Monday, June 18, 2012

फिर घिर आए बादल

अम्बरीश कुमार सुबह करीब साढ़े चार बजे किसी पक्षी की तेज आवाज से आँख खुल गई । सामने प्लम के पेड़ की तरफ से यह आवाज आई थी । तभी एक नही कई पक्षियों की आवाज सुनाई पड़ने लगी । उठकर खिड़की से देखा तो प्लम की सबसे ऊँची टहनी पर नीले रंग की एक चिड़िया नजर आई जो कुछ ही सेकण्ड में उड़कर दूर चीड के पेड़ पर जा बैठी । कल से गागर से बादलों का आना जाना तेज हो चुका था और आज सामने की घाटी में बादल ही बादल बिखरे थे । लगता है आज बरसात हो जाएगी और कही पास में हो भी चुकी है ।रात बाहर खुले में बैठकर खाना खाते समय हवा में समाई ठंढ का असर महसूस हो रहा था जबकि जहाँ बैठे थे वह जगह अपने राइटर्स काटेज से करीब दो किलोमीटर नीचे जाने पर पड़ती है और वह का तापमान एक दो डिग्री ज्यादा होता है । कुछ दूरी पर ही वरिष्ठ पत्रकार और एक्सप्रेस के अपने वरिष्ठ हिरण्मय कार्लेकर का भी घर है । घर पैदल नीचे चले तभी टेलीफोन एक्सचेंज से शर्मा जी का फोन आया नाराज होकर बोले -आपके पिताजी का सरनेम अलग है और आपकी पत्नी वर्मा इस चक्कर में पोस्टमैन सविता वर्मा के फोन का बिल आप तक नही पहुंचा पाया । मैंने उसको बताया कि इसमे मेरी क्या गलती है । खैर दिल्ली की मुख्य सूचना अधिकारी नीलम कपूर के घर के सामने की पगडंडियों से गुजरते हुए सड़क पर उतरे तो दूसरे मोड पर जयपुर से आए एक रिटायर फारेस्ट अफसर का परिवार सड़क के किनारे चीड के पेड़ों के नीचे कुर्सिय लगाये जमा था । उनकी गाडिया कुछ दूर पर थी और उनके ड्राइवर अलग बैठे थे । यह इनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है । ये अफसर हर साल जयपुर से आते है और एक काटेज लेकर करीब डेढ़ महीना यहाँ रहते है । यही सामने से नीमराना होटल की अशोक वाटिका काटेज दिखाई पड़ती है और नीचे तल्ला की आबादी । आज कई दिन बाद छाता लेकर निकलना पड़ा है क्योकि कब बरसात हो जाए भरोसा नही । बादल उमड़ रहे थे और हवा ठंढी होती जा रही थी । रास्ते में सुर्ख होते आडू देखते बन रहे थे । जिस पगडंडी से उतर रहे थे उसपर अचानक '' नमस्कार 'के संबोधन से चौका तो देखा पोस्टमैन सविता को चाय के लिए बुला रहा था और फ़ौरन फोन बिल थमाकर बोला ,कुछ समझने में गलती हो गई इसलिए दे नही पाया । खैर आगे पप्पू के घर से पहले एक बंद गोशाला में फिर किसी महिला से सविता की बातचीत शुरू हुई जो गाय का दूध दुह रही थी । गौशाला पर दरवाजा लगा हुआ था बाघ के डर से । इस पूरे इलाके में लोग बाघ से अलग ढंग का संबंध बना चुके है जो हफ्ते में एक दो कुत्ते या बकरी उठा ले जाता है । पर कोई बाघ को मारने के पक्ष में नही नजर आता । यह ऐसा गांव है जहाँ बड़े अफसर है तो गाय बकरी वाले गरीब भी । सरकारी महकमे के नामपर यहाँ बड़ा सा पोस्ट आफिस है ,पुराने ढंग का टेलीफोन एक्सचेंज है ,अस्पताल है जिसकी एम्बुलेंस लगातार मरीजो को लाती ले जाती रहती है। अब कुछ फल पकते जा रहे है जो ज्यादा से ज्यादा पन्द्रह दिन और चलेंगे खासकर प्लम ,आडू और खुबानी । इला जोशी ने पूछा है वे जबतक यहाँ आयेंगी कुछ बचेगा या नहीं ? जरुर मेरी पसंद वाले सारे फल मसलन नाशपाती ,सेब ,कीवी और बब्बूगोसा आदि जुलाई अगस्त में तैयार होते है इसलिए चिंता की बात नही है । वैसे भी बरसात में यह जगह ज्यादा रूमानी ,खूबसूरत और रहस्यमयी लगती है । अम्बरीश कुमार

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