Wednesday, November 16, 2011

श्रेय लेंगी मायावती और बदनाम होंगे मुलायम !


अंबरीश कुमार
लखनऊए नवंबर।उतराखंड राज्य की मांग को लेकर ज़ब आंदोलन चल रहा था तो उस समय प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकार थी जिसने आंदोलन को दमनात्मक तरीके से कुचला था। जब यह मामला उठा तो जो जांच के लिए जो टीम गई उसने उत्तर प्रदेश सरकार को क्लीन चिट दी ,इस टीम की एक सदस्य थी उत्तर प्रदेश की मौजूदा मुख्यमंत्री मायावती ।पर आज बुधवार को मुख्यमंत्री मायावती ने कहा -उत्तराखंड राज्य के गठन की मांग को लेकर दिल्ली में धरना.प्रदर्शन करने के लिए जा रहे लोगों पर 1 या 2 अक्टूबर 1994 की रात में रामपुर तिराहे (मुजफरनगर) पर की गई पुलिस फायरिंग में अनेक निर्दोष लोग मारे गए थे। उस समय उत्तर प्रदेश में सपा नेता मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। इसके विपरीत बसपा पहली पार्टी थी। जिसने उत्तराखंड राज्य के गठन के प्रस्ताव का सबसे पहले समर्थन किया था। इसी के साथ मायावती ने उत्तर प्रदेश के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और भाजपा की भी खबर ली है । समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -मायावती आज भी प्राइमरी शिक्षक के आगे नहीं बढ़ पाई है।वे जिस सरकार में शामिल थी उसी सरकार के समय रामपुर कांड हुआ था और वे भी जांच दल में शामिल थी जिसने क्लीन चिट दी थी। अब वे छोटे राज्य की बात कर रही है । यह बानगी है उत्तर प्रदेश में चुनावी राजनीति की जिसने बिना मांगे प्रदेश को बांटने का खेल किया है । समूचे प्रदेश में किसी नए राज्य के लिए न कही धरना हो रहा ,न प्रदर्शन और न अनशन फिर भी तीन राज्यों का नक्शा बना दिया गया तो अवध राज्य मुफ्त में इस पैकेज में आ गया है।
कल मायावती ने राज्य के बंटवारे का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराकर अपनी पीठ खुद थप थपाई तो आज सारी जिम्मेदारी कांग्रेस पर दल कर समाजवादी पार्टी को भी इस खेल में फंसाने का प्रयास किया । मायावती ने बुधवार को जो कहा है उसका लब्बोलुआब यह है कि राज्य के गठन का काम तो केंद्र सरकार का है इसमे राज्य सरकार की कोई भूमिका ही नहीं है चाहे वह विधान सभा में कोई प्रस्ताव लाए या न लाए । मायावती इस मामले में गेंद केंद्र सरकार के पाले में फेंक कर जहाँ कांग्रेस को फंसा रही है वही मुख्य मुकाबले की पार्टी सपा की घेरेबंदी करना चाहती है । ताकि इसका चुनावी लाभ मायावती को मिले और विरोध कर फंसे मुलायम । मायावती ने आज कहा -उप्रदेश को चार नए राज्यों में पुनर्गठित करने के लिए उनकी सरकार को मंत्रिपरिषद व विधानमंडल में कोई प्रस्ताव पारित कराने की संवैधानिक बाध्यता नहीं थी। क्योंकि भारत के संविधान के मुताबिक ऐसा विधेयक लाने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास ही है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र की यूपीए सरकार यदि प्रदेश का विकास चाहती तो वह संवैधानिक प्रक्रिया को अपनाकर केंद्रीय कैबिनेट से इस आशय के विधेयक का मसौदा पारित करवाकर उसे महामहिम राष्ट्रपति को भेजती व विधेयक को संसद में प्रस्तुत किए जाने की संस्तुति भी उनसे प्राप्त करती।
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्राविधान नहीं है जिसके तहत राज्य के पुनर्गठन की कार्यवाही प्रारंभ करने के लिए संबंधित विधान मंडल का प्रस्ताव आवश्यक हो। संविधान के अनुच्छेद.3 में यह व्यवस्था है कि संसद में प्रस्तुत किए जाने से पहले महामहिम राष्ट्रपति की पुनर्गठन विधेयक पर संबंधित राज्य के विधान मंडल की राय निर्धारित समयावधि में प्राप्त कर ली जाएगी। केंद्र के इस दिशा में कोई कार्यवाही न किए जाने पर अफसोस जताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मई 2007 में बसपा की सरकार बनने के फौरन बाद वे प्रधानमंत्री से प्रदेश का पुनर्गठन करने के लिए लगातार लिखित अनुरोध करती रही थीं। केंद्र सरकार ने साढ़े चार वर्ष से भी अधिक अवधि बीत जाने के बावजूद जब कोई कार्यवाही नहीं की गई तो फिर मुख्यमंत्री की पहल पर केंद्र सरकार पर दबाव डालने के लिए प्रदेश सरकार ने पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव को राज्य विधानमंडल में 21 नवम्बर को रखने का फैसला मजबूरीवश लिया। पुनर्गठन संबंधी अपनी सरकार के फैसले पर विपक्षी पार्टियों के रवैये को पूरी तरह गलत व विकास विरोधी बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इसे आगामी विधान सभा चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि प्रस्ताव कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है। विधान मंडल का प्रस्ताव केंद्र सरकार पर दबाव डालने में मददगार साबित होगा। इसलिए विपक्षी पार्टियों का राज्य सरकार के इस फैसले को आगामी विधानसभा चुनाव से जुड़कर देखना पूरी तरह गलत है और इस मामले में विपक्षी नेताओं के सभी आरोप बेबुनियाद हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दिग्विजय सिंह का दिया गया बयान कि कांग्रेस पार्टी पुनर्गठन का स्वागत करती है और उनका यह भी कहा जाना कि वे केंद्र सरकार से अनुरोध करेंगे कि स्टेट री.आर्गनाइजेशन कमीशन बनाए साफ कर देता है कि कांग्रेस की कथनी और करनी में काफी अंतर है और यह पार्टी राज्य के पुनर्गठन को लेकर बहानेबाजी कर रही है। उन्होंने कहा कि सिंह का स्वागत संबंधी बयान पूरी तरह भ्रामक है क्योंकि स्टेट री.आर्गनाइजेशन कमीशन की इस मामले में न तो कोई आवश्यकता है और न ही संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 के तहत कोई कानूनी बाध्यता। मायावती ने कहा कि स्टेट री.आर्गनाइजेशन कमीशन की बात करके दिग्विजय सिंह ने स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस पार्टी की मानसिकता उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के विपरीत है और वह तेलंगाना राज्य ही की तरह इस मामले को भी लटकाना चाहती है। कांग्रेस पार्टी किसी भी प्रकार से यह नहीं चाहती कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड, पूर्वांचल अवध पश्चिम के भागों में किसी भी प्रकार की तरक्की हो।

jansatta

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