Monday, June 4, 2012

बरसात में दौडती हुई लहरे

अंबरीश कुमार महाबलीपुरम पहुँचते पहुँचते शाम हो चुकी थी और सारी औपचारिकता के बाद कमरे में बैठे तो थकावट लगने लगी । बिजली न होने की वजह से रिसार्ट का फोन भी काम नहीं कर रहा था इसलिए रिसेप्शन पर जाने के लिए दरवाजा खोलकर बाहर आए तो समुन्द्र की गर्जना सुनाई पड़ी जो बंद कमरे में महसूस नहीं हो पा रही थी । तमिलनाडु पर्यटन विभाग के कमरे काफी लंबे चौड़े होते है और यह रिसार्ट कभी भव्य था । कमरे के सामने की पूरी दीवार शीशे कि थी जिसपर भारी सा पर्दा था जिसे हटाते ही सामने गरजता हुआ समुन्द्र तो बगल में कैशुरीना और नारियल के झुरमुठ नजर आ रहे थे । लहरे सामने से दौडती हुई आती तो लगता बिस्तर पर आकर भिगो देंगी । आसमान घने और काले बादलों से घिरा हुआ था । दाहिने हाथ कुछ दूर पर समुन्द्र तट से लगा मंदिर धुंधला सा नजर आ रहा था जिसे कई बार सूरज की चमकती रोशनी में देख चुका था । उससे कुछ दूरी पर लाईट हाउस की रोशनी नजर नही आ रही थी । थोड़ी देर बाद काफी की इच्छा हुई तो फोन डेड पड़ा मिला और मजबूरी में रिसेप्शन तक भीगते हुए जाना पड़ा जो करीब सौ मीटर दूर था । रिसार्ट का एक हिस्सा समुन्द्र से लगा हुआ था और अलग अलग काटेज थे जिसके सामने कैशुरीना और नारियल के पेड़ थे जिनपर बड़े झूले पड़े हुए थे । मैनेजर से बात हुई तो उसने रात के खाने का आर्डर देने को कहा ताकि जल्दी खाना हो सके । उससे बात कि तो बताया जो तूफ़ान आने वाला है वह के समुन्द्र तटों तक रात एक दो बजे तक पहुंचेगा क्योकि कुछ देर हो चुकी है । यह सुनकर और डर गए । हालाँकि एक दिन पहले जब मद्रास में आंधी पानी से डर रहे थे तो प्रदीप ने बताया था कि उनकी याददाश्त में तूफ़ान तो कई बार आया पर यह कोई दैवीय वरदान है जो कभी मद्रास तक नही पहुंचा हर बार दूसरी दिशा में बढ़ जाता रहा है । आज हम उसी दैवीय वरदान के भरोसे थे । खाना खाकर कुछ देर बाहर के बरामदे में बैठे और भागती हुई लहरों को देखने लगे । आसमान में घने काले बादलों के बीच बिजली कडकती तो रोशनी की एक लकीर दिखती । समुन्द्र की आवाज डरा रही थी । वैसे भी रात में समुन्द्र के किनारे अगर कोई रोशनी न हो तो आवाज से डर लगता है फिर यह तो तूफान से पहले का समुन्द्र था । तेज हवा और बरसात के चलते समुन्द्र कुछ ज्यादा ही बेकाबू होता नजर आ रहा था । महाबलीपुरम इससे पहले कई बार जाना हुआ और जब पहली बार परिवार के साथ पहुंचा था तो यह छोटे से गांव की तरह नजर आया । एक पहाडी और उसके आसपास प्राचीन मंदिरों का शिल्प देखने वाला है । शिल्पकारों ने पहाड को तराश कर उन्हें न सिर्फ मंदिरों में बदला बल्कि तरह तरह कि आकृतियों में बादल डाला है । महाभारत की कई कहानियां यहाँ शिल्प में बदली जा चुकी है । पल्लव साम्राज्य की यह ऐतिहासिक धरोहर एक नही कई बार देखने वाली है । इस पर पहले लिख चुका हूँ । महाबलीपुरम बाजार से करीब आधा किलोमीटर दूर पर वह प्राचीन मंदिर है जिसके बाहरी हिस्से पर लगातार समुन्द्र की लहरे टकराती रहती थी और कई जोड़े वह बैठकर फोटो खिंचाते नजर आते थे । पर जब पिछली बार गया तो नजारा बदला हुआ था । मंदिर परिसर घेरकर एक पार्क में तब्दील किया जा चुका था और मंदिर के बाहरी हिस्से के आगे पत्थर डालकर उसे सुरक्षित किया जा चुका था । पर अब यह गांव एक कस्बे में बदल चुका था और दक्षिण भारतीय रेस्तरां के साथ बड़ी संख्या में चाइनीज और इंटरकांटिनेंटल रेस्तरां नजर आ रहे थे । विदेशी सैलानी तो पहले जैसे ही थे पर देसी सैलानियों कि संख्या काफी ज्यादा थी । विदेशी महिलाओं को बिकनी में देख कुछ लोग हैरान जरुर थे । महाबलीपुरम में जिस रिसार्ट में रुके थे उसमे भी समुन्द्र तट का एक ऐसा हिस्सा था जहाँ कोई बाहरी नहीं आ सकता तो बगल के कई भव्य समुंदरी रिसार्ट में इन निजी समुन्द्र तटों के चलते विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में आते । पर जिस तूफ़ान में हम आए थे उसमे कोई नजर नहीं आ रहा था । रात बात करते करते कब नींद आ गई पता नहीं चला पर सुबह नींद खुली तो लगा अब तूफ़ान जा चुका है इसलिए खतरा टल गया है क्योकि सुबह के आठ बज रहे थे । इस बीच काफी लेकर आए बैरे से बात हुई तो बताया तूफ़ान टला नही है लेट हो गया है और अब दोपहर बाद आएगा । यह सुनकर फिर झटका लगा पर अब तय किया कि मद्रास से गाड़ी माँगा कर यहाँ से एक दिन पहले ही निकल लेंगे । प्रदीप से यह बता दिया और तैयार होने लगे । नाश्ते के बाद गाडी आ चुकी थी और तय किया कि महाबलीपुरम के कुछ मंदिर तो देख ले । बरसात में पहाड पर चढ़ना तो नही हुआ पर कुछ मंदिर जरुर देख लिए । इस बीच जानकारी मिली कि जो तूफ़ान इस तरफ यानी मद्रास ,महाबलीपुरम कि तरफ आ रहा था उसकी दिशा बदल गई है और वह आंध्र प्रदेश के नेल्लोर की तरफ घूम गया है । हालाँकि महाबलीपुरम में माहौल तूफ़ान का ही था । सौ किलोमीटर से भी ज्यादा रफ़्तार से चल रही हवा के बीच बरसात में बहुत देर बाहर रहा नहीं जा सकता था । अपन को पांडिचेरी जाना था पर तूफान का खतरा टलते ही तय किया कि अब इस मौसम का लुत्फ़ एक दिन और यहाँ रहकर उठाया जाए । कमरे में बैठने कि जगह कैशुरीना के पेड़ों से बंधे झूले पर लेटकर कुछ देर बारिश में भीगते हुए उस समुन्द्र को देखने लगे जो अशांत तो था पर अब खतरनाक नहीं लग रहा था । समुन्द्र तट पर कशुरीना के छोटे छोटे जंगल उगा दिए गए है जो समुन्द्री लहरों का मुकाबला करते नजर आ रहे थे । लहरे भी पन्द्रह बीस फुट की । एक लहर आती तो पास आने से पहले ही बिखर जाती पर उसके बिखरने से पहले फिर दूसरी लहर उसकी जगह ले लेती । बिखरने से पहले ये लहरे तरह तरह के सीप शंख और समुन्द्री जीव रेत पर छोड़ जा रही थी । बारिश में भीगती हुई सविता रेत पर से कुछ शंख इकठ्ठा करने में जुटी थी ।

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