Thursday, November 10, 2011

धरोहर पर संकट के बादल


अंबरीश कुमार
लखनऊ, नवंबर । उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती नए लखनऊ के निर्माण में जुटी है पर पुराना लखनऊ बदहाल है । अवध के नवाबो की ऐतिहासिक ईमारतों पर संकट के बदल मंडरा रहे है । अवध के पहले बादशाह गाजिउद्दीन हैदर ने जो छतरमंजिल बनवाई थी उसका पोर्च मंगलवार को अचानक ढह गया । जिसको न दे मौला उसको दे आसिफुद्दौला वाले आसिफुद्दौला के बनवाये रूमी दरवाजा में दरार आ गई है तो वाजिद अली शाह के पिता अमजद अली शाह का मकबरा अतिक्रमण का शिकार है । शाहनजफ इमामबाडा के परिसर को शादी ब्याह के लिए भाड़े पर दिया जाता है । शादी ब्याह और पार्टियों के चलते यहाँ शोर शराबा और खाना पीना भी चलता है । खाना बनाने के लिए भठ्ठियां सुलगती रहती है और धुआं ऐतिहासिक ईमारत को नुकसान पहुंचता है । इसका निर्माण भी बादशाह गाजिउद्दीन हैदर ने 1816-17 में करवाया था ।बड़ा इमामबाडा परिसर से लेकर छोटा इमामबाडा परिसर में लोगों ने माकन से लेकर दुकान तक खोल ली है । यह बानगी है लखनऊ के ऐतिहासिक ईमारतों की बदहाली की ।
मंगलवार को छतरमंजिल का पंद्रह फुट ऊंचा और तीस फुट लम्बा पोर्च अचानक गिर जाने के बाद सब की नींद खुली है । यह ऐतिहासिक इमारत है और कई दशक से इसमे सेंट्रल ड्रग रिसर्च सेंटर की प्रयोगशाला चल रही है । उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व निदेशालय के निदेशक राकेश तिवारी के मुताबिक यह इमारत जर्जर हो चुकी है और सीडीआरआई को करीब एक दशक पहले ही इसकी जानकारी दे दी गई थी पर इसे खाली नहीं किया गया । यह बताता है कि किस तरह ऐतिहासिक धरोहरों की अनदेखी की जा रही है । नवाबो के वंशज और अभिनेता जाफर मीर अब्दुल्ला ने जनसत्ता से कहा -सरकार तो चाहती है यह सब ऐतिहासिक इमारते गिर जाएं क्योकि वह तो नया इतिहास बना रहे है । उनके स्मारक यहां बन रहे है जिनका इस अवध की जमीन से कोई रिश्ता नहीं रहा । जिन लोगों ने अवध का निर्माण किया उनके स्मारक ढह रहे है। भारी ट्रैफिक के चलते रूमी दरवाजे में दरार आ चुकी है तो इमामबाडा में अतिक्रमण बढ़ रहा है । सिबटेनाबाद इमामबाडा के गेट पर तो सरकार ने ही अतिक्रमण कर लिया है ।
जाफर मीर अब्दुल्ला ने संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक समिति के सेक्रेट्री जनरल(रिटायर ) और स्वीडन में बसे मशहूर वास्तुकलाविशेषज्ञ प्रोफ़ेसर सतीश चंद्रा का हवाला देते हुए कहा कि इन ईमारतों का रख रखाव भी ठीक से नहीं हो रहा है । सतीश चंद्रा का भी यही मानना है कि ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण में जो सामग्री इस्तेमाल की जा रही है उससे काफी नुकसान पहुँच सकता है । इन इमारतों को दुरुस्त करने का काम पोर्टलैंड सीमेंट, सुर्खी चूना और मौरंग आदि की मदद से किया जा रहा है । इनसे इमारतों की पोरेसिटी ख़त्म हो जा रही है जिससे संकट और बढ़ रहा है । अब्दुल्ला ने आगे कहा -अवध की इन इमारतों की ख़ास बात यही है कि इन इमारतों में जो पोरेसिटी होती है उसी के चलते दीवारों के कान होते है वाला मुहावरा भी मशहूर हुआ और भूल भुलैया में दीवार के एक छोर पर कोई कागज फाड़े तो तो दूसरे छोर पर आवाज सुनी जा सकती । पर इमारतों की मरम्मत के चलते यह पोरेसिटी ख़त्म हो रही है जिससे इन इमारतों को नुकसान पहुँच रहा है ।
एमिटी विश्विद्यालय के आर्किटेक्ट विभाग के कुछ छात्रों ने इन इमारतों के हालात का अध्ययन कर कई महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई है। अध्ययन के मुताबिक लखनऊ की पहचान रूमी दरवाजा में जो दरार आई है यदि उसे जल्द दुरुस्त नहीं किया गया तो आसिफुद्दौला की यह धरोहर इतिहास के पन्नो से गायब हो जाएगी । अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के पिता अमजद अली शाह का मकबरा सिबटेनाबाद हजरत गंज में है । यह शिया लोगों का महत्त्वपूर्ण स्थल है। यह भवन भी भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के संरक्षित भवनों में से एक है। इस इमामबाड़े पर लोगों ने कब्ज़ा कर रखा है। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे आप किसी मुहल्ले में खड़े है। इमामबाड़े में अंदर जाने पर आपको गैस एजेंसी से लेकर चाट की दुकान मिल जाएगी । और लोग अतिक्रमण करे तो समझ में आता है सरकारी महकमा भी इस काम में पीछे नहीं है । हजरत गंज को खुबसूरत बनाने के नाम पर पर इस इमामबाड़े के मुख्य गेट पर बड़ा सा फौव्वारा बना दिया गई जिसके चलते अब कोई धार्मिक जलूस आदि भी बाहर नहीं आ सकता ।
ऐसी ही स्थिति बड़ा इमामबाडा की है । इसको अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1784 में बनवाया था। यहां पर भी लोगों ने कब्ज़ा जमा रखा है। इमामबाड़े के बाहर के हिस्से में एक होटल वाले ने कब्ज़ा कर रखा है। बाहर वह ठेला लगाता है व इमामबाड़े के अंदर की तरफ उसने अपना किचन बना रखा है। इमामबाड़े के अंदर की तरफ मस्जिद के पीछे की तरफ व नीचे लोगों ने अवैध कब्ज़ा जमा रखा है। छोटा इमामबाड़ा में बाहर अन्दर दोनों जगह लोगों ने कब्ज़ा जमा रखा है। यहां बाकायदा इन परिवारों का चौका चूल्हा जलता है। कहने को तो यह भी पुरातत्व विभाग का संरक्षित भवन है पर इसकी देख रेख करने वाला कोई है ऐसा देख कर नहीं लगता। करीब दर्जन भर इमारतें जर्जर हो चुकी है । jansatta

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