Tuesday, June 19, 2012
कन्याकुमारी से तिरुअनंतपुरम की तरफ
अम्बरीश कुमार
कुछ महीने पहले केरल की यात्रा पर था तो एक दिन का कार्यक्रम कन्याकुमारी का बना क्योकि रुके तिरुअनंतपुरम में थे । केरल पर्यटन विभाग का होटल स्टेशन के पास है और काफी आरामदेह भी इसलिए तय किया कि रुकेंगे यही और घूम कर लौट आया करेंगे । वैसे भी तमिलनाडु और केरल के बीच जो बांध विवाद चल रहा था उसके चलते टैक्सी वाले शाम तक तिरुअनंतपुरम लौट आने की शर्त पर जाने को तैयार हो रहे थे । साल का अंतिम हफ्ता था और सैलानियों की भीड़ उमड़ी हुई थी । हम जिस होटल चैथरम में रुके थे उसके सामने ही टैक्सी स्टैंड था और स्टेशन भी बाएं हाथ को करीब सौ मीटर की दूरी पर । ठीक बगल में एक मीनार जैसे भवन में इन्डियन काफी हाउस । यह ऐसा काफी हाउस था जिसमे चिकन बिरयानी से लेकर रोगन जोश तक परोसा जाता है । खैर यहाँ से तिरुअनंतपुरम का मुख्य बाजार से लेकर मंदिर तक सभी दस पन्द्रह मिनट की दूरी पर है इसलिए ठहरने के लिहाज से यह जगह ठीकठाक है । अंत में तय हुआ कि सुबह कन्याकुमारी के लिए चलकर रात तक लौट आया जाए । रास्ते में त्रावनकोर के राजा का बनवाया मशहूर पदमानभापुरम महल और सुचिन्द्रम का थानुमलायन मंदिर देखा जाए । दिसंबर का अंतिम हफ्ता होने बावजूद गरमी इतनी थी कि गाडी का एसी चलवाना पड़ा । तिरुअनंतपुरम शहर से बाहर निकलते ही नारियल के पेड़ों की हरियाली से कुछ माहौल बदला और खेतों के बीच सुपारी के खूबसूरत पेड़ देखते बनते थे जो पतले तने के पर नारीयल से ज्यादा ऊँचे और सीधे खड़े नजर आते है ।नारियल के पेड़ तो कई जगह टेढ़े मेढे भी नजर आ जाए पर सुपारी के पेड़ सीधे ही नजर आए । रास्ते में छोटे छोटे बाजार जिसमे कई दुकानों पर केले और नारियल बिकते नजर आ रहे थे ।केले की भी यहाँ कई प्रजातियां होती है जिसमे पीले रंग के छिलके वाले छोटे आकर के केले से लेकर करीब एक फुट का लाल केला भी शामिल है । सुबह बिना नाश्ता किए निकले थे इसलिए महल देख कर बाहर निकलते ही केले लिए और नारियल पानी पीकर प्यास बुझाई । राजा त्रावनकोर का यह महल वास्तुशिल्प के लिहाज से अद्भुत है । लकडियों का काम देखते ही बनता है जिसमे सागौन से लेकर कटहल तक की लकडी का इस्तेमाल हुआ है । महल में ही संग्रहालय है जिसमे उस समय की मूर्तियों से लेकर कलाकृति भी प्रदर्शित की गई है । इस महल को जल्दी जल्दी देखने में भी डेढ़ घंटे से ज्यादा लग गए । इससे पहले तिरुअनंतपुरम में राजा रवि वर्मा के संग्रहालय को देखकर रोमांचित था पर यहाँ का संग्रहालय इस अंचल के इतिहास ,कला और संस्कृति की झलक भी दिखा देता है ।
महल देखकर हरे भरे खेतों के बीच से होते हुए कन्याकुमारी की तरफ बढे । कन्याकुमारी पहले कई बार आना हुआ है पर बच्चों के साथ पहली बार जा रहा था । सबसे पहले परिवार के साथ गया था तब विवेकानंद मेमोरियल के बड़े से अतिथिगृह में रुकना हुआ था । आज भी याद है मदुरै से बस से कन्याकुमारी के लिए चले थे और पहुँचते पहुँचते रात के दस बज चुके थे ।तब तो कन्याकुमारी एक गांव जैसा था और वह भी रात में दस बजे तक सो जाने वाला । भूख सभी को लगी हुई थी और अतिथिगृह के मैनजर से खाने की व्यवस्था के बारे में पूछा तो उसका विनम्र जवाब था -आपने पहले से जानकारी नही दी थी इसलिए अब नही बन पायेगा । पर गुजरात से एक ग्रुप आ रहा है उनकी संख्या ज्यादा नही हुई तो आप लोगो को भी खाने पर बुला लेंगे । करीब चालीस मिनट बाद ही उन्होंने खाने पर बुला लिया और गर्म गर्म चावल के साथ सांभर,रसम ,छाछ और सब्जी सब थी । उस खाने का स्वाद कभी भूलता नही है । जारी
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