Sunday, November 27, 2011

ममता की चाल के शिकार हुए किशनजी


विवेक सक्सेना
नई दिल्ली, नवंबर। माओवादी नेता किशनजी की पश्चिम बंगाल में गुरुवार को पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत यह बताती है कि राजनीतिज्ञ सत्ता में आने के लिए किस तरह किसी का भी समर्थन लेकर सत्ता में आने के बाद उसे कैसे ठिकाने लगा देते हैं। ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में जीत के लिए माओवादियों का समर्थन हासिल किया और मुख्यमंत्री बनते ही किशनजी मुठभेड़ में मारे गए। किशनजी पिछले तीन दशक पुलिस को चकमा देते आ रहे थे।
पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिले के जंगलों में सुरक्षा बलों के एक संयुक्त अभियान में मारे गए मोल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को वे राज्य के नक्सल प्रभावित इलकों की 40 विधानसभा सीटें जिताने में मदद कर रहे हैं, वही सत्ता में आने के बाद उन्हें निपटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। किशनजी और ममता बनर्जी के प्रगाढ़ रिश्तों को जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे लौटना पड़ेगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) में दूसरे नंबर के नेता माने जाने वाले किशनजी पर सौ लोगों की हत्या करने का आरोप था। उनके इशारे पर ही राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के काफिले को बारूदी सुरंग से निशाना बनाया गया था। इस हमले में वे बाल-बाल बच गए थे। वहीं 15 फरवरी 2010 को सिल्दा में ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के शिविर पर हुए हमले के पीछे भी किशनजी को ही मास्टरमाइंड माना जाता है। इस हमले में 24 जवानों को मौत हो गई थी। वहीं संकरेल के रेलवे स्टेशन मास्टर अतींद्रनाथ दत्ता के अपहरण से लेकर पश्चिम बंगाल में राजधानी एक्सप्रेस पर कब्जा करने और ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में तोड़फोड़ के बाद हुई दुर्घटना की साजिश रचने में भी किशनजी का ही नाम सामने आया था। इस दुर्घटना में 130 से अधिक यात्री मारे गए थे।
ट्रेन अपहरण से लेकर ट्रेन दुर्घटना तक कभी भी ममता बनर्जी ने माओवादियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया। यहां तक की उनके खिलाफ रेलवे ने एफआईआर तक नहीं दर्ज करवाई। ममता बनर्जी जंगलमहल इलाके में माओवादियों के मंच से जनता को संबोधित करती रहीं। उन्होंने केंद्र सरकार से जंगलमहल और नक्सल हिंसा से प्रभावित अन्य इलाकों से अर्ध सैनिक बलों को वापस बुलाने तक की मांग भी कर डाली। ममता ने विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता में आने पर गिरफ्तार माओवादियों को रिहा कर बातचीत शुरू करने का वादा किया था।
उनके इस वादे पर किशनजी ने सद्भावना प्रदर्शित करते हुए चार मार्च 2010 को उन्हें पत्र लिख कर कहा था कि अगर वे सत्ता में आने पर समाज के सबसे निचले तबके के बारे में कुछ करने के लिए तैयार हों तो वे उनकी पार्टी को समर्थन देने को तैयार हैं। उन्होंने अपना वादा भी निभाया। लेकिन सत्ता में आने के बाद ममता ने महसूस किया कि विपक्ष में रहते हुए वादा कर देने और सत्ता में आने के बाद उस पर अमल करने में कितना अंतर होता है। कुछ समय पहले ही सरकार और माओवादियों के बीच हुआ संघर्ष विराम भी टूट गया था।
ममता बनर्जी की सरकार ने उस किशनजी को मुठभेड़ में मार गिराया, जो बड़े गर्व से कहा करते थे कि इस इलाके में उन्हें कोई छू भी नहीं सकता। उन पर हाथ डालने का सीधा मतलब है इलाके 16 सौ गांवों के लोगों से टकराव मोल लेना। किशनजी ने पुलिस और सरकार को इतना गच्चा दिया कि आदिवासी कहने लगे थे कि वह दैवीय शक्तियों के मालिक हैं। लेकिन सरकार ने उन्हें निपटा दिया। उन्होंने ममता बनर्जी को सत्ता में लाने में अहम भूमिका निभाई थी।
इलाके में माओवादियों के मंच से जनता को संबोधित करती रहीं। उन्होंने केंद्र सरकार से जंगलमहल और नक्सल हिंसा से प्रभावित अन्य इलाकों से अर्ध सैनिक बलों को वापस बुलाने तक की मांग भी कर डाली। ममता ने विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता में आने पर गिरफ्तार माओवादियों को रिहा कर बातचीत शुरू करने का वादा किया था।
उनके इस वादे पर किशनजी ने सद्भावना प्रदर्शित करते हुए चार मार्च 2010 को उन्हें पत्र लिख कर कहा था कि अगर वे सत्ता में आने पर समाज के सबसे निचले तबके के बारे में कुछ करने के लिए तैयार हों तो वे उनकी पार्टी को समर्थन देने को तैयार हैं। उन्होंने अपना वादा भी निभाया। लेकिन सत्ता में आने के बाद ममता ने महसूस किया कि विपक्ष में रहते हुए वादा कर देने और सत्ता में आने के बाद उस पर अमल करने में कितना अंतर होता है। कुछ समय पहले ही सरकार और माओवादियों के बीच हुआ संघर्ष विराम भी टूट गया था।
ममता बनर्जी की सरकार ने उस किशनजी को मुठभेड़ में मार गिराया, जो बड़े गर्व से कहा करते थे कि इस इलाके में उन्हें कोई छू भी नहीं सकता। उन पर हाथ डालने का सीधा मतलब है इलाके 16 सौ गांवों के लोगों से टकराव मोल लेना। किशनजी ने पुलिस और सरकार को इतना गच्चा दिया कि आदिवासी कहने लगे थे कि वह दैवीय शक्तियों के मालिक हैं। लेकिन सरकार ने उन्हें निपटा दिया। उन्होंने ममता बनर्जी को सत्ता में लाने में अहम भूमिका निभाई थी।jansatta

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