Wednesday, August 1, 2012

हर जगह बिखरा इतिहास ,असंख्य दुर्ग किले पर सैलानी नहीं

अंबरीश कुमार
ओरछा , जुलाई । यह वह अभिशप्त शहर है जिसे पुराने लोगों के मुताबिक कई बार उजड़ने का शाप मिला था पर आज भी यह शहर इस आदिवासी अंचल में पर्यटन से रोजगार की नई संभावनाओ को दिखा रहा है ।बुंदेलखंड में खजुराहो के बाद ओरछा में सबसे ज्यादा सैलानी आते है पर इसके बाद वे लौट भी जाते है । शाम होते ही बेतवा के तट पर विदेशी सैलानी नजर आते है जो बुंदेले राजाओं की ऐतिहासिक इमारतों को देखने के बाद पत्थरों से टकराती बेतवा की फोटो लेते है । बात करने पर पता चला कि अब वे खजुराहो से लौट जाएंगे क्योकि कोई और ऐतिहासिक जगह की ज्यादा जानकारी नहीं है । यह बताता है कि पर्यटन क्षेत्र किसी की भी प्राथमिकता पर नहीं है । तेरह जिलों में फैले बुंदेलखंड में जगह जगह इतिहास बिखरा है पर कही भी बड़ी संख्या में सैलानी नहीं आते है क्योकि पर्यटन क्षेत्र को विकसित ही नहीं किया गया है ।जो विशेषज्ञों के मुताबिक बुंदेलखंड में कम से कम खर्च में ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दे सकता है।बुंदेलखंड की राजनीति और पैकेज की राजनीति करने वालों ने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया है ।अगर सिर्फ इस अंचल की धरोहर को सहेज कर उन्हें पर्यटन के नक़्शे पर लाया जाए बड़ी संख्या में लोगो को रोजगार मिल सकता है और पलायन भी रुक सकता है ।इस अंचल में सैलानियों को आकर्षित करने के लिए बहुत कुछ है । ऐतिहासिक दुर्ग ,किले ,घने जंगल ,हजार साल पुराने मीलों फैले तालाब और शौर्य व संघर्ष का इतिहास । चरखारी का किला है जो लाल किला से बड़ा है तो झाँसी का किला शौर्य का प्रतीक है ।गढ़ कुंडार का रहस्मय किला है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते है और कुछ समाज शास्त्री इसे सन ११९२ के बाद के दौर में खंगारों के दलित राज के रूप में भी देखते है ।जिस राम लला के लिए अयोध्या में मंदिर आंदोलन हुआ वह राम लला इसी ओरछा के राजा के रूप में पूजे जाते है । यहाँ आल्हा उदल के किस्से है तो लोक संगीत और नृत्य की पुरानी परंपरा भी । इस क्षेत्र में औसत वर्षा ९५ सेमी होती है जबकि राष्ट्रीय आंकड़ा ११७ सेमी का है जो बताता है कि कृषि की सीमित सम्भावना है । असंख्य किले ,दुर्ग ,ताल तालाब और ऐतिहासिक विरासत वाला यह अंचल दो राज्यों के साथ केंद्र सरकार की प्राथमिकता पर नजर आ रहा है ।यह बात अलग है कि बुंदेलखंड पैकेज का बहुत कम हिस्सा आम लोगों के काम आया है । आसपास के विभिन्न इलाकों का दौरा करने और लोगो से बात करने पर यह बात सामने आई ।बुंदेलखंड पर कुछ समय से काम करने वाली सुविज्ञा जैन ने कहा -यहाँ पानी है ,इतिहास है ,लोक संस्कृति है जो किसी भी पर्यटन स्थल के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है जिसके चलते अगर कम पैसों की भी कुछ योजनाए बनाई जाए इस क्षेत्र को फौरी राहत तो मिल सकती है जो पलायन से बुरी तरह प्रभावित है । यह भी कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पुराने डाक बंगलों को अगर दुरुस्त कर हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया जाए तो पैसा भी बचेगा और सैलानियों को सुविधा भी मिल जाएगी । दूसरी तरफ इस क्षेत्र के वीरसिंह भदौरिया ने कहा -बुंदेलखंड को बचाने के लिए अगर पर्यटन पर फोकस किया जाए तो भी काफी कुछ हो सकता है । पर इसके लिए कुछ बुनियादी सुविधाए मसलन अच्छी सड़के,परिवहन सेवाए ,मोटल ,के साथ कानून व्यवस्था आसी पर ध्यान देना होगा । दरअसल यहाँ खेती से ज्यादा कुछ संभव नहीं है और अन्य उद्योगों के मुकाबले पर्यटन क्षेत्र में ज्यादा संभावनाए है ।यह बात बेतवा के किनारे कभी बुंदेलों की राजधानी रही ओरछा में नजर आती है जो इस इलाके में खजुराहो के बाद दूसरे नंबर का पर्यटन स्थल है जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है । मध्य प्रदेश के हिस्से में पडने वाले बुंदेलखंड की स्थिति कुछ इसलिए भी बेहतर है क्योकि वहां उत्तर प्रदेश की तरह प्राकृतिक संसाधनों की लूट भी नहीं हुई है । यही वजह है कि मध्य प्रदेश में पर्यटन स्थल और उससे जुड़ी सुविधाए ज्यादा बेहतर है और उत्तर प्रदेश में बहुत कम क्या न के बराबर । ऐसा नहीं कि इस क्षेत्र में महतवपूर्ण और ऐतिहासिक स्थल न हो पर उत्तर प्रदेश सरकार और पर्यटन इस अंचल में एक दुसरे से अलग नजर आते है । ओरछा में बेतवा का पानी है तो घने जंगल सामने दिखाई पड़ते है । बेतवा तट पर विदेशी पर्यटकों को देख हैरानी भी होती है । पर दूसरी तरफ झांसी बरुआ सागर ,देवगढ ,चंदेरी ,महोबा ,चित्रकूट ,कालिंजर और कालपी जैसे ऐतिहासिक पर्यटन स्थल होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के इस क्षेत्र में सैलानी नजर नहीं आते है । सड़क तो उरई छोड़ ज्यादातर जगह ठीक हो गई है पर न तो परिवहन व्यवस्था ठीक है न ढंग के होटल मोटल । जबकि मध्य प्रदेश के बहुत ही दुर्गम इलाके में गढ़ कुडार का ऐतिहासिक किला तक ले जाने वाली सड़क देखने वाली है ।कहा जाता है कि हमले में हर से पहले आठवी शताब्दी में यहाँ के राजा के साथ प्रजा ने भी एक कुंड में कूदकर जान दे दी थी ।इस तरह की कहानियां और किस्से बुंदेलखंड में उसी तरह बिखरे हुए है जैसे दुर्ग और किले । ओरछा के फिल्मकार जगदीश तिवारी के मुताबिक इस क्षेत्र में पर्यटन और लोक संस्कृति के क्षेत्र में बहुत संभावनाए है । अगर सरकार पहल करे तो बहुत कुछ हो सकता है ।मुंबई से फिल्म उद्योग के लोगों ने ओरछा और आसपास कई फिल्मो की शूटिंग की है जिनमे बड़ी फिल्मों से लेकर विज्ञापन फिल्मे भी शामिल है । यही वजह है कि ओरछा में कई बड़े रिसार्ट चल रहे है और उत्तर प्रदेश सरकार चाहे तो वह भी काफी कुछ कर सकती है । पहले तो नहीं पर अब अखिलेश यादव सरकार से लोगों को उम्मीद भी है । उत्तर प्रदेश हो या मध्य प्रदेश सभी का हाल ख़राब है । दमोह के डा सुरेंद्र चौरसिया ने कहा -ऐतिहासिक धरोहरों की बुरी तरह अनदेखी की जा रही है । हमारे यहाँ के म्यूजियम में इतिहास के महत्वपूर्ण दस्तावेज जमीन पर बिखरे मिल जाएंगे । jansatta

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