Saturday, June 16, 2012

इमरजेंसी ?

चंचल कभी अहमदाबाद जाना हो तो वहाँ दो दो लोंगो के बारे में दरियाफ्त करियेगा .मनीषी जानी और उमाकांत माकन .जिस आंदोलन को आज जे.पी. आंदोलन कहा जाता है उसकी नीव में ये दो चेहरे है .मनीषी गुमनामी में चले गए हैं और हमारा दोस्त उमाकांत माकन कांग्रेस में है .१९७३ का वाकया है साइंस कालेज के मेस में अचानक समोसे का दाम बढ़ गया .बच्चों ने विरोध किया .विरोध बढ़ता गया और मामला सरकार तक चला गया .उस समय गुजरात में चिमन भाई की सरकार थी छात्र आंदोलन से निपटने के लिए सरकार ने हिंसा का सहारा लिया जिसके चलते पूरे देश विशेषकर उत्तर भारत बौखला गया .उन दिनों मै विश्वविद्यालय में समाजवादी युवजन सभा का संयोजक था . छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष देवब्रत मजुमदार ने हमसे कहा कि तुम्हे अहमदाबाद जाना है ,जार्ज(फर्नांडिस) वहा पर मिलेंगे .मै गया और भाषण देते समय पकड़ लिया गया .तुरंत छूटा भी पर कैसे वह मजेदार वाकया है ,विषयान्तर हो रहा है लेकिन तब की राजनीति समझने के लिए जरूरी है ...पुलिस हमें लेकर थाने पहुची ही थी कि इतने में कहीं से राज नारायण जी को पता चल गया कि हमें पुलिस ने पकड़ लिया है .एक अम्बेसडर कार से नेता जी आये और आते ही पुलिस से पूछा .- कौन है जी ..बनारस से येहां आ गया .. बुलाओ तो ...नेता जी इतना ताबक् तोड़ बोल रहें थे कि पुलिस वाला कुछ समझ ही नहीं पाया और उसने हमें नेता जी के सामने कर दिया फिर क्या था नेता जी गुस्से में लगे चीखने (यह उनका स्थाई भाव था जिसके चलते हमारी तरह के कई लोग पुलिस से बचे हैं )..चुतिया हो .. यहाँ आने की क्या जरूरत थी .. क्रांतिकारी बनते हो ...ये तो समझो ये बेचारा (इशारा पुलिस की तरफ था ) शरीफ है ..नालायक चलो बैठो गाड़ी में .. अभी बताता हूँ ..और उनका 'बताना'इतनी जल्दी संपन्न हो गया कि पुलिस वाला जब तक समझा होगा हम उसकी जद से काफी दूर आचुके थे . यह वही आंदोलन है समोसेवाला जिसने इतिहास रच दिया .कल बताएँगे इस आंदोलन में जे.पी. कैसे कूदे ? समोसा से सरकार तक भाग २ कालेज कैंटीन के समोसा का बढ़ा दाम गुजरात को घेर लिया .और देखते देखते देश के अन्य हिस्सों में भी आंदोलन जोर पकड़ने लगा .उत्तर प्रदेश सबसे बाद में मैदान में उतरा .जे. पी .पर दबाव पड़ा कि वे इसका नेतृत्व अपने हाथ में ले लें .लेकिन जे.पी. हिचक रहें थे .यह उस वक्त की बात है जब जे.पी. राजनीति से ओझल हो चुके थे .अपनी पीढ़ी में जे.पी. भले ही अपने रुत्वे पर कायम थे लेकिन अगली पीढ़ी उनसे अनजान थी और जे.पी. इससे वाकिफ थे .जे.पी के सामने दूसरी दिक्कत थी प्रतिपक्ष की बिखरी हुई ,एकदूसरे टकराती हुई राजनीति ( ६५ में बना डॉ लोहिया का गैर कांग्रेस वाद ७२ तक आते आते बिखर चुका था ) इन सबको एक पगहे से बाँधना आसान नहीं था .लेकिन सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा अपने शिखर पर था जेपी इससे वाकिफ थे .तो जब संघी घराने ने कांग्रेस के खिलाफ (जो कि उसका स्थाई भाव है ) छात्र आंदोलन में उतरने और जेपी को अपना नेता मानने की घोषणा कर दी तो जेपी को थोड़ी सहूलियत मिली क्यों कि संघी घराना शुरू से ही जे पी के खिलाफ रहा है ,और उनपर कई बार हमला तक कर चुका था .समाजवादियों पर जे.पी. को भरोसा तो था लेकिन एक जिच भी थी .. जब एन वक्त पर जे पी. पार्टी छोड़ कर सर्वोदई बन गए थे ..लेकिन जब जार्ज ने जे.पी. से खुल कर बात की और आंदोलन में उतरने को कहा तो कुछ शर्तों के साथ तैयार हो गए .और आंदोलन व्यवस्थित ढंग से शुरू हुआ .आंदोलन अहमदाबाद से उठकर पटना के कदम कुवां आगया .'न मारेंगे न मानेगे ' हमला चाहे जैसे होगा ,हाथ हमारा नहीं उठेगा ' और आंदोलन चल पड़ा .अब उन नामो को सुनिए जिन्हें इस आंदोलन ने बुलंदी दी उसमे लालू.पासवान .शिवानंद तिवारी ,नीतीश ,लालमुनी चौबे ,आदि आदि ...( मुआफी चाहता हूँ नाम बहुत है लेकिन मै उन नामो का जिक्र कर रहा हूँ जो उठने के पहले ही भसक गए ) बहरहाल आंदोलन बे काबू होने की तरफ बढ़ने लगा .इसी बीच एक घटना और हो गयी .इंदिरा गांधी के खिलाफ राज नारायण की चुनाव याचिका न्यायालय में थी और उसका फैसला आगया .इंदिरागांधी दोषी पायी गयी ,उनका चुनाव निरस्त हो गया ६ साल के लिए चुनाव लड़ने की मनाही हो गयी .और वह आज के ही दिन यानी १२ जून को हुआ था .उस दिन वी पी सिंह इलाहाबाद में ही थे और अपने आवास 'ऐश महल;'में सो रहें थे http://chanchalblogspotcom.blogspot.in

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