Sunday, January 22, 2012

बसपा के साथ भी संघ

नई दिल्ली, जनवरी। उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की तुलना में राष्ट्रवाद को ज्यादा अहमियत दे रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भाजपा के बाद दूसरी पसंद बसपा है। संघ चाहता है कि विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर भाजपा उम्मीदवार के जीतने की संभावना कम हो वहां बसपा उम्मीदवार को जितवाया जाए। उसके इस फैसले से भाजपा भी सहमत है। यह संदेश काडर को भेज दिया गया है।
भाजपा दिखावे के लिए भले ही इस चुनाव में बसपा और मायावती की आलोचना करे। लेकिन असलियत कुछ और है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक संघ का मानना है कि भाजपा की लड़ाई मायावती से न होकर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) और सोनिया गाधी की कांग्रेस से है। पार्टी का लक्ष्य 2014 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता हासिल करना है। इसके लिए यह जरूरी है कि लोकसभा में सबसे ज्यादा सांसद भेजने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा को कमजोर किया जाए। यही वजह है कि बसपा के सत्ता में होने के बाद भी भाजपा पिछली बार चौथे नंबर पर आई कांग्रेस पर निशाने साध रही है।
संघ और भाजपा को राज्य में बसपा की जीत कहीं ज्यादा मुफीद लगती है। इसे देखते हुए संघ की सलाह पर भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश दिया है कि जहां पर उन्हें अपना उम्मीदवार जीतता नजर न आए वहां वोट बरबाद करने की जगह बसपा को स्थानांतरित कर दिया जाए। केंद्र में सरकार बनाने की नौबत आने पर बसपा उसके लिए कहीं ज्यादा सहायक साबित होगी, क्योंकि पिछली बार कल्याण सिंह के साथ हाथ मिलाने के बाद मुलायम सिंह फूंक-फूंक कर कदम रखेंगे। अपने मुसलिम वोट को साथ रखने
के लिए अब वे ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे।
भाजपा का अपना आकलन भी यही है कि वह बमुश्किल सौ सीटों तक पहुंच पाएगी। उसके दूसरे नंबर पर आ पाने की संभावना बहुत कम है। पार्टी इससे पहले तीन बार मायावती की सरकार बनवाने का खामियाजा भुगत चुकी है। इसलिए वह राज्य में उसकी सरकार बनवा कर अपनी फजीहत करवाने की जगह विपक्ष में बैठना ज्यादा पसंद करेगी। पार्टी नेताओं का तो यहां तक मानना है कि चुनाव नतीजे ऐसे भी आ सकते हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ जाए। यह स्थिति भी उसके लिए अच्छी रहेगी।
अपना उम्मीदवार न जीतने पर किसी और दल को वोट डलवा देने का फैसला पहली बार नहीं किया गया है। बोफर्स कांड की आंधी में जब लोकसभा के चुनाव हुए थे तो उत्तर प्रदेश की मऊ लोकसभा सीट पर भी ऐसा ही प्रयोग किया गया था। वहां से कल्पनाथ राय ने चुनाव लड़ा था। उस समय नारा दिया गया था ‘ऊपर काम को व नीचे राम को’। चूंकि राय नें अपने चुनाव क्षेत्र में काफी लोकप्रिय थे, इसलिए लोकसभा में उनको और विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट डालने का फैसला किया गया था। आतंकवाद से जूझ रहे पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की बड़ी वजह वहां संघ की ओर से अपने कार्यकर्ताओं को उसके पक्ष में वोट डालने का निर्देश दिया जाना था। तब संघ को यह लगता था कि हिंदुओं को कांग्रेस ही सुरक्षा प्रदान कर सकती है। उस चुनाव का अकालियों ने बायकाट करने का ऐलान कर दिया था। इससे बेअंत सिंह मुख्यमंत्री बने थे। सूत्र बताते हैं कि संघ के लिए भाजपा की तुलना में हिंदू हितों की सुरक्षा कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।
जनसत्ता में विवेक सक्सेना की रपट

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