Sunday, August 5, 2012

नए राजनैतिक समीकरण की आहट !

अंबरीश कुमार लखनऊ , अगस्त । आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर नए राजनैतिक समीकरण की आहट महसूस हो रही है । भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी की टिपण्णी को भी इसी रोशनी में देखा जा रहा है । लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बाद सबसे पड़ी पार्टी के रूप में समाजवादी पार्टी के उभरने की संभावना है और मुलायम सिंह यादव इसे देखते हुए अभी से पार्टी और सरकार को कसने में जुट गए है । यह माना जा रहा है कि चुनाव के साथ ही पुराने समीकरण टूटेंगे और नए बनेगे । इस समीकरण में दक्षिण भारत के राजनैतिक दलों के साथ उत्तर और पूर्वोत्तर के राजनैतिक दलों की भूमिका भी बदलेगी । ऐसे में मुलायम सिंह संख्या बल के आधार पर भी महत्वपूर्ण भूमिका में होंगे । यही वजह है कि मुलायम सिंह संगठन को लगातार तैयार कर रहे है । मुलायम सिंह ने यहाँ पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं और नेताओं से कहा - आप लोग संगठन की मजबूती पर जोर दें। पांच वर्षो के संघर्ष के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है और अब सन् 2014 के चुनावों के लिए जो लक्ष्य है उसे संगठन की एकता और कार्यकर्ताओं के परिश्रम से ही पाया जा सकता है। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा का बहुमत नहीं आएगा। अपने-अपने राज्यों से क्षेत्रीय दलों के सांसद जीतकर आएगें। ऐसे में समाजवादी पार्टी की केन्द्र में प्रभावी और महत्वपूर्ण भूमिका होगी। मुलायम सिंह संगठन पर काफी जोर दे रहे है पर चुनाव के पहले ही सरकार की उपलब्धियां भी बहुत मायने रखेंगी ।उत्तर प्रदेश सरकार जिसे अभी चार महीने हुए है और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मुताबिक उन्हें काम करने का वक्त सिर्फ दो महीने मिला है क्योकि बड़ा समय आचार संहिता और विधान सभा सत्र में चला गया । ऐसे में कानून व्यवस्था का मामला हो या चुनावी वायदों के नतीजे देने का दोनों पर असर पड़ा है । दूसरे यह सभी जानते है कि यह मंत्रिमंडल मुलायम सिंह की पुरानी टीम का ज्यादा है
का बहुत कम ,जहा हर मंत्री चाचा ताऊ की भूमिका में है । यही वजह है कि मुलायम सिंह को बार बार उन मंत्रियों को आगाह करना पड़ रहा है जो पुरानी संस्कृति छोड़ नहीं पा रहे है । यह दिक्कत उन पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ भी है जो राजनैतिक बदलाव को गंभीरता से नहीं ले रहे और उनकी अराजकता से कई बार प्रशासन की फजीहत भी होती है । वरिष्ठ भाकपा नेता अशोक मिश्र ने कहा -यह तय है कि आगामी लोकसभा चुनाव बाद केंद्र में कांग्रेस या भाजपा की सरकार बनाना बहुत मुश्किल है और ऐसे में क्षेत्रीय दलों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होगी । इन दलों में समाजवादी पार्टी करीब चालीस सीट तक जीत गई तो बड़ी भूमिका में रहेगी । क्योकि तेलुगू देशम ,बीजू जनता दल से लेकर पूर्वोत्तर के दल नए समीकरण बना सकते है । जब नौ सीट वाले दल सरकार पर दबाव बना सकते है तो ज्यादा सीट वाले दल की भूमिका तो महत्वपूर्ण होगी ही । पर अब अखिलेश सरकार को अब नतीजे देने होंगे और पार्टी कार्यकर्ताओं की अराजकता पर कड़ी कार्यवाई करनी होगी तभी उनकी अलग छवि बनेगी ।आए दिन सपा का कोई न कोई कार्यकर्त्ता किसी न किसी जिले में गुंडागर्दी करता पकड़ा जाता है और पुलिस पर धौंस भी जमाता है । दरअसल समाजवादी पार्टी के सामने अपनी पुरानी राजनैतिक संस्कृति के साथ सरकार की उपलब्धियां दोनों बड़ी चुनौती है ।ऐसा नहीं कि कुछ बदलाव नहीं आया है ।समजवादी पार्टी की सरकार आने बाद राजनैतिक संस्कृति भी बदली है । विरोध प्रदर्शन की परंपरागत जगह बहाल हुई । आम लोग मुख्यमंत्री तक पहुंचे । राजनैतिक कटुता में कमी आई । यह वही समाजवादी पार्टी है जिसके नेताओं पर मायावती पर हमला करने का मामला दर्ज हुआ था और अबक जब मायावती की मूर्ति तोडी गई तो न सिर्फ मुलायम सिंह बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उसकी कड़ी निंदा की और दस घंटे में नई मूर्ति लगा दी गई ।यह बदलती राजनैतिक संस्कृति को दर्शाता है । यही वजह है कि अब मुलायम सिंह अपने कार्यकर्ताओं और मंत्रियों को नसीहत देते हुए कहते है कि उन्हें रागद्वेष से काम नहीं करना है। घमंड नहीं करना है। लालच में नही पड़ना है। कार्यकर्ताओं को ट्रांसफर पोस्टिंग के काम में नही लगना है। ध्यान रखना होगा कि भ्रष्टाचार और पक्षपात का आरोप सरकार पर न लगे। जिम्मेदारी बड़ी है उसे बड़प्पन के साथ ही निभाना होगा। यह बताता है कि लक्ष्य २०१३-१४ का लोकसभा चुनाव है । jansatta

2 comments:

  1. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि उत्तर प्रदेश में सपा सरकार का काम कैसा रहता है। पिछले चुनाव में वोट प्रतिशत के लिहाज से सपा का करिश्मा असाधारण नहीं था। केवल सीटें ही ज्यादा थीं। इसका कारण है उत्तर प्रदेश में बहुकोणीय मुकाबला। शहरों के कुछ फीसदी वोट फर्क डाल रहे हैं। अखिलेश यादव लैपटॉप वगैरह देने वाले हैं। इनसे बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा। रोज़गार, नागरिक सेवाएं और शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार की ज़रूरत है। लोग काम के लिए शहरों में आएंगे। बेहतर हो कि उन्हें पंजाब, दिल्ली, मुम्बई या बेंगलुरु जाने के बजाय घर के पास काम मिले। मोर्चे के ज़रूरत है, पर किसका मोर्चा?

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  2. जब मुलायम ट्रांफर पोस्टिंग से कार्यकर्तायों को अलग रहने की बात करते हैं तो उनके कार्यकर्ता निराश ही होते हैं .

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