Tuesday, August 14, 2012
बलात्कार की फरियाद पर पुलिस वाले ने कहा -थाने में ही पेट्रोल डालकर फूंक दूंगा
अंबरीश कुमार
लखनऊ , १४ अगस्त । देश स्वतंत्रता दिवस की ६५ वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है पर आज भी आजादी का यह जश्न देश के हर आदमी के लिए नहीं है जो दमन ,उत्पीडन और शोषण का शिकार है । देश में गाँधी परिवार की सरकार है तो प्रदेश में समाजवादी सरकार । इस सबके बावजूद पुलिस और गाँव के दबंगों का सामंती तौर तरीका बरकरार है । सीतापुर के सकरन थाना में एक विकलांग गरीब जब अपनी चौदह साल की बेटी के बलात्कार की रपट दर्ज करने कई बार गया तो दिलीप कुमार नामक पुलिस वाले ने कहा -अब आए तो यही थाने में पेट्रोल डालकर फूंक दूंगा । थाना में यह सलूक हुआ तो थाने से बाहर गाँव लौटते हुए बलात्कार करने वाले सुशील के दबंग जीजा कमलेश ने कहा , साले जान से मार दूंगा और कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा पुलिस हमारे साथ है ,समझे । यह बानगी है ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस प्रशासन और अपराधियों के सह संबंध की । मामला यही तक सीमित नहीं रहा पुलिस ने बलात्कार की रपट लिखवाने की पैरवी कराने वालों को फंसाने में जुट गई । यह पुलिस का पुराना हथकंडा रहा है । पीड़ित परिवार जिसकी चौदह साल की बच्ची की पहले आबरू लुटी गई अब गाँव के गुंडों से जान बचाने के लिए भाग दौड़ कर रहे है । पीड़ित का मुद्दा उठाने वाला चचेरा भाई संजय इस मामले के बाद बीस दिन से सीतापुर में शरण लिए हुए है क्योकि गाँव के बदमाश कमलेश ,देशपाल और बिहारी चौकीदार ने धमकी दे रखी है कि गाँव में दिखे तो गोली मार दी जाएगी । ये वही संजय है जिनकी कुछ साल पहले इसी सकरन थाने में बर्बरता से पिटाई कर दी गई थी । संजय ने फोन पर कहा -बहुत मुश्किल से रपट लिखी गई और अब पुलिस और बदमाश दोनों पीछे पड़ गए है,साहब जान बचवा दो वर्ना ये सब मार डालेंगे ।
सीतापुर के सकरन थाना से करीब तीन मील की दूरी पर बसा है देवमान बेलवा गाँव । गाँव में ज्यादातर लोग लोनिया ,चमार और पासी बिरादरी के है । यही करीब पैतालीस साल का सुरेश रहता है जिसके पास ढाई बीघा खेत है पास के स्कूल में तो मिड डे मील बनाने का काम मिला हुआ है । उसकी चौदह साल की बेटी जब शाम के समय खेत में गई हुई थी तभी गाँव के दो बिगड़े हुए युवको ने उसके साथ बलात्कार किया । बाद में यह जानकारी गाँव के लोगों को हुई तो दलित बस्ती में बैठक हुई और थाने में रपट लिखाने का फैसला हुआ । थाने में वही हुआ जो आमतौर पर पुलिस करती है । थानेदार ने रपट न लिखाने की सलाह देते हुए समझाया कि गाँव का मामला है इस सब चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए । लड़की को अलग धमकाया गया । बाद में एसपी के दखल पर रपट लिखी गई तो फरियादी की जान पर बन आई । अब वे हर आहट पर डर जाते है । सुरेश ने कहा - इतना अत्याचार हुआ और अब पुलिस बदमाश का साथ दे रही है ,हमलोग आतंकित है । घर से बाहर जाने में डर लगता है । बेटी अलग दहशत में है । भतीजा भागा भागा फिर रहा है । इस एक घटना से ज्यादातर गाँव के हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है । इस तरह की घटनाए एक नहीं कई जगह हो चुकी है जो अपनी आजादी के जश्न पर सवालिया निशान भी लगाती है ।
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क्या पुलिस में दलित अफसर और सिपाही नहीं हैं ? क्या नौकरी पाकर वे भी बदल गए हैं ? क्या उनकी भी संवेदनाये मर चुकी हैं ? या उनके लिए भी पैसा सबकुछ हो गया है , बसपा के नेता इनकी मदद क्यों नहीं करते ? बड़े सोचनीय हालत हैं !
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