Sunday, January 8, 2012

पर्यटन की पुस्तक का पहला अध्याय छत्तीसगढ़ के साल वनों पर


छत्तीसगढ़ में इंडियन एक्सप्रेस के न्यूज़ ब्यूरो की जिम्मेदारी सँभालने के बाद पहला निर्देश अपने प्रभारी योगेश वाजपेयी से यह मिला कि दो महीने छत्तीसगढ़ में सिर्फ घूमना है जिसका सारा खर्च दफ्तर उठाएगा इससे पहले एक्सप्रेस के समूह संपादक शेखर गुप्ता ने छत्तीसगढ़ को आने वाले समय के लिहाज से महत्वपूर्ण राज्य बताते हुए मुझे वहा भेजा था .खैर मुख्यमंत्री अजित जोगी से उस समय मेरे ही नहीं दिल्ली के अन्य अखबारों के साथी पत्रकारों लव कुमार ,आरती धर ,प्रदीप मैत्र और होता से करीबी संबंध थे लिहाजा इस आदिवासी अंचल को हम सबने घूम घूम कर देखा .फिर जनसत्ता लांच हुआ और पहले अंक में ही प्रभाष जोशी का सम्पादकीय और मेरा पर्यटन पर जो लेख गया वह छत्तीसगढ़ के पर्यटन विभाग की कई नीतियों का आधार भी बना और बाद में जनसंपर्क विभाग ने उसे विज्ञापन की तरह इस्तेमाल किया .पर जब सत्ता से टकराव शुरू हुआ तो अख़बार में ज्यादा समय देना पड़ा सिर्फ रविवार को रायपुर से २९ मील पर नदी किनारे स्थित सिंचाई विभाग का डाक बंगला जो तत्कालीन जनसंपर्क निदेशक चितरंजन खेतान से करीबी संबंधो के चलते हमें मिल जाया वह अड्डा बना दिन भर रहने का और खुद लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाकर खाने का .यह सब फिर से याद कर रहां हूँ क्योकि अब दूसरी पुस्तक राजनीति की बजाय पर्यटन पर होगी और शुरुआत छत्तीसगढ़ से होनी है .बस्तर से लेकर तौरंगा के डाक बंगले की शाम आज भी याद है .इस मामले में जनसत्ता के अपने सहयोगी अनिल पुसदकर , राजकुमार सोनी जो अब तहलका से जुड़ गए है ,संजीत त्रिपाठी ,भारती आदि से भी मदद लेनी है .पहली पुस्तक लिखने के लिए प्रभाष जोशी ने प्रेरित ही नही किया बल्कि उसका विमोचन समारोह भी खुद वीपी सिंह के घर पर करवाया और कांशीराम से विमोचन कराया .अब यह जिम्मेदारी अपने मित्रों की होगी इसकी भूमिका अलोक तोमर को लिखनी थी जो जा चुके है .इस सिलसिले में छत्तीसगढ़ के साथी कुछ पुराने संस्मरण याद दिला सके भेज सके तो मदद मिलेगी .
अंबरीश कुमार

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