Saturday, January 28, 2012

उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को लेकर मचा घमासान

अंबरीश कुमार
लखनऊ जनवरी। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को लेकर सियासी जंग तेज होती जा रही है। इसकी शुरुआत तो कांग्रेस ने की पर यह मामला काफी आगे जाता नजर आ रहा है। करीब अठारह फीसद आबादी व करीब सौ सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाने वाले मुसलमान इस चुनाव की धुरी बनते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के बारे में हमेशा से यह कहा जाता है कि सांप्रदायिक कार्ड पहले वह खेलती है पर उसका फायदा दूसरे लोग ले जाते हैं। अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाने से लेकर शिलान्यास तक इसके उदाहरण माने जाते हैं। अब मुस्लिम आरक्षण भी कांग्रेस के गले की हड्डी बनती नजर आ रही है। मुस्लिम आरक्षण को लेकर जहां भाजपा ने अपने पिछड़े हिन्दू मतदाताओं को गोलबंद करने का प्रयास किया तो उसकी प्रातक्रिया में समाजवादी पार्टी के पक्ष में नए सिरे से ध्रुवीकरण की संभावना जताई जा रही है। पूरे खेल में कांग्रेस की प्रतिक्रिया से जाहिर है की वह अब कही ना कही अपने आपको ठगा महसूस कर रही है। आज जैसे ही मौलाना बुखारी ने मुलायम सिंह यादव के साथ प्रेस कांफ्रेंस की उसके कुछ देर बाद ही कांग्रेस,भाजपा व पीस पार्टी की तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष डा रीता बहुगुणा जोशी ने बुखारी को नसीहत देते हुए कहा उलेमा और मौलाना सियासी फतवों से दूर रहना चाहिए और दिग्विजय सिंह ने तो बुखारी को दहशतगर्दों का हिमायती बता दिया। भाजपा के विनय कटियार ने मुलायम सिंह यादव व मौलाना बुखारी के बीच डील की बात कह कर मामले को और गरमा दिया है। राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा- इन सबसे जाहिर है कि सपा के पक्ष में जाने अनजाने मुसलमानों का ध्रुवीकरण हो रहा है। पीस पार्टी की प्रतिक्रिया से इसकी और पुष्टि हो जाती है। पीस पार्टी अपने को मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा मानती है। और आज देवबंदी मुसलमानों के मुलायम सिंह के पक्ष में खड़े होने के साथ ही उसकी राजनैतिक मजबूरी सामने भी आ गई।
पीस पार्टी ने आज एक बयान जारी कर कहा - समाजवादी पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर मंदिर मस्जिद के नाम पर राजनीति की और वोटों का ध्रुवीकरण कराया। इस आंदोलन से मुसलमानों को अधिकतम क्षति हुई। सपा ने मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचते हुए अयोध्या के नायक कल्याण सिंह को अपनी पार्टी में ले लिया । साक्षी महाराज और डालमिया को राज्यसभा में भेजने का काम किया। यह सपा का भाजपा से मिलीभगत का एक उदाहरण है। मुलायम सिंह ने उर्दू उत्थान के नाम पर 2005 में न्यायिक सेवाओं में जो उर्दू अनिवार्य विषय हुआ करता था। उसको परीक्षाओं से हटा दिया। यह कार्य भाजपा भी नहीं कर पाई। क्या यही मुलायम सिंह का मुसलमानो की प्रगति का रास्ता है। मुलायम सिंह की सरकार ने इजराईल के राजदूत डेविट डैनियल को लखनऊ आमत्रित ही नही किया साथ ही उनसे विचार विमर्श भी किय। । यह कार्य भाजपा सरकार ने भी नहीं किया। कांग्रेस भाजपा व पीस पार्टी की इस प्रतिक्रिया से उत्तर प्रदेश के सियासी हालात को आसानी से समझा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में पहले भी जब जब भाजपा ने मुसलमानों के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाया था तो सपा को उसका राजनैतिक लाभ मिला था। उत्तर प्रदेश में मौलाना बुखारी का मुसलमानों पर कोई बहुत ज्यादा असर नहीं रहा है यह सब जानते है । पर जिस तरह से उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधा और उसके बाद राजनैतिक दलों ने उनका विरोध और साथ ही में मुलायम सिंह यादव का विरोध किया उससे मुस्लिम राजनीति में फिर से हलचल तेज होती नजर आ रही है ।

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