Sunday, January 8, 2012

द्वीपों का गुलदस्ता है लक्षद्वीप


अंबरीश कुमार
सुनहरे सम्रुन्द्री तट, नारियल के घने जंगल, जादुई लैगूनों, बहुत कम आबादी, पर्यटकों से प्राय अछूता। टूना मछली के लिए दुनिया में मशहूर ये द्वीप समूह पर्यटकों की आवाजही पर काफी नियंत्रण होने की वजह से दूसरी सैरगाहों से काफी अलग है। कोच्चि से कोई चार सौ किलोमीटर दूर बसे लक्षद्वीप के द्वीप भले ही छोटे हों, यहां के लगून काफी बड़े हैं। लैंगूनों की दुनिया भी अनोखी है। देश में लक्षद्वीप ही ऐसी जगह है जहां पर्यटक धरती की सुंदरता देखने के साथ-साथ लगून की रंगीन दुनिया में भी जा सकते हैं। आपको तैरना भले ही न आए, सम्रु के भीतर की अनोखी दुनिया को देख सकते हैं। अगर तैरना आता हो तो स्कुबा डाइग के जरिए सागर की तलहटी में हजरों किस्म की मछलियों, सजी मूंगे (कोरल) की चित्र-चित्र बस्तियों कछुओं, आक्टोपस और दूसरे सम्रुन्दी जीवों के साथ कुछ समय बिताया जा सकता है। लक्षद्वीप के लैंगून सजे एक्वेरियम की तरह है।

लक्षद्वीप में अगर पानी जमकर बरसता है, तो सूरज की किरण भी भरपूर चमकती हैं। यहां के हर द्वीप से सूर्यादय और सूर्यास्त का रंगीन नजारा देखा जा सकता है। सूर्यास्त के समय लगून पर डूबते सूरज की किरणों के अनोखे रंग अद्भुत पैदा करते हैं। सूरज के सामने अगर कोई छोटी ना आ जाए तो यह दृश्य जैसे मन पर छप जाता है। सोलहवीं शताब्दी में यहां का प्रशासन केन्नानूर के मुसलिम प्रशासकों के हाथ में आ गया था, लेकिन उसकी निरंकुशता से तब आकर यहां के निवासियों ने मैसूर के टीपू सुल्तान से मदद की गुजरिश और उसने पांच द्वीपों पर कब्जा कर लिया। अब टीपू सुल्तान के नाम का एक भव्य समुन्द्री जहाज पर्यटकों को लक्षद्वीप ले जता है। सागर यात्रा के दौरान ज्यादातर पर्यटक अपने वातानुकूलित केबिनों से बाहर निकल कर डेक पर ही जमे रहते हैं। दोपहर में चलने वाला जहाज अगले दिन सुबह लक्षद्वीप पहुंच जता है। जहाज का अनुशासन भी सेना जैसा है। सुबह होते ही जहाज के जनसंपर्क अधिकारी यात्रियों को बताते हैं कि कावरती (लक्षद्वीप की राजधानी) आ गया है और सामान बांध लें। ज्यादातर पर्यटक सामान बांधने की बजाए लक्षद्वीप को पहली नजर से देखने के लिए डेक पर पहुंच ज़ाते हैं।

अरब सागर में गोल आकार का यह खूबसूरत हरा गुलदस्ता दूर से साफ नजर आने लगता है। सूर्यादय के समय हरे-नीले पानी में सुनहरी रेत और उस पर नारियल के झुण्ड। लगून की सीमा पर टीपू सुल्तान रुकता है और लोग छोटी नावों में इंतजार में खड़े हो जाते हैं। लगून की गहराई कम होने की जह से बड़े जहाज सीमा पर ही रुकते हैं, जहां से मोटर बोट के जरिए जेटी तक जाना होता है। मोटर बोट से जेटी तक पहुंचने में करीब एक घंटा लगता है। जहाज से उतर कर मोटर बोट में बैठना भी एक भिन्न अनुभव है, क्योंकि गहरे समुन्द्र की तेज लहरों में मोटर बोट तीन-चार फूट ऊपर-नीचे होती रहती है। मोटर बोट पर बैठे मछुआरे हाथ पकड़ कर लोगों को उतारते है। टीपू सुल्तान में सम्रुद की लहरों के हिचकोले पालने में सोए रहने का सा अहसास जगाती हैं, लेकिन 20-25 लोगों को ले जने वाली मोटर बोट से गहरे सम्रुन्द्र की यात्रा में कइयों को डर लग सकता है। लगून लक्षद्वीप का जादू है। हर द्वीप के एक तरह जहां सम्रुन्द्र की तेज लहरें होती हैं, वहीं दूसरी तरफ द्वीप की आड़ में होने की जह से लहरें काफी हल्की भी हो जाती हैं। जिस तरफ लहरें हल्की होती हैं और द्वीप का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूबा होता है, यह लगून कहलाता है। समूचा लक्षद्वीप जहां ३२ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बसा है, वहीं इसके द्वीपों के लैगूनों का क्षेत्रफल 4200 किलोमीटर से ज्यादा है। कुल ३६ द्वीपों में सिर्फ दस लोग रहते हैं और पर्यटकों के लिए सिर्फ पांच द्वीप खोले गए हैं, जिसमें एक द्वीप बंगरम विदेशी पर्यटकों के लिए भी उपलब्ध है। लक्षद्वीप के तीन दीपों की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग विचार हैं, पर मान्यता चाल्र्स डारविन की व्याख्या को ज्यादा मिली हुई है। उन्होंने १८४२ में कहा था कि ज्वालामुखी वाले द्वीपों के धसकने के बाद उन पर कोरल (मूंगे) इकट्ठा होने से इन द्वीपों का जन्म हुआ जिन जगहों पर ये द्वीप डूबे, यहां पहले एटाल बना और कोरल के चलते लगून बने और उन पर कोरल के चूरे के जमा होने से द्वीपों का जन्म हुआ। मूंगे सीलेट्रेटा प्रजति के रीढ़धारी जीव हैं जो बहुत सूक्ष्म प्राणी, पोलिप के साथ समुन्द्र में रहते हैं। यही पोलिप इन द्वीपों के वास्तुकार माने जते हैं। करोड़ों पोलिप मिलकर एक कोरल बस्ती की रचना करते हैं। पोलिप ही सम्रुन्द्री पानी के जरिए कैल्शियम कंकालों की रचना करते हैं। जब कोरल का जीन समाप्त हो जता है तो ये कंकाल (कोरल द्वीप) सम्रुन्द्री थपेड़ों से टूटते जाते हैं और बालू जेसे चूरे में भी तब्दील हो जाते हैं। कोरल की भी कई किस्में होती हैं।

लक्षद्वीप में पीने के पानी के स्रोत बिलकुल नहीं हैं। वर्षा के पानी को ही इकट्ठा करके इस्तेमाल किया जाता है। कुछ द्वीपों में कुएं बनाए गए हैं, जिसमें वर्षा का पानी जमा किया जाता है और फिर इस्तेमाल किया जता है। नारियल, केला, पपीता और कुछ जंगली पेड़ पौधों के अलावा लक्षद्वीप में ज्यादा कुछ नहीं पैदा होता। मिट्टी न होने की वजह से कई सब्जियां नहीं उगाई जा पाती हैं। खाद्य सामग्री, सब्जियां और जरूरत की दूसरी चीजें खाद्य सामग्री, सब्जियां और जरूरत की दूसरी चीजें कोच्चि से ही मंगाई जाती हैं।

जनसत्ता
फोटो -सविता वर्मा

No comments:

Post a Comment