Tuesday, June 26, 2012
अखिलेश यादव के लिए बड़ी चुनौती बन रही है बुंदेलखंड की नदियाँ
अंबरीश कुमार
हमीरपुर ,२६ जून । मानसून की शुरुआत के बावजूद बुंदेलखंड की नदियों पर संकट मंडरा रहा है । इस अंचल की जीवन रेखा कहलाने वाली अथाह जलराशि की बेतवा को अब कई जगहों पर साइकिल और मोटर साइकिल से पार किया जा रहा है ।इससे इस अंचल की नदियों पर मंडरा रहे संकट का अंदाजा लगाया जा सकता है । सूबे में इस वक्त एक पर्यावरण इंजीनियर मुख्यमंत्री है जिसके चलते लोगो को उम्मीद है कि अब प्राकृतिक संसाधनों की वैसी लूट नही होगी जिसने पहाड़ को खाई में बदल दिया तो नदियों को बंजर जमीन में बदलने की कवायद जारी है । पिछले कुछ सालों में बुंदेलखंड की नदियों की तलहटी से जिस अंधाधुंध तरीके से बालू निकला गया वह इन नदियों के अस्तित्व को धीरे धीरे खत्म कर देगा । केन ,बेतवा ,धसान और पहुज जैसी ज्यादातर नदियाँ बदहाली का शिकार हो चुकी है । इन्हें बड़ी निर्ममता से लूटा गया है । नदियों के दोनों किनारों पर जो अतिक्रमण हुआ वह तो बढा ही साथ ही नदियों का रेत जब खत्म होने लगा तो फिर मशीनों की मदद से बालू निकला गया। बुजुर्ग किसान राम अवधेश ने कहा - मायावती सरकार के राज में यह सब जमकर हुआ पर अब अखिलेश यादव सरकार में यह हुआ और लूट खसोट करने वालों की अगर सिर्फ जात बिरादरी बदली तो इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नही होगा क्योकि अखिलेश यादव ने एक साफ़ सुथरी सरकार का वादा किया था ।गौरतलब है कि इसी अंचल में सबसे पहले अखिलेश यादव को सुनाने के लिए भीड़ जुटी थी और इस लिहाज से भी उन्हें यहाँ के लोगों कि भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए ।
विंध्य पर्वत श्रृंखला से निकलकर हमीरपुर में यमुना तक 350 किलोमीटर सफर तय करने वाली बेतवा पर यह संकट ज्यादा गहरा रहा है ।उरई में सुनील शर्मा ने कहा - कुछ साल पहले तक बेतवा इस अंचल में समृद्ध का प्रतीक थी पर आज यह पोखर में बदल चुकी है ।कोटरा के आसपास ग्रामीण आसानी से पैदल नदी पार करके झांसी जिले की सीमा में चले जाते हैं इसी तरह जालौन के टिकरी गांव से हमीरपुर सीमा में जाने के लिए दो पहिया वाहन से नदी पार कर लिया जाता हैँ । इस क्षेत्र में बेतवा में इस समय कमर तक पानी बचा है । नदी का पानी सूखा तो आसपास के गांवों का भू जलस्तर भी घट गया और हैंडपंप से पानी आना बंद होता जा रहा है । इसके चलते कुछ गांवों में पलायन भी शुरू हो गया है ।
पहूज नदी झांसी के वैंदा गांव से निकलकर जालौन में रामपुरा के पास सिंध नदी में विलीन हो जाती है।करीब अस्सी किलोमीटर लम्बी इस नदी की विशेषता यह है कि इसके तटवर्तीय इलाकों में भूमिगत पानी खुद व खुद सतह पर फूटता रहता है । पर इस बार कही से पानी फूटता नजर नही आता । अधिकांश पाताल तोड कुओं से फूटने वाले फव्वारे बंद हैं तो नदी में मवेशियों के पीने लायक पानी नहीं बचा है ।महाराजपुरा में तो नदी के पेटे में रेगिस्तान जैसा दृश्य नजर आने लगा है ।नून यहाँ की स्थानीय नदी है जो पहले गर्मियों तक में कभी नहीं सूखती थी पर अब यह वजूद खो रही है । बेतवा की सहायक नदी घसान के पानी का प्रवाह एक समय वेहद डरावना रहता था जबकि अब इस नदी में पानी नाले की तरह बह रहा है ।इस सबकी एक वजह नदी से मौरंग निकला जाना है ।खनन माफिया नदी की बीच धारा से पौकलेन मशीन से मौरंग निकाल रहा है ।जालौन में बेतवा नदी में 45 खनन क्षेत्र हैं इसमें चार मौजूदा समय में चालू हैं ।हमीरपुर में बेतवा में खनन क्षेत्र 62 हैं जिसमे पांच चालू हैं ।गंगा मुक्ति आंदोलन और बागमती बचाओ आंदोलन के नेता अनिल प्रकाश ने जनसत्ता से कहा -नदियों की तलछट से बालू ,मौरंग निकालने से कुछ जगहों पर सकारात्मक असर होता है तो कुछ जगह नकारात्मक । बुंदेलखंड की नदियों से जो जानकारी सामने आ रही है उससे साफ़ है कि यहाँ वह नदियों के लिए संकट पैदा कर रहा है । नदियों की तलहटी से बालू निकल देने से पत्थरों के कोटरों में जो पानी जमा रहता था वह खत्म हो रहा है जिससे भूजल स्तर भी प्रभावित होने लगा है । इस समस्या को अखिलेश यादव को इसलिए भी गंभीरता से लेना चाहिए क्योकि वे पर्यावरण इंजीनियर रहे है । उन्हें फ़ौरन मौरंग के खनन पर रोक लगते हुए कुछ नदियों को बचाने की दिशा में पहल करनी चाहिए जिसमे हम सब लोग मदद करने को तैयार है ।
गौरतलब है कि बेतवा नदी में लिफ्टर लगाकर नदी के बीच से मौरंग निकाली जाने का नतीजा है कि इसमें गहरे गढ्डें हो गए है। जिससे कई जानवर इसमे डूब चुके है और आसपास के गांव के बच्चों पर भी खतरा मंडरा रहा है । पहले ब्लास्टिंग से बुंदेलखंड का पर्यावरण चौपट हुआ तो अब मौरंग निकाले जाने से नदियों पर संकट मंडरा रहा है ।जनसत्ता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment