Tuesday, August 7, 2012

जनसत्ता' ने बहुत साथ दिया -सीमा आजाद

अंबरीश कुमार
सीमा आजाद अब उन राजनैतिक बंदियों की लड़ाई शुरू करेंगी जो विभिन्न मामलों में उत्तर प्रदेश की जेलों में है । सीमा आजाद ने आज इस संवाददाता से बात करते हुए यह जानकारी दी । सीमा कल ही जेल से बाहर आई है । आज सुबह उनसे बात हुई तो कई महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली । जेल में किस तरह का व्यवहार हुआ यह भी बताया । करीब ढाई साल का समय जेल में गुजारने वाली सीमा आजाद अब नए सिरे से अपना जीवन शुरू करने जा रही है । फिलहाल न उनके पास कोई कंप्यूटर है और न फोन । कैसे संपर्क कर रही है यह पूछने पर जवाब था -फिलहाल पापा के फोन से बात हो रही है । बातचीत लंबी हुई जिसे लिख रहा हूँ । पर सीमा आजाद ने यह जरुर कहा -'इस लड़ाई में आपने आर आपके अख़बार 'जनसत्ता ' ने बहुत साथ दिया जब सब साथ छोड़ चुके थे । लखनऊ आना है और आपसे मुलाकात भी करनी है । ' चितरंजन सिंह के मुताबिक इस मामले में लदी गई लड़ाई में जनसत्ता की ख़बरों का हवाला भी दिया गया था । गौरतलब है कि पांच फरवरी २०१० को दिल्ली के पुस्तक मेले से झोला भर किताबो के साथ इलाहाबाद लौट रही सीमा आजाद को पुलिस ने गिरफ्तार कर मार्क्स ,लेनिन और चेग्वेरा की पुस्तकों को माओवादी साहित्य बताकर जो जेल भेजा तो वे तबसे बाहर नही आ पाई और बाद में निचली अदालत ने न सिर्फ उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी बल्कि अस्सी हजार का जुर्माना भी ठोक दिया । इस सजा को सुनकर उत्तर प्रदेश के जन संगठन और बुद्धिजीवी हैरान थे । न कोई हथियार ,न कोई खून खराबा न कोई गंभीर जुर्म और सारा जीवन जेल में ।मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को मानना है कि उत्तर प्रदेश में जहाँ ज्यादातर माफिया और बाहुबली हत्या जैसे गंभीर मामलों में बरी कर दिए जा रहे हो वह झोला भर किताब के नाम पर आजीवन कारावास की सजा न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है । ठीक विनायक सेन की तरह सीमा आजाद को भी सजा सुनाई गई थी ।

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