Tuesday, November 22, 2011

चीन पाक कला में भी पीछे नहीं

अरुणेंद्र नाथ वर्मा
पंद्रह दिनों की चीन यात्रा में खाने को क्या मिलेगा, यह प्रश्न मेरी पत्नी को सता रहा था। अनेक देशों की यात्रा करते हुए पाश्चात्य शैली के भोजन की वे अभ्यस्त हो गई हैं। फिर लगभग सभी देशों में भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के साथ भारतीय भोजन भी खूब मिलने लगा है। पर चीन के विषय में मन में बहुत से पूर्वग्रह थे। कुत्ता, बिल्ली, बंदर, गिरगिट, सांप, कीड़े मकोड़े- सभी कुछ वहां खाए जाते हैं। सामिष भोजन किया तो क्या इन सबसे बचना संभव हो पाएगा? दूध-दही से चीनियों को प्रेम है नहीं! तो क्या चावल-नूडल और उबली सब्जियों पर ही निर्वाह करना पड़ेगा? यह सोच कर यात्रा के प्रति उनका उत्साह ठंडा पड़ता जा रहा था।
मेरी तरह सेना में कई दशक बिताए होते और भारत की पूर्वोत्तर सीमाओं- विशेषकर नगालैंड और मिजोरम में रहने का अवसर मिला होता तो शायद वे जानतीं कि कुत्ते, बंदर और सांप भारत के भी कई भागों में खाए जाते हैं। बड़े चूहे (बैंडीकूट और फील्ड रैट) तो बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, संथाल परगना आदि में अनेक जनजातियां शौक से खाती हैं। सेना में कमांडो फोर्स के प्रशिक्षार्थियों को बताया जाता है कि सिर अलग करने के बाद सांप का मांस स्वाद में किसी श्वेतमांस (मछली-चिकेन आदि) के जैसा ही होता है और प्रशिक्षार्थी चाहें तो उसे खाने का अवसर दिया जाता है। चीन में कुत्ते के मांस को सर्दियों का पौष्टिक आहार मानते हैं और सांप को गर्मियों के लिए। सुदूर उत्तर चीन और कोरिया में बंदर का मस्तिष्क स्वादिष्ट समझा जाता है। चिड़िया तो हर प्रकार की ही भक्ष्य है, पर गिद्ध नहीं। कीड़े-मकोड़ों की भी खैरियत नहीं। मछली का मांस कच्चा या अधकच्चा जापान (सूशी बहुत लोकप्रिय है), नीदरलैंड, स्कैंडिनेविया, आइसलैंड या ग्रीनलैंड की तरह चीन में भी खूब खाया जाता है।
इतना कहने के बाद यह स्पष्टीकरण आवश्यक हो जाता है कि पर्यटकों के लिए अखाद्य खाने की मजबूरी नहीं आती। सभी होटलों- रेस्तराओं में चावल, मक्की या गेहूं के नूडल, सोयाबीन की पनीर (टोफू) आदि मुख्य भोजन के रूप में और साथ में अनेक सब्जियां, जैसे टमाटर, गाजर, गोभी, ब्रोकेली, मटर, लौकी, कद्दू, तोरी, बैंगन, मशरूम, नरम भुट्टे और बांस की कोंपल आदि खूब मिलते हैं। फल भरपूर मात्रा में मिल जाएंगे। मांसाहारियों के लिए बकरे का मांस, गोमांस, मुर्गी, बत्तख, मछली, झींगे आदि भी उपलब्ध होता है। वे जानते हैं कि कुत्ता, बंदर, सांप और कीड़े-मकोड़े से विदेशी पर्यटकों को अरुचि, बल्कि जुगुप्सा होती है। यह सब अच्छे होटलों में गलती से भी खाने की नौबत नहीं आती।चीन की पांच हजार साल पुरानी सभ्यता पाक कला में भी पीछे नहीं है। उनके भोजन की आठ मुख्य शैलियां हैं- अनह्युई, कैंटोनीज, फूजियान, हुनान, शानडांग, जियांगसू, सिजुआन (या सिचुआन) और ज्हेजियांग। अल्पसंख्यकों और सीमावर्ती जनजातियों की अपनी भोजन शैलियां हैं, जैसे सिनकियांग और उगयूर प्रदेश जैसे मुसलिम बहुल क्षेत्रों में हलाल मांस का कबाब, सीख कबाब और तिब्बत का याक का मांस आदि। पर वास्तव में पाक कला की चार ही मुख्य शैलियां हैं- कैंटोनीज (गुवांगडांग), शानडांग, जिआंगसू और सिचुआन। कैंटोनीज भोजन में डिमसूम आदि कई व्यंजन छोटी-छोटी मात्रा में (गुजराती थाली जैसी) परोसे जाते हैं तो जिआंगसू में तंदूरी मछली आदि का बाहुल्य है। बीजिंग की बीजिंगडक तो हमारे तंदूरी चिकन टिक्के की तरह विश्वविख्यात है। शंघाई के निकटस्थ क्षेत्र का समुद्री भोजन- झींगे-केकड़े, घोंघे आदि प्रसिद्ध हैं। सिचुआन शैली लहसुन, अदरक, लाल-काली मिर्च, तिल, पिसी मूंगफली और अनेक मसालों, चटखारेदार चटनी आदि के कारण हम भारतीयों की स्वादग्रंथि को आकर्षित करती हैं तो कैंटोनीज पाक शैली कम मिर्च मसाले वाले सादा भोजन करने वाले भारतीयों को भाएगी। लेकिन हम भारतीयों को भारत में जो चीनी भोजन मिलता है, वह स्वाद में चीन के चीनी भोजन से बहुत हट कर है।
सच तो यह है कि नए देश में जाकर वहां के व्यंजनों का स्वाद न लिया तो पर्यटन का पूरा आनंद नहीं। फिर भी भोजन में प्रयोगवाद से घबराने वाले चिंतित न हों। चीन के सभी बड़े शहरों में कई भारतीय रेस्तरां मिल जाएंगे। तुरंता भोजन के शौकीनों के लिए मैकडोनाल्ड, पिज्जा हट, सबवे, केएफसी आदि की कई शाखाएं हर बड़े शहर में मिल जाएंगी। फलों की कमी नहीं है। चाय बिना दूध-शक्कर के पी सकते हैं तो ढेरों तरह की ‘ग्रीन’ और सुगंधित (जैस्मिन आदि) चाय मिल जाएगी और अगर दूध चीनी मिला कर उसे बर्बाद करना ही चाहें तो पाउडर-दूध भी मिल जाएगा। पर भइया, दाल, भात, रोटी ही खाना है और सास-बहू का धारावाहिक देख कर सो जाना है तो पर्यटन के लिए इतनी दूर जाएं ही क्यों!
जनसत्ता

No comments:

Post a Comment