Wednesday, August 8, 2012

पुलिस ने मानसिक यातना दी -सीमा आजाद

अंबरीश कुमार
लखनऊ, ७ अगस्त । मानवाधिकार कार्यकर्त्ता सीमा आजाद को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने मानसिक रूप से प्रताड़ित किया था । यह जानकारी आज सीमा आजाद ने जनसत्ता से बात करते हुए दी । माओवादियों से संबंध और नक्सली साहित्य रखने के आरोप में गिरफ्तार की गई सीमा आजाद और विश्व विजय को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद मंगलवार को रिहा किया गया था । इनपर देशद्रोह का आरोप भी लगा जो देश के प्राक्रृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ संघर्ष कर रही थे । करीब ढाई साल जेल में बिताने वाली सीमा आजाद अब सबकुछ नए सिरे से शुरू करने जा रही है । हालत यह है कि इस समय उनकी पास संपर्क के लिए न तो कोई फोन है और न लैपटाप आदि । सीमा आजाद अब उन राजनैतिक बंदियों की लड़ाई शुरू करेंगी जो विभिन्न मामलों में उत्तर प्रदेश की जेलों में है । इस बीच पीयूसीएल ने ११ अगस्त से विभिन्न प्रदेशों की राजधानी में जल जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने वालों पर देशद्रोह और अन्य आपराधिक धाराएँ लगाने के खिलाफ अभियान छेड़ेगा जिसमे सीमा आजाद भी शरीक होंगी । गौरतलब है कि पांच फरवरी २०१० को दिल्ली के पुस्तक मेले से झोला भर किताबो के साथ इलाहाबाद लौट रही सीमा आजाद को पुलिस ने गिरफ्तार कर मार्क्स ,लेनिन और चेग्वेरा की पुस्तकों को माओवादी साहित्य बताकर जो जेल भेजा तो वे तबसे बाहर नही आ पाई और बाद में निचली अदालत ने न सिर्फ उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी बल्कि अस्सी हजार का जुर्माना भी ठोक दिया । इस सजा को सुनकर सभी हैरान थे क्योकि न कोई हथियार ,न कोई खून खराबा न कोई गंभीर जुर्म और आजीवन कारावास ।पर जेल से बाहर आने के बाद वे और मजबूरी के सरह संघर्ष के लिए तैयार है । भविष्य के बारे में पूछने पर सीमा आजाद का जवाब था -सही बात तो यह है कि हम जब प्रदेश की जेलों में बंद राजनैतिक बंदियों का सवाल उठाने की तैयारी में थे तभी मुझे भी गिरफ्तार कर लिया गया । हमने तो शुरुआती सर्वेक्षण भी किया था पर सब पर पानी फिर गया ,अब फिर से शुरू किया जाएगा । गिरफ्तारी के बाद पुलिस का और बाद में जेल का अनुभव कैसा था यह पूछने पर उनका जवाब था -गिरफ्तारी के बाद शारीरिक यातना तो नही दी गई पर मानसिक रूप से बहुत प्रताड़ित किया गया । जेल में भी काफी संघर्ष करना पड़ा । अख़बार बहुत मुश्किल से मिलना शुरू हुआ । जो कुछ वहा लिखा वह जेल क अफसरों ने संभवतः खुद ही रख लिया आगे नहीं भेजा । जो लिखा गया उसकी भी पड़ताल की जाती । बाहर से जो पत्र आता वह भी नहीं मिलता । जेल में महिला बंदियों की स्थिति कैसी है के जवाब में सीमा ने कहा -महिला बैरक में भी बहुत ख़राब हालत है । औसतन साठ सत्तर बंदी रहती है पर बुनियादी सुविधाएँ भी न की बराबर है । संख्या के लिहाज से टायलट बहुत कम है । वहां भी बहुत सी महिला बंदी ऎसी है जो जमानत न मिलने की वजह से जेल में है । उनकी यह स्थिति नहीं कि अदालत जा सके हाईकोर्ट जाना तो बहुत बड़ी बड़ी बात है । यह बहुत ही गंभीर सवाल है जिनकी बारे में मानवाधिकार संगठनों को आगे आना चाहिए । इस बीच कुछ संगठन भारत छोड़ो आंदोलन की 70वीं सालगिरह के मौक़े पर कल 9 अगस्त से लखनऊ में जनद्रोही क़ानूनों और राज्य दमन के ख़िलाफ़ साझा दस्तक देने जा रहे है । सांस्कृतिक संगठन दख़ल की पहल पर आयोजित हो रहे इस सात दिवसीय कार्यक्रम का समापन स्वाधीनता दिवस, 15 अगस्त को होगा। कार्यक्रम का मक़सद है- जनद्रोही क़ानूनों और राज्य दमन के ख़िलाफ़ लोगों को जगाना और जोड़ना, सच्ची आज़ादी के लिए आवाज़ बुलंद करना। कार्यक्रम का नारा है- देशभक्ति का स्वांग बंद करो, जनद्रोही क़ानून रद्द करो, पिंजरा खोलो, जनता को आज़ादी दो।कार्यक्रम के साझीदारों में राष्ट्रीय स्तर पर गठित काला क़ानून एवं दमन विरोधी मंच और सीमा-विश्वविजय रिहाई मंच के अलावा अमुक आर्टिस्ट ग्रुप, भारतीय जन संसद, इंडियन वर्कर्स कौंसिल, इनसानी बिरादरी, क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच, मज़दूर परिषद आदि जनपक्षधर संगठन शामिल हैं।इस साझा कार्यक्रम का पहला पड़ाव धरना स्थल होगा जहां 9 अगस्त को शाम 3 से 5 बजे तक नुक्कड़ सभा होगी। सभा में शायर तश्ना आलमी अपना कलाम भी पेश करेंगे। 15 अगस्त को कार्यक्रम का समापन भी धरना स्थल पर होगा। बाक़ी पांच दिन शहर के विभिन्न इलाक़ों में नुक्कड़ सभाएं होंगी। jansatta

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