Thursday, August 2, 2012

हरे भरे खेतों से गुजरते हुए

अम्बरीश कुमार सपरार बांध के डाक बंगले में रुक तो गए पर कुछ अजीब सा माहौल था .थोड़ी देर टिफिन खुला और खाना हुआ .बाहर निकले तो करीब दर्जन भर कुत्ते इधर उधर सोए मिले .बाहर ज्यादा कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था .बात होती रही और नींद आ गई .अचानक गर्मी से नींद खुली तो बाहर से आवाज आ रही थी .बिजली जा चुकी थी .समय रात के करीब साढ़े ग्यारह बजे थे .चौकीदार ने बताया अब रात में बिजली आए ,यह जरुरी नहीं है .भारी उमस रही क्योकि लगातार बरसात हो रही थी और मच्छर भी .दूसरे दिन बहुत व्यस्त कार्यक्रम था ऐसे में सोना जरुरी था .सविता ने कहा ,मऊ रानीपुर के होटल में चलते है जहाँ रुकने की वैकल्पिक व्यवस्था थी .मेरा मन बिना इस जगह को देखे जाने का नहीं था पर यह तय किया गया कि सुबह फिर यहाँ आ जाएंगे.होटल मोती करीब आधे घंटे में पहुँच गए .सुधीर जैन को जगाया .बिजली यहाँ भी नहीं थी पर जेनरेटर से एसी भी चल रहा रहा था .खैर नींद ठीक से आई .सुबह तैयार होते ही सपरार बांध की तरफ चले .काफी हराभरा माहौल .सड़क के दोनों और पानी भरा नजर आ रहा था .रात में कुछ दिख नहीं रहा था पर सुबह के समय यह इलाका देखने वाला था .बीच बीच में खेत औरर दूर तक जाती हरियाली .इससे पहले कि सड़क दो पहाड़ों के बीच में खो जाए हमारी कर दाहिने मुड गई .रास्ता ठीकठाक था .बाये तरफ पहाड़ कटा हुआ नजर आ रहा था और कुछ मजदूर उस कटे हुए पहाड़ को भी काटने में लगे थे .कुछ दूर पर एक गाँव पड़ा जहाँ सुबह सुबह कुछ महिलाए घर का कामकाज करती नजर आई .करीब दस मिनट बाद एक छोटी सी पहाड़ी की तरफ संकेत करता हुआ एक बोर्ड नजर आया जिस पर निरीक्षण भवन लिखा था .यही वह जगह थी जहाँ रात में रुके थे .ऊपर जाते पहाड़ की चोटी परर कुछ पत्थर खड़े नजर आ रहे थे .कुछ देर रुकने के बाद हम बांध की तरफ चले .बांध के उस पर सपरार नदी एक बड़ी झील में तब्दील हुई नजर आ रही थी .सुबह का मौसम ठंढा था और पहाड़ों के बीच इस नदी को देखना अच्छा लग रहा था . याद आया कर्यक्रम दस बजे शुरू होना है इसलिए वहा से लौट आए .समय से कुछ देर में नवोदय विद्यालय पहुंचे .
पर कई पेपर रखे गए .अपने जनसत्ता के पुराने साथी विनीत नारायण ने मथुरा में किस तरह तालाब और कुंड बचाए गए इसे विस्तार से बताया .मुझे यहाँ से जल्द निकलना था लखनऊ के लिए इसलिए सोचा यही खबर बना दी जाए तो कवरेज भी हो जाएगी .सुविज्ञा ने प्रिसिपल के कमरे में रखे कंप्यूटर पर बैठा दिया .भारी उमस और पंखा बहुत धीमी रफ़्तार से चलने वाला .खबर बना ही रहा था तभी मऊरानीपुर की विधायक रश्मि आर्य आ गई और उनसे कुछ बात हुई तभी केन्द्रीय मंत्री प्रदीप जैन भी पहुँच गए .इस बीच सविता अपनी दादी से मिलने चली गई और मैंने खबर पूरी कर भेज दी .बीच में कई बार खाने के लिए भी टोका गया सुविज्ञा की कोई सहेली बाद में वही खाना भी रख गई . इस बीच बरसात शुरू हुई और काफी तेज हो गई .करीब तीन बज गए थे तभी सविता का फोन आया कि वे गाड़ी में बाहर है और एज बरसात की वजह से भीतर आना मुश्किल है इसलिए मै बाहर आ जाउ .यह भी बताया कि उनका खाना हो चुका है पर ड्राइवर को खाना है .वहां से सीधे कुंडार गढ़ का किला देखते हुए लखनऊ निकलना था और रास्ते में कोई ढाबा भी नहीं था इसलिए ड्राइवर का खाना पैक करा लिया .उसे बता भ दिया जब हम लोग किला देख रहे होंगे तब खाना खा लेना .नवोदय विद्यालय के पोर्टिको में गाड़ी लगी थी पर इतनी तेज बरसात कि कुरते पैजामे के साथ कोल्हापुरी चप्पल भी पानी में भीग गई . हरे भरे पहाड़ बारिश की धुंध में खोते नजर आ रहे थे .इस तरफ बरसात के चलते खेत भी काफी हरे भरे थे .बुंदेलखंड में हर कुछ दूरी पर मंदिर ,गढ़ और ताल तालाब दिख जाते है .हम लोग निवाड़ी से दाहिने मुड़े तो शाम के पांच बज रहे थे .अठारह किलोमीटर दूर वह किला था .इस किले की खास बात यह भी बताई गई कि यह दूर से तो दीखता है पर पास पहुचने पर नजर नहीं आता .रास्ता बहुत खुबसूरत है .दोनों तरफ घने छायादार दरख़्त और दूर तक फैले हरे खेत .बीच बीच इ महुआ की सुर्ख होती पतियों वाले पेड़ भी नजर आए .रास्ते में एक हाट बाजार नजर आया तो रुक गए .सविता बुंदेलखंड की है और बुन्देलखंडी भाषा बोलना अच्चा लगता है इसलिए सब्जी बेचने वाली महिला से बात करने लगी .बार करते करते हरे बैंगन ,टमाटर और बोदा आदि खरीद लिया .मैंने अपना कैमरा घुमाया तो सामने एक जवान युवती ने फ़ौरन घूँघट डाल लिया .देर हो रही थी इसलिए ज्यादा देर वहा रुके नहीं आगे बढ़ गए .(जारी )

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