Monday, June 25, 2012

विकास की कीमत चुका रही है दम तोडती शिप्रा नदी

अंबरीश कुमार
श्यामखेत ,२४ जून। हल्द्वानी से करीब चालीस किलोमीटर यह जगह शिप्रा नदी का उदगम स्थल है पर अब यह आबादी वाले इलाके में बदल चुकी है और नदी को धकेल कर किनारे कर दिया गया है । अब इसे नदी तभी कहा जा सकता है जब भारी बरसात के बाद सभी नदी नालों और गधेरों का पानी इसमे समा जाए । वर्ना नदी के आगे फोटो में जो बोर्ड लगा है उसे देख ले और बोर्ड के पीछे नदी को भी तलाशने का प्रयास करे । यह बोर्ड इस नदी के दम तोड़ने की कहानी बता देता है । श्यामखेत से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर खैरना के पास दूसरी पहाडी नदी से मिलकर कोसी में बदल जाती है । पर इससे पहले का शिप्रा नदी का सफर और उसकी बदहाली को समझने के लिए श्यामखेत आना पड़ेगा । इस नदी की मूल धारा जहाँ से गुजरती थी वह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है और जो खेत थे वे पाश इलाके में बदल चुके है । ऊँची कीमत पर पहले जमीन बिकी फिर उनपर आलीशान घर बना दिए गए । श्यामखेत के संजीव कुमार ने कहा -करीब दस साल पहले तक इस नदी में हर समय कई जगह छह फुट से ज्यादा पानी होता था और बरसात में तो इसकी बाढ़ से सड़क के ऊपर पानी बहता था । पर लोगों ने इस नदी के नीचे पत्थरों को निकल सड़क से लेकर घर तक में इस्तेमाल किया और इसकी धारा भी घुमा दी गई । जिसके चलते पहले इसमे पानी कम होने लगा तो लोगों ने इसे कूड़ेदान में बदल दिया । श्यामखेत घटी में बसा है और चारो तरफ चीड , देवदार और बांस के घने जंगल है और इन पहाड़ियों का सारा पानी इसी नदी में आकर इसे समृद्ध करता रहा है ।पर विकास के नामपर पहाड से गिराने वाले नालों और झरनों पर भी अतिक्रमण हुआ और पानी के ज्यादातर श्रोत धीरे धीरे बंद होते गए । भवाली में प्रशासन ने रही सही कसर इस नदी के दोनों किनारों को बांध कर पूरी कर दी । यदी हवाली से गुजरे तो जो बड़ा सा नाला नजर आता है और जिसमे कूड़ा करकट के साथ नाली का पानी बहाया जाता है वह दरअसल शिप्रा नदी है । अब वह नाले में बदल चुकी है और नाले पर भी अतिक्रमण चल रहा है । कुमॉऊ में जिस तरह से पानी के परम्परागत श्रोतो ,बरसाती नालो और गधेरों को बंद किया जा रहा है वह एक बड़े संकट का संकेत भी दे रहा है । जिस संकट से अल्मोड़ा कई सालों से गुजर रहा है वह संकट झीलों के शहर नैनीताल और आसपास मंडराने लगा है । नैनीताल की झील का पानी कई फुट नीचे आ चुका है तो दूसरी झीलों का पानी भी घट रहा है ।अंधाधुंध निर्माण के चलते पानी के श्रोत घटते जा रहे है । ऐसे में शिप्रा नदी को अगर नही बचाया गया तो अगला नंबर दूसरी नदियों का होगा । इस अंचल में कई छोटी छोटी बरसाती नदिया है जो बड़ी नदियों की जीवन रेखा की तरह काम करती है । शिप्रा जैसी कई बरसाती और छोटी नदियाँ संकट में है । इन नदियों से बड़े बड़े पत्थर और बालू हटा देने की वजह से पानी नीचे रिस जाता है जिसका असर उन नदियों पर पड़ता है जिनमे मिलकर यह उसे समृद्ध करती है । गढवाल की तरफ जहाँ बड़ी नदियाँ ग्लेशियर से निकलती है वही इस तरफ प्राकृतिक श्रोतो से । इस वजह से पानी के परंपरागत श्रोतों पर अतिक्रमण होने से यह संकट काफी बढ़ता नजर आ रहा है ।जनसत्ता

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