Thursday, January 12, 2012

उत्तर प्रदेश के चुनाव में टीम अन्ना अब पिछड़ गई

अंबरीश कुमार
लखनऊ , जनवरी । उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव गरमा चुका है और इन चुनाव में जन लोकपाल व भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने वाली फिलहाल टीम अन्ना इस चुनाव में पिछड़ चुकी है भले मीडिया में उसकी मौजूदगी बरक़रार हो । प्रदेश की ४०४ विधान सभा सीटों में से प्रमुख दलों के महत्वपूर्ण नेता कड़ाके की इस ठंढ में आधी से ज्यादा सीटों का चुनाव प्रचार कर चुके है ।दूसरी तरफ इन चुनावों में कांग्रेस को साफ़ कर देने का दावा करने वाली टीम अन्ना के किसी भी सदस्य का कोई भी चुनावी दौरा अब तक नहीं लगा है,यह एक कडवी सच्चाई है । टीम अन्ना ने लोकपाल बिल पास न होने की स्थिति में कांग्रेस को हराने के साथ ही जयप्रकाश आंदोलन के विभिन्न चुनाव सुधार कार्यक्रमों को लागू करने को लेकर इन चुनाव में दबाव बनाने का भी एलान किया था पर वह पहल भी नजर नहीं आ रही है । ऐसे में अगर टीम अन्ना जल्द से जल्द भी इन चुनाव में दखल करने का प्रयास करे तो भी विधान सभा की आधी सीटों तक पहुंचना संभव नहीं होगा । प्रदेश के अस्सी फीसद गांवं में जहां रात के एक दो बजे बिजली आती हो वहां चैनल आदि के माध्यम से भी चुनावी दखल देना संभव नहीं है। पहले जयप्रकाश आंदोलन और फिर अन्ना आंदोलन के दौरान प्रमुख भूमिका निभाने वाले सर्व सेवा संघ के सचिव राम धीरज ने जनसत्ता से कहा -यह बात सच है कि अब तक हम लोग इन चुनाओं में प्रभावी दखल नहीं दे पाए है ,और न ही टीम के प्रमुख नेताओं का कोई कार्यक्रम अभी तैयार हुआ है । पर जल्द ही इस दिशा में पहल होगी ।
गौरतलब है कि लखनऊ में अन्ना आंदोलन के चालीस जिलों के कार्यकर्ताओं की बैठक आठ जनवरी को हुई थी जिसमे मनीष सिसोदिया ,संजय सिंह आदि शामिल हुए थे जिसमे उत्तर प्रदेश के लोगों ने जमीनी हकीकत को देखते हुए सिर्फ कांग्रेस का विरोध न किए जाने का सुझाव दिया जिसे अंतत हर स्तर पर मन भी लिया गया । पर अब चुनाव में जब किसी को हराने या जिताने की अपील न हो तो अन्ना आंदोलन की भूमिका मतदाता मंच के कार्यक्रम लागू कराने वाले संगठन जैसी हो जाएगी । इस लिए चुनाव में जहां भीषण राजनैतिक टकराव हो रहा हो वहा टीम अन्ना की भूमिका भी बहुत सीमित हो जाने की आशंका है। इस संकट को आंदोलन के लोग समझ भी रहे है । रजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -टीम अन्ना ने राजनैतिक खेल में फंसकर जो गलती की उसका खामियाजा उसे उठाना पड़ रहा है । इस आंदोलन की एक छवि संघ समर्थित आंदोलन की भी हो चुकी है जिससे दिक्कते आ रही है । फिर कुछ फैसलों को बार बार बदलने से भी साख ख़राब हुई है । उत्तर प्रदेश में कई कार्यक्रम घोषित होने के बावजूद अन्ना हजारे नहीं आए जबकि यहाँ आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी सरकार थी ।यह वजह है कि अब उत्तर प्रदेश में इन्हें ज्यादा समर्थन नजर नहीं आ रहा है । यह उत्तर प्रदेश है जहां जहां भ्रष्टाचार से कुशवाहा का मुद्दा शुरू होता है और कुशवाहा बिरादरी पर आकर ख़त्म हो जाता है ।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में अंतत राजनैतिक विभाजन जाति बिरादरी पर ही हो रहा है । ऐसे में दूसरे मुद्दे चर्चा तक तो चलते है पर जब मुहर या बटन दबाने की बारी आती है तो मामला बदल जाता है। बड़े स्तर पर तो प्रदेश में जातियां ही लड़ रही है इसलिए सैम पित्रोदा यहां विशकर्मा , बढई बताए जाते है तो प्रदेश के सबसे बड़े घोटाले के सबसे बड़े अभियुक्त कुशवाहा बिरादरी के मान सम्मान का मुद्दा बन जाते है । इसी तरह बाहुबली भी अंत में अपनी जातियों के प्रतीक बनकर उभरते है। ऐसे में टीम अन्ना जिसे जमीनी राजनीति का कोई अनुभव नहीं है उसे यहाँ बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। jansatta

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