Sunday, June 17, 2012

आग ,बाघ और सूखा की चपेट में पहाड

श्रोत सूखे ,कई शावक मरे , टैगोर का घर भी खाक अंबरीश कुमार भवाली ,१० जून । उत्तर प्रदेश से लगा कुमायूं का यह हिस्सा इस समय आग ,बाघ के साथ सूखे की चपेट में है । अगर जल्द बरसात न हुई तो हालत बुरी तरह बिगड सकते है। बीते चार महीने में इस अंचल में दर्जन भर बाघ मारे जा चुके है । इनमे वे सात शावक नही शामिल है जो जंगल की आग में जलकर भस्म हो गए । जंगल की आग फ़ैल रही है और जानवरों पर आफत आ गई है तो धुएं से बड़ी आबादी प्रभावित हो रही है । इस बार कुल छह हजार आठ सौ पचास हेक्टेयर क्षेत्रफल में आग लग चुकी है जो लगातार बढ़ रही है । आग के चलते जंगली जानवर जहाँ गांवों में आ रहे है वही इनका शिकार भी हो रहा है ।इस सबके साथ सूखे ने किसानो को तो तबाह कर ही दिया है आम जन जीवन भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है । पहाड के सैकड़ों प्राकृतिक श्रोत सूख गए है और जल संसथान लोगों को दोनों समय पानी की सप्लाई तक नही कर पा रहा है। कुमायूं की फल पट्टी जो पहले से सरकारी उपेक्षा का शिकार थी अब बर्बाद होती नजर आ रही है । पानी न मिलने से पहाडी फलों का आकार तो छोटा हो ही गया है साथ ही झुलसने से बर्बाद हो गए है । पिछले कई दशक कि गरमी का रिकार्ड पहाड पर भी टूट रहा है । कौसानी ,रानीखेत से लेकर नैनीताल तक में पंखे चलने लगे है । पिछले दिनों जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कौसानी आई थी तो आग और धुएं की वजह से दो दिन बाहर नही निकल पाई । बरसात न होने की वजह से आग का दायरा भी बढ़ता जा रहा है । खास बात यह है कि यह आग कई जगह प्राकृतिक है तो कई जगह अप्राकृतिक भी । लीसा माफिया से लेकर चीड देवदार की लकडी का अवैध कारोबार करने वाले भी आग लगा रहे है । यह काम भी बड़े पैमाने पर हो रहा है । तो कुछ जगह स्थानीय लोग भी घास के लालच में आग लगा देते है ताकि राख की खाद के बाद बड़ी बड़ी घास उग आए जो बीस रुपए गठ्ठर के भाव बिक जाती है । इसी तरह चीड की बल्ली और तख़्त भी चोरी छुपे बड़े पैमाने पर बेचे जाते है ।जंगल से आनी वाली चीड की एक बल्ली व तखत साढ़े चार सौ और देवदार की बारह से मिल जाती है । इसके लिए दूर जाने की जरुरत नही गांव स्तर के सरकारी कर्मचारी ही सब जुगाड कर देते है । दूर के इलाको में एक ट्रक लकडी छोड़ने की कीमत तीन हजार रुपए होती है जो सिपाही के मुताबिक ऊपर तक जाती है । पेड़ कटते है तो उनपर पर्दा डालने के लिए आग भी बड़ा उपाय है जिससे कोई सबूत ही नही बचता । यही वजह है कि पहाड की आग कई लोगों के लिए मुनाफे का सौदा भी है । सूबे की सरकार बादल गई है पर राजनैतिक संस्कृति नही बदली है । यह नही लगता कि यहाँ देश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र की सरकार है । हेमवती नंदन बहुगुणा जनाधार वाले नेता है और विजय बहुगुणा सिर्फ अफसरों के जरिए सरकार चला रहे है । यही वजह है कि उनके बड़े बड़े विज्ञापनों को जो उन्होंने जनता की राय जानने के लिए दिए सब अफसरों की लालफीताशाही के शिकार हो गए । अफसरों ने जनता को कैसे टरकाया विजय बहुगुणा को शायह इसकी भी खबर नही । इस सबके चलते सरकार का इकबाल भी नहीं बन पा रहा है । इस अंचल में किसान संकट में है और भू माफिया मस्त । विकास की बात तो छोड़ दे इस अंचल की धरोहर बच जाए यह चिंता न सरकार को है न उसके मुखिया को । से करीब तेरह किलोमीटर दूर गागर के पास एक दौर में न सिर्फ रहे बल्कि गीतांजली के कुछ हिस्से भी लिखे । पर यह जानकारी देने वाला एक बोर्ड तक कही नही मिलेगा । उनके पुराने घर को कुछ समय पहले ही दुरुस्त किया गया था जो आग में भस्म हो चुका है । पर किसी को यह जानकारी भी नहीं है । सरकार जंगलों की जिस तरह उपेक्षा कर रही है वह खतरनाक है । बाघ और जंगल पर काम करने वाले पत्रकार दिनेश मनसेरा ने कहा -यह बहुत गंभीर सवाल है । बीते चार महीने में जिस तरह कार्बेट पार्क के आस पास दर्जन भर बाघ जहर देकर मारे गए है वह खतरे की घंटी है । पर इस ओर ध्यान नही दिया जा रहा । जंगल की आग में सात शावक और तीन तेंदुए जलकर मर चुके है । अभी भी कोई इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा । दूसरी तरफ फल पट्टी के कास्तकार पंकज कुमार आर्य ने कहा - सरकार ने इस क्षेत्र के किसानो के लिए कुछ करना तो दूर शहरी इलाकों के बन्दर यहाँ और छुडवा दिए है जो रहे सहे फल थे वे भी बर्बाद हो रहे है । जबकि इस फल पट्टी को बचाए तो दूर से सैलानी भी आएंगे । पर प्रशासन तो इस खूबसूरत अंचल में जहाँ से हिमालय दिखता है एक बेंच लगाने को भी तैयार नहीं है । ऐसे में विकास क्या होगा । किसानो को पानी नही मिल रहा और बड़े निर्माण और होटलों में अंधाधुंध पानी का इस्तेमाल हो रहा है । हमारे गांव के आसपास पानी के ज्यादातर श्रोत सूख गए है । जनसत्ता फोटो -टैगोर टाप का रास्ता रवीन्द्र नाथ टैगोर का बदहाल घर

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