तब रात तीन बजे माछली भात खाने को मिल पाया था .आज फिर यह सब याद आया .
फोटो -गाव के घर का बगीचा जिसमे मेरे लगाए पेड़ के नीचे बैठे बच्चे .यह स्कूल घर के बगीचे में ही चलता है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment