Wednesday, November 16, 2011

बिना मांगे बांट दिया उत्तर प्रदेश


अंबरीश कुमार
लखनऊ नवंबर। न कहीं धरना, न कहीं प्रदर्शन और न कहीं लंबा अनशन बावजूद इसके उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार विधानसभा के आगामी सत्र में प्रदेश को बांटने का प्रस्ताव ला रही है । यह जानकारी आज खुद मुख्यमंत्री मायावती ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद दी।
ऐन चुनाव से पहले विपक्ष के हमलों में घिरी मायावती ने आज उत्तर प्रदेश को विभाजित करने का प्रस्ताव कैबिनेट में पास कर दिया है।मायावती ने कहा है कि प्रदेश की जनता की मांग व अपेक्षाओं तथा सर्वसमाज के हित में उनकी सरकार ने उत्तर प्रदेश के चार नए राज्यों-पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश में पुनर्गठन किए जाने के लिए राज्य विधानमंडल के 21 नवम्बर से शुरू हो रहे सत्र में प्रस्ताव पारित कराकर आवश्यक कार्यवाही हेतु भारत सरकार को भेजने का निर्णय लिया है।
विधानसभा में प्रस्ताव पास करने के साथ ही गेंद केंद्र के पाले में चली जाएगी। जिसके बाद मायावती इस मुद्दे को लेकर आगामी विधानसभा चुनाव में केंद्र को कठघरे में खड़ा कर सकती है ।
ख़ास बात यह है की समूचे उत्तर प्रदेश में इस समय कहीं भी नए राज्य के गठन की मांग को लेकर कोई भी आंदोलन नहीं चल रहा है। बुंदेलखंड को लेकर कोरी बयानबाजी जरुर हुई है तो दूसरी तरफ हरित प्रदेश का मुद्दा भी ठंडा पड़ा हुआ है। विपक्ष ने इसे चुनावी स्टंट बताया है । मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने कहा की वह मायावती के इस मंसूबों को पूरा होने नहीं देंगे ।
जबकि कांग्रेस ने सवाल उठाया की साढ़े चार साल तक मायावती सरकार कहां सो गई थी । जब चुनाव सामने आया तो उन्होंने अपनी हार की आशंका के दर से यह शगूफा छोड़ा । भारतीय जनता पार्टी ने भी इसे राजनैतिक स्टंट करार दिया । आज यहां हुई मंत्रिमंडल की बैठक में मायावती ने उत्तर प्रदेश के बंटवारे का प्रस्ताव पास किया ।हालांकि इस बात को लेकर अटकले पहले से तेज थी । मायावती विधानसभा चुनाव को लेकर आशंकित है । और वे उनको तरकश में एक एक तीर निकाल रही है । गन्ने के कीमतों में 40 रूपए की बढ़ोत्तरी से लेकर अगड़ो को आरक्षण देने की मांग इसी रणनीति का हिस्सा है ।इन सबके बावजूद मायावती का रास्ता आसन नहीं दिख रहा है । प्रदेश के बंटवारे पर विपक्ष ने जिस तरह तीखी प्रतिक्रिया की है । वह मायावती के लिए चुनौती की है ।
उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत, संसद ही विधि के माध्यम से नये राज्यों के निर्माण, वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं व नामों में परिवर्तन कर सकती है । और यह सब कार्य, बगैर केन्द्र सरकार की पहल के नहीं किया जा सकता। उन्होंने आशा व्यक्त की कि प्रदेश के विकास में दूरगामी अनुकूल प्रभाव डालने वाले इस फैसले पर केन्द्र सरकार सकारात्मक रूख अपनाकर अपने स्तर से सभी जरूरी संवैधानिक कार्यवाही तेजी के साथ करेगी।
मायावती ने कहा कि वे महसूस करती हैं कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की जनता की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए यहां विकास को गति प्रदान करने के लिए उत्तर प्रदेश को छोटे राज्यों में पुनर्गठित किया जाना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि सर्वविदित है कि नए राज्यों का गठन करना केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। लेकिन दुःख की बात है कि केन्द्र में कांग्रेस पार्टी व भाजपा ने अपने अपने शासनकाल के दौरान इस मामले में अभी तक कोई सार्थक कदम नहीं उठाया। जबकि उनकी सरकार ने केन्द्र सरकार को कई बार चिट्ठी लिखी है।
उन्होने ने कहा कि प्रदेश सरकार को उम्मीद थी कि केन्द्र सरकार इस मामले में जरूर कोई सकारात्मक फैसला लेगी। यदि ऐसा होता तो फिर उनकी पार्टी की सरकार तुरन्त ही इसके लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर, इसका प्रस्ताव पारित कराके केन्द्र सरकार के पास भिजवा देती। लेकिन दुःख की बात है कि केन्द्र सरकार द्वारा आज तक इस सम्बन्ध में कोई भी कदम नहीं उठाया गया। ऐसी स्थिति में अब केन्द्र सरकार पर फिर से दबाव बनाने के लिए उनकी पार्टी की सरकार ने काफी गम्भीरता से सोच विचार करने के बाद यह फैसला लिया।
मायावती ने 09 अक्टूबर, 2007 को लखनऊ में आयोजित एक विशाल जनसभा में उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन कर अलग राज्यों-पूर्वांचल, बुन्देलखण्ड एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गठन का सार्वजनिक रूप से प्रबल समर्थन किया था ।
सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि मायावती के प्रदेश बांटने के इस प्रयास का समाजवादी पार्टी जमकर विरोध करेगी। वहीँ सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि विभाजन से विकास नहीं होता। यह ऐलान जनता का ध्यान भटकाने के लिए है। विभाजन से कोई हल नहीं निकलेगा। यूपी में जितने भी जिले बने है उनमें पता कीजिये कही पुलिस कार्यालय तक नहीं बन पाया है।
जान संघर्ष मोर्चा के संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि नए राज्यों के गठन कि यह नई कयावाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कार्पोरेट घरानों के लिए नया उपनिवेश बनाने की है । इससे छोटे राज्यों के संशाधनों के लूट का रास्ता साफ़ हो जाएगा ।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि मायावती सरकार के इस निर्णय को बसपा सरकार में व्याप्त जंगलराज, कुशासन, घोटाला और नाकामयाबीसे जनता का ध्यान बंटाने के लिए किया गया राजनैतिक स्टंटबाजी है । उन्होने कहा कि मायावती चुनाव आता देख डर गई हैं इसलिए इस प्रकार का जल्दबाजी भरा निर्णय ले रही हैं ।
उधर कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष डा रीता बहुगुणा जोशी ने भी इसे मायावती सरकार का नया राजनीतिक हथकण्डे करार दिया। उन्होने कहा कि मायावती राज्य के बंटवारे के लिए इतना ही गंभीर थीं तो उन्होने पिछले साढ़े चार वर्षों के शासनकाल में बंटवारे से संबंधित प्रस्ताव विधानसभा में पेश क्यों नहीं किया।
वहीँ राष्ट्रीय लोकदल के कोकब हबीब ने कहा प्रदेश बंटवारे का मुद्दा उनका है ना कि मायावती का। और यह प्रस्ताव उनकी पार्टी ने 2002 -03 में जब बसपा-भाजपा कि सरकार में उनकी पार्टी एक सहयोगी पार्टी के रूप में थी तब लाया था। मायावती इस मुद्दे को अब चुनावी फायदे के लिए खुद इस्तेमाल करना चाहती हैं ।
भारत कि कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने मायावती सरकार के इस निर्णय को चुनावी चाल करार दिया । साथ ही साथ भाकपा (माले) ने द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग कि मांग की ।jansatta

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