Saturday, June 2, 2012

तूफान में महाबलीपुरम की वह रात

अंबरीश कुमार
दक्षिण की न सिर्फ बहुत यात्रा की बल्कि अखबारी नौकरी की औपचारिक शुरुआत भी दक्षिण से हुई है । मद्रास जो अब चेन्नई हो चुका है उससे अपना नाता काफी पुराना है। जयप्रकाश नारायण की बनाई छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जुडने के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों का दौरा भी शुरू हुआ था । मद्रास तो बचपन में घर परिवार के साथ कई बार जाना हुआ पर आंदोलन से जुडने के बाद पहली यात्रा किरण और विजय के साथ हुई थी । वह यात्रा भी यादगार यात्रा रही जिसके चलते जयप्रकाश नारायण के सहयोगी शोभाकांत दास और उनके परिवार से संबंध बना । रामवृक्ष बेनीपुरी की पुस्तक में जयप्रकश नारायण के जेल के दिनों का ब्यौरा देते हुए एक बच्चे का जिक्र किया गया है जो उन्हें जेल में खाना देने आता था और खाने के साथी अंग्रेजो के खिलाफ लड़ रहे आन्दोलनकारी नेताओ का पत्र भी पहुंचाता था ।दरभंगा के रहने वाले ये वही शोभाकांत दास है जो गांधी की प्रेरणा से आजादी की लड़ाई से जुड़े और गिरफ्तार हुए बाद में सरगुजा जेल से भाग निकले थे । बाद में मद्रास आए और जड़ी बूटियों का कारोबार शुरू किया । मद्रास में रामनाथ गोयनका और शोभाकांत दास न सिर्फ साथ साथ रहे बल्कि जयप्रकाश नारायण से उन्हें मिलवाया भी । तमिलनाडु की राजनीति में किसी हिंदी भाषी का इतना असर किसी का नहीं रहा जितना उनका है और आज भी करूणानिधि उनके हर पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होते है । जयप्रकाश नारायण के जिन्दा रहते ही गुडवान्चरी में प्रभावती देवी ट्रस्ट बनाया जिसका कामकाज महिलाओं के उत्थान के लिए पच्चीस तीस गाँवो तक फ़ैल गया था और रामनाथ गोयनका इसके अध्यक्ष थे तो तमिलनाडु के कई जाने माने उद्योगपति और सामाजिक कार्यकर्त्ता भी इससे जुड़े । बाद में यही पर वाहिनी के कुछ शिविर भी हुए और मै भी वह रुका । पर आमतौर पर अपना रुकना मद्रास स्टेशन से लगे साहुकारपेट के ५९ गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट स्थित उनके बड़े से मकान में होता जिसकी पहली मंजिल पर उनका घर था (अभी भी है ) और भूतल पर दफ्तर और गोदाम । इस इलाके पर धीरे धीरे मारवाड़ियों का कब्ज़ा हो गया और दक्षिण भारतीय बहुत कम बचे । पूरा इलाका मारवाडी व्यापारियों के घर और गोदाम में तब्दील हो चुका था सिर्फ कुछ होटल और छोटे रेस्तरां मद्रासियों के थे जो इन्ही मारवाड़ियों और मजदूरी करने वाले तमिल लोगों के बूते चलते थे । बरसात होते ही इस स्ट्रीट में पानी और कीचड भर जाता और आना जाना मुश्किल हो जाता । सामने बादामी रंग की वह फियट कार भी कड़ी नजर आती जिसे शोभाकांत जी ने एक ड्राइवर समेत जयप्रकाश नारायण को दिया था और उनके निधन के बाद वह वापस आ गई थी । उस दौर में चालीस पचास हमेशा घर में रहते जिसमे ज्यादातर बिहार से आने वाले कार्यकर्त्ता और मरीज होते थे जो वेलोर में इलाज के लिए आते थे । इन सबका दक्षिण भारतीय नाश्ता बगल के होटल से आता पर दोपहर और रात में दाल भात के साथ उत्तर भारतीय सब्जी घर कि बनी ही मिलती । बाद में मद्रास सहर के बीच जो बिहार भवन बना तो ज्यादातर लोग वही ठहरते । आज भी दस रुपए किराया पर इस भवन में रुकने की व्यवस्था तो होती है साथ ही सादा भोजन भी मिल जाता है । बहरहाल अपना रुकना हमेशा ५९ गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट पर ही हुआ । शादी के बाद शोभाकांत दास का निर्देश हुआ कि तमिलनाडु से लेकर केरल और कर्णाटक कि यात्रा करूँ । उनके पुत्र प्रदीप अपने बराबर के है तो उनसे कहा कई जगह जाना होगा तो रुकने की दिक्कत न हो । प्रदीप ने कहा ,तमिलनाडु टूरिज्म के अतिथिगृह सभी जगह है उनकी बुकिंग करा दे रहा हूँ और भुगतान वहाँ पहुँचने पर कर दीजिएगा । खैर शुरुआत मद्रास , महाबलीपुरम से होनी तय हुई जिसके बाद पांडिचेरी ,मदुरै , कन्याकुमारी ,तिरुअनंतपुरम और फिर कुन्नुर और उटी तक का कार्यक्रम बना । मई का महीना था और मद्रास पहुंचे तो बरसात से सामना हुआ । प्रदीप ने बताया कि हमें चौथी मंजिल स्थित उनके कमरे में रुकना होगा और वे नीचे रहेंगे । दूसरे दिन हमें महाबलीपुरम निकलना था इसलिए कोई दिक्कत नहीं थी । खाना खाते खाते रात के ग्यारह बज चुके थे और हम संकरी सीढी से ऊपर के कमरे में पहुंचे । बरसात जारी थी । नींद आए करीब दो घंटे ही हुए थे कि आंधी का अहसास हुआ और खिडकी बंद करने उठे तो बाहर का नजारा देख डर गए । बरसात के साथ हवा की रफ़्तार तेज होती जा रही थी और ऐसा लग रहा था कि छत उड़ जाएगी । बारिश अब मूसलाधार हो चुकी थी और तूफ़ान की आवाज से डर लगने लगा । अंततः हमें नीचे जाने का फैसला किया और नीचे पहुंचे तो सभी जगे थे । प्रदीप देखते बोले ,हमें लग रहा था ऊपर आप लोग सो नहीं पाए होंगे क्योकि तूफ़ान काफी तेज है यही सोएं । खैर उठे तो भी बरसात जारी थी और हमें महाबलीपुरम निकलना था । शोभाकांत जी ने कहा -इस मौसम में जाना ठीक नहीं है ,अगर बरसात कम हुई तो गाडी छोड़ आएगीं । इंतजार करते करते करीब चार बजे बरसात कम हो गई तो हम निकल गए । करीब साठ किलोमीटर का सफर तूफान का असर दिखा रहा था और हवा में नारियल के जंगल लहराते नजर आ रहे थे । बीच बीच में समुन्द्र कि बेकाबू लहरे भी नजर आ रही थी । रुकना था फिशरमैन कोव के बगल में तमिलनाडु पर्यटन विभाग के रिसार्ट में जो समुन्द्र से लगा हुआ था । रिशेप्शन पर पहुंचे तो सन्नाटा । मैनेजर से पूछा तो उसका जवाब था -चार घने बाद तूफान महाबलीपुरम को हिट कर सकता है इसलिए सारे टूरिस्ट जा चुके है । हम सकते में क्योकि जिस गाड़ी से आए थे वह छोड़ जा चुकी थी और मोबाईल का जमाना भी नहीं था दूसरे फोन डेड थे । खैर कमरा देने को कहा तो उसने कहा - आपका कमरा सी फेशिंग है कार्नर में । कैशिरुना के पेड़ों से गुजरते हुए कमरे में पहुंचे तो बैरे ने सामने का पर्दा हटाया और समुन्द्र की तरफ की दीवार शीशे कि नजर आई और सामने समुन्द्र कि लहरे लगा कमरे के भीतर आ जाएंगी । वैसे भी कमरे से समुन्द्र दूरी पन्द्रह बीस मीटर से ज्यादा नही थी । जारी

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