Tuesday, January 17, 2012

फिर याद आई मुंबई


अंबरीश कुमार
मुंबई फिर याद आई । मुंबई में बचपन गुजरा है । कल उस दौर की याद ताजा हो गई जब कल रात प्रणय के साथ देर रात तक दावत चली । चर्चा मुंबई से गोवा तक चली । मुंबई में उनका भी बचपन गुजरा है और अब दिल्ली में रहने के साथ गोवा में पर्यावरण के माकूल घर बनवाने जा रहे है अपने उस काजू के बगीचे में जो दो साल पहले लिया था । बगल में प्रिती जिंटा और अमिताभ बच्चन आदि के बड़े फार्म हाउस है । पर पहले मुंबई लौटे ।
मुंबई के भाभा एटामिक एनर्जी की कालोनी चेंबूर में देवनार काटेज के पास थी जो कपूर परिवार का घर था । उस समय पापा भाभा एटामिक एनर्जी संस्थान में इंजीनियर थे और उसी की कालोनी में अपना घर था । अपनी शुरुआती पढाई चेम्बूर में ही हुई । कालखंड अलग रहा पर प्रणय भी मुंबई में पढ़े और उनकी संगत बहुत से फिल्मी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की रही । पर हमने तो दूर से ही देखा हलाकि रोज स्कूल जाते समय गुजरना राजकपूर के घर के बगल से ही होता था ।
बहुत दिन बाद चुनाव के इस दौर में कल रात देर तक तंदूर पार्टी चली । देश में तंबाखू की खिलाफ अभियान चलने वाले प्रणय लाल लखनऊ आए थे तो आशुतोष ने उनके लिए अपनी भव्य बालकनी में जो पार्टी रखी वह देर तक चली .लकड़ी के कोयले की अंगीठी के चारों ओर बैठकर मुगलाई व्यंजनों का स्वाद लिया जा रहा था जो आशुतोष की जीवनसंगिनी 'क्षमता ' तैयार करवा रही थी । छठी मंजिल के इस पैंट हाउस की बालकनी ज्यादा नजर आती है जिसमे दुर्लभ पेड़ पौधे भी है और फूलों से गुलजार है । गमले में लगी स्ट्राबेरी के फल भी बड़े नजर आ रहे थे । अंगीठी की तपिश रात की ठंड का अहसास नहीं होने दे रही थी । वे लोग फलों का जूस ले रहे थे तो मै बकार्डी । प्रणय काफी देश से ज्यादा विदेश में ज्यादा व्यस्त रहते है और उनके शौक काफी हद तक अपने से मिलते है ,मसलन घूमने ,पढने ,पर्यावरण पर काम करने आदि । पर वे अच्छे चित्रकार भी है ,यह जानकारी मुझे कल ही मिली जब उन्होंने १९९२ में मुक्तेश्वर के डाक बंगले में लगी दुर्लभ पेंटिंग का जिक्र किया । मेरा बचपन भी मुंबई में गुजरा है और प्रणय ने भी पहले दक्षिण अफ्रीका और फिर बचपन मुंबई में गुजारा .वे उसी स्कूल में पढ़े जिसमे अभिषेक बच्चन और स्वेता के साथ बहुत से अभिनेता और अभिनेत्री पढ़ चुके है । बाद में स्कूल प्रबंधन अमिताभ बच्चन के अहंकार पर भारी पड़ा और उन्हें बच्चों को वहां से हटाकर स्विट्जरलैंड भेजना पड़ा ,यह सब बातों बातों में पता चला । इस बीच 'क्षमता 'के बनाए तंदूरी मुगलाई व्यंजनों ने सभी को ज्यादा खाने पर मजबूर कर दिया । वे बहुत अच्छा खाना बनाती है,खासकर बिरयानी और तली हुई रोहू। हालांकि हिंदुस्तान के इलाहबाद के संपादक दया शंकर शुक्ल सागर के साथ पिछली बार आशुतोष बरसात के दिनों जब अपने राइटर्स काटेज में रुके थे तो उन्होंने जबरजस्त ठंड के बीच जो अफगानी चिकन टिक्का बनाया था वह कभी भूल नहीं पाते है । एक वजह यह भी थी कि तब बूंदाबांदी के बीच बगीचे में बैठकर कार्यक्रम चल रहा था और कोई स्वीट डिश न मिलने पर रात में डेलिशियस प्रजाति के बहुत ज्यादा मीठे सेब तोड़कर से इसकी भरपाई की गई थी । इसलिए हम दोनों को अच्छा खानसामा मानते है।
प्रणय देश विदेश काफी घूमे है और बताया कि स्विजरलैंड से कही अच्छा अपना सिक्किम है ।फिर पर्यावरण पर बात हुई और मैंने केरल के समुन्द्र तटों पर लिखी अपनी रपट का जिक्र किया जो जनसत्ता में आने वाली है तो वे गोवा पर लौटे । बताया कि गोवा के कुछ समुंद्र तटों पर ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है । उनका फार्म हाउस समुंद्र से कुछ दूर है । ऐसा उन्होंने जानबूझ कर किया क्योकि समुंद्र की खारी हवाओं से उनकी पेंटिंग और पुस्तकें ख़राब हो सकती थी ।
इस पर जो चर्र्चा बढ़ी तो फिर मुंबई पर ख़त्म हुई । बरसात के दिनों में वहा स्कूल जाने के लिए गम बूट ,रेन कोट और छाता जरुरी होता था पर मै जब भी घर लौटता तो भीग कर और गम बूट में पानी भर कर । रोज डांट खाने के बाद भी पूरी बेशर्मी के साथ बरसात में भीगना जारी रहता । अब वह बारिश कम ही दिखती है ।इसलिए वह मुंबई भूलती नहीं .
अंबरीश कुमार

No comments:

Post a Comment