Tuesday, June 19, 2012

सीमा आजाद के लिए तेज हुआ अभियान ,अखिलेश यादव को देंगे पुलिस की फर्जी कहानी का ब्यौरा

लखनऊ , जून। सीमा आजाद और अन्य राजनैतिक बंदियों की रिहाई के लिए उत्तर प्रदेश में अभियान तेज हो गया है । आज इलाहाबाद में इस मुद्दे को लेकर विभिन्न जन संगठनों की एक बैठक उस जगह होने जा रही है जहाँ चंद्रशेखर आजाद की शहादत हुई थी तो बुधवार को लखनऊ के प्रेस क्लब में कई संगठन इस सवाल पर जन दबाव बनाने जा रहे है । इस मुद्दे को लेकर प्रदेश और देश के विभिन्न जन संगठन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी गुहार लगाने जा रहे है ।यह जानकारी पीयूसीएल के राष्ट्रीय सचिव चितरंजन सिंह ने दी ।छब्बीस जून के कार्यक्रम के बाद मुख्यमंत्री से एक प्रतिनिधिमंडल मुलाकात कर उन हालात की जानकारी देगा जिनके चलते पुलिस ने बेगुनाह सीमा आजाद और अन्य को न सिर्फ फंसाया गया बल्कि आजीवन कारावास की सजा तक दिला दी गई । फैसले में किस तरह के अंतर्विरोध सामने आए है इसका ब्यौरा बना कर मुख्यमंत्री को भी दिया जाएगा । छब्बीस जून के अभियान में अब वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर और जस्टिस राजेंद्र सच्चर भी शिरकत करेंगे । गौरतलब है कि मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की सांगठनिक सचिव और युवा पत्रकार सीमा आजाद को उनके जीवन साथी विश्वविजय के साथ 6 फरवरी 2010 को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन पर लगभग उन्ही धाराओं में आरोप लगाया गया है जिन धाराओं में डाक्टर विनायक सेन को आरोपित किया गया था। यानी कम्युनिस्ट पार्टी आफ इन्डिया माओवादी का सदस्य होना और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना। इसके अलावा कुछ अन्य धाराओं में भी आरोप लगाए गए हैं। सीमा आजाद कि रिहाई के लिए अभियान चला रहे चितरंजन सिंह और साहित्यकार नीलाभ ने कहा -डा. विनायक सेन तो रिहा हो चुके हैं लेकिन सीमा और विश्वविजय को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गयी है और उनपर जुर्माना भी ठोंक दिया गया है। शायद यह उन बिरले मामलों में से ही होगा जिनमें इन धाराओं के तहत आरोपित व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी है। स्पष्ट है कि मनमोहन सिंह की सरकार उन सभी से बदला ले रही है जो उनकी नीतियों से सहमत नहीं हैं। यह बात ध्यान देने की है कि ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला है कि सीमा आजाद और विश्वविजय किसी भी समय हथियारों या विस्फोटकों की कार्यवाइयों में लिप्त रहे हों। उनका एकमात्र ‘अपराध’ यही है कि वे अपनी रजिस्टर्ड द्वैमासिक पत्रिका ‘दस्तक’ के माध्यम से सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे थे और गंगा एक्सप्रेस वे और आपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ अभियान छेड़े हुए थे थे। प्रदेश की तत्कालीन सरकार किस तरह सीमा आजाद को दोषी सिद्ध करने के फ़िराक में थी इसका ब्यौरा तैयार किया गया है जो मुख्यमंत्री को भी बताया जाएगा । जिसके मुताबिक फैसले के पृष्ठ नम्बर 57 पर यह स्पष्ट उल्लिखित है कि रिमाण्ड के दौरान जिस सामग्री की बरामदगी की गयी थी और उसे सीलबन्द किया गया था, उसे पुलिस स्टेशन में बिना कोर्ट की अनुमति के ‘अध्ययन के उद्देश्य से’ पुनः खोला गया। लेकिन दुर्भाग्य से कोर्ट ने इस प्रक्रिया में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया। यह भी उल्लेखनीय है कि रिमाण्ड को दो बार अदालत द्वारा अस्वीकार किया गया और अन्ततः जब रिमाण्ड दिया गया तो यह गैरकानूनी तरीके से हुआ। इसमें उन सभी कानूनों का उल्लंघन हुआ जो किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को रिमाण्ड पर लेने के लिए कानून द्वारा तय हैं। अदालत ने इस स्पष्ट गैर कानूनी काम को क्यों होने दिया। क्या यह इसलिए था कि एफआईआर के बाद पुलिस ने जिन मनगढ़न्त और झूठे साक्ष्यों का उल्लेख किया था उनको रिमाण्ड के दौरान तथाकथित बरामदगी के रूप में पेश किया जा सके? सीमा के मोबाइल काल डिटेल्स को अदालत में पेश किया गया। लेकिन उनमें सिर्फ 5 फरवरी 2010 तक का ही ब्योरा था। उनमें उसकी गिरफ्तारी के दिन यानी 6 फरवरी 2010 की काॅल डिटेल्स का कोई ब्योरा नहीं है। सवाल यह है कि काल डिटेल्स को जान-बूझ कर क्यों छिपाया गया। यदि 6 फरवरी की काल डिटेल्स को अदालत में प्रस्तुत किया जाता तो इस तथ्य की पुष्टि हो जाती कि सीमा और विश्वविजय को, सीमा के नई दिल्ली से रीवा एक्सप्रेस द्वारा 6 फरवरी को सुबह 11.45 बजे इलाहाबाद उतरते ही गिरफ्तार कर लिया गया था। यानी 6 फरवरी को दोपहर 2.30 बजे हीरामनि की गिरफ्तारी के बहुत पहले। पुलिस यह कहानी क्यों गढ़ रही है कि हीरामनि द्वारा पुलिस को सीमा और विश्वविजय के बारे में दी गयी सूचना के बाद उन्होंने सीमा और विश्वविजय को 6 फरवरी को रात 9.30 बजे गिरफ्तार किया। पुलिस की क्या मजबूरी थी कि उसने जान-बूझ कर 6 फरवरी 2010 की काल डिटेल्स को छिपाया। इस तरह और भी कई तथ्य है जिससे मुख्यमंत्री को अवगत कराया जाएगा । खास बात यह है कि सीमा आजाद की गिरफ्तारी के समय समाजवादी पार्टी ने इसका पुरजोर विरोध भी किया था इसलिए मानवाधिकार संगठनों को उम्मीद है अखिलेश यादव इसे गंभीरता से लेंगे । जनसत्ता

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