Tuesday, April 8, 2014

मुलायम गढ इटावा था हयूम का कार्यक्षेत्र

मुलायम गढ इटावा था हयूम का कार्यक्षेत्र दिनेश शाक्य इटावा . आजादी पूर्व यमुना नदी के किनारे बसे इटावा जिले मे आजादी के दीवानो से निपटने के लिए बनाई गई रक्षक सेना की कामयाबी से प्रेरित हो कर देश के सबसे बडे राजनैतिक दल काग्रेंस की स्थापना की गई थी लेकिन आज इटावा मे काग्रेंस के नाम लेवा उगुलियो पर गिने जाने लायक रह है और इटावा की पहचान मुलायम सिंह के नाम से होने लगी है। महाभारत कालीन सभ्यता से जुडे इटावा की पहचान आज भले ही सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के बदौलत हो रही हो लेकिन आजादी पूर्व इटावा को हयूम के नाम से जाना जाता था। हयूम कोई और नही हयूम वही अग्रेंज अफसर है जिनकी रक्षक सेना से प्रेरित हो कर देश के सबसे बडे राजनैतिक दल काग्रेंस की स्थापना की गई। काग्रेंस के विरोध के बलबूते पर देश के शीर्ष राजनीतिज्ञ के तौर स्थापित हो चुके सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का गढ उनकी ताकत के कारण इतना मजबूत हो चला है कि करीब तीन दशक से काग्रेंस घरातल पर आ गई है। सबसे हैरत की बात यह है कि आज मुलायम के गढ मे जिस कांग्रेस को दुर्दशाग्रस्त होते हुए देखा जा रहा है कि आजादी पूर्व इटावा मे ही काग्रेंस की स्थापना की संरचना स्थानीय रक्षक सेना के तौर पर की गई थी। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के गढ इटावा मे करीब 30 साल पहले काग्रेंस ने अपना परचम फहराया था उसके बाद से लगातार काग्रेंस अपना परचम फहराने की कोशिश कर रही है लेकिन मुलायम के गढ मे काग्रेंस को कामयाबी नही मिल रही है। सबसे हैरत की बात तो यही है कि चुनाव नतीजो के सामने आने के बाद लगातार इटावा और आसपास की सात संसदीय सीटो पर काग्रेंस के जनाधार मे गिरावट देखी जा रही है। एलन ऑक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम ! एक ऐसा नाम है जिसके बारे मे कहा जाता है कि उसने गुलामी के दौर मे अपने अंदाज मे ना केवल जिंदगी को जिया बल्कि अपनी सूझबूझ से देश को काग्रेस के रूप मे एक ऐसा नाम दिया जो आज देश की तस्वीर और तदवीर बन गया है।एलन ऑक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम को वैसे तो आम तौर सिर्फ काग्रेस के सस्थापक के तौर पर जाना और पहचाना जाता है लेकिन ए.ओ.हयूम की कई पहचाने रही है जिनके बारे मे ना तो देश का हर नागरिक जानता है और ना ही देश की सबसे बडी पार्टी काग्रेस के नेता और कार्यकर्ता जानते है। इस नाम मे बहुत कुछ छिपा हुआ है जिसे सही से जानने के लिये के देश की गुलामी के दौर मे जाने की जरूरत पडेगी। बात शुरू करते है यमुना और चंबल नदी के किनारे बसे उत्तर प्रदेश के छोटे से जिले इटावा की। 4 फरवरी 1856 को इटावा के कलक्टर के रूप मे ए.ओ.हयूम की तैनाती अग्रेज सरकार की ओर से की गई। हयूम की एक अग्रेज अफसर के तौर पर कलक्टर के रूप मे पहली तैनाती है। ए.ओ.हयूम इटावा मे अपने कार्यकाल के दौरान 1867 तक तैनात रहे। आते ही हयूम ने अपनी कार्यक्षमता का परिचय देना शुरू कर दिया। 16 जून 1856 को हयूम ने इटावा के लोगो की जनस्वास्थ्य सुविधाओ को मददेनजर रखते हुये मुख्यालय पर एक सरकारी अस्पताल का निर्माण कराया तथा स्थानीय लोगो की मदद से हयूम ने खुद के अंश से 32 स्कूलो को निर्माण कराया जिसमे 5683 बालक बालिका अध्ययनरत रहे। खास बात यह है कि उस वक्त बालिका शिक्षा का जोर ना के बराबर रहा होगा तभी तो सिर्फ 2 ही बालिका अध्ययन के लिये सामने आई। हयूम ने इटावा को एक बडा व्यापारिक केंद्र बनाने का निर्णय लेते हुये अपने ही नाम के उपनाम हयूम से हयूमगंज की स्थापना करके हाट बाजार खुलवाया जो आज बदलते समय मे होमगंज के रूप मे बडा व्यापारिक केंद्र बन गया है। 1857 के गदर के बाद इटावा मे हयूम ने एक शासक के तौर पर जो कठिनाईया आम लोगो को देखी उसको जोडते हुये 27 मार्च 1861 को भारतीयो के पक्ष मे जो रिपोर्ट अग्रेज सरकार को भेजी उससे हूयूम के लिये अग्रेज सरकार ने नाक भौह तान ली और हयूम को तत्काल बीमारी की छुटटी नाम पर ब्रिटेन भेज दिया। एक नंबवर 1861 को हूयूम ने अपनी रिर्पोट को लेकर अग्रेज सरकार ने माफी मागी तो 14 फरवरी 1963 को पुनः इटावा के कलक्टर के रूप मे तैनात कर दी गई। हूयूम को अग्रेज अफसर के रूप मे माना जाता है जिसने अपने समय से पहले बहुत आगे के बारे मे ना केवल सोचा बल्कि उस पर काम भी किया। वैसे तो इटावा का वजूद हयूम के यहा आने से पहले ही हो गया था लेकिन हूयूम ने जो कुछ दिया उसके कोई दूसरी मिसाल देखने को कही भी नही मिलती एक अग्रेज अफसर होने के बावजूद भी हूयूम का यही इटावा प्रेम हूयूम के लिये मुसीबत का कारण बना। हयूम की इतनी लंबी चौडी दास्तान इटावा से जुडी हुई जिसे कितना भी कम करके आंका जाये तो कम नही होगा। हयूम की इस दास्तान को सुनाने के पीछे भी एक वजह यह है कि हयूम ने इटावा मे अपने कार्यकाल के दौरान आज की भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस की स्थापना का खाका खींचा और इटावा से जाने के बाद स्थापना भी की । साल 1858 के मघ्य मे हयूम ने राजभक्त जमीदारों की अध्यक्षता में ठाकुरों की एक स्थानीय रक्षक सेना का गठन किया,जिसका उददेश्य इटावा में शांति स्थापित करना था। अपने उददेश्य के मुताबिक इस सेना को यहां पर शांति स्थापित करने में काफी हद तक सफलता मिली थी। रक्षक सेना की सफलता को देखते हुये 28 दिसंबर 1885 को मुबंई में ब्रिटिश प्रशासक ए.ओ.हयूम ने काग्रेंस की नीवं डाली जो आज देश की एक प्रमुख राजनैतिक पार्टी हैं। इटावा में स्थानीय रक्षक सेना के गठन की भी बडी दिलचस्प कहानी है। 1856 में ए.ओ.हयूम इटावा के कलक्टर बन कर आये। कुछ समय तक यहां पर शांति रही। डलहौजी की व्ययगत संधि के कारण देशी राज्यों में अपने अधिकार हनन को लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरद्ध आक्रोश व्याप्त हो चुका था। चर्बी लगे कारतूसों क कारण 6 मई 1857 में मेरठ से सैनिक विद्रोह भडक था। उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली से लगे हुये अन्य क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी ने अत्यधिक संवेदनशील घोषित कर दिये थे। ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भारतीयों की संख्या भी बडी मात्रा में थी। हयूम ने इटावा की सुरक्षा व्यवस्था को घ्यान में रख कर शहर की सडकों पर गश्त तेज कर दी थी। 16 मई 1857 की आधी रात को सात हथियारबंद सिपाही इटावा के सडक पर शहर कोतवाल ने पकडे। ये मेरठ के पठान विद्रोही थे और अपने गांव फतेहपुर लौट रहे थे। कलक्टर हयूम को सूचना दी गई और उन्हें कमांडिंग अफसर कार्नफील्ड पर गोली चला दी लेकिन वी बच गया। विद्रोहियों ने कार्नफील्ड पर गोली चला दी लेकिन वह बच गया.इस पर क्रोधित होकर उसने चार को गोली से उडा दिया परन्तु तीन विद्रोही भाग निकले। इटावा में अपने कलक्टर कार्यकाल के दौरान हयूम ने अपने नाम के अग्रेंजी शब्द के एच.यू.एम.ई.के रूप में चार इमारतों का निर्माण कराया जो आज भी हयूम की दूरदर्शिता की याद दिलाते है। स्कॉटलैंड से चुने जाने वाले एक ब्रिटिश सांसद की संतान एलन ऑक्टेवियन ह्यूम 1857 के गदर के दौरान इटावा के कलेक्टर थे और वहां उनकी क्रूरता की कुछ कहानियां भी प्रचलित हैं। लेकिन बाद में उनकी पहचान एक अडियल घुमंतू पक्षी विज्ञानी और शौकिया कृषि विशेषज्ञ की बनी। पर्यावरणीय संस्था का संचालन करने वाले डा.राजीव चौहान बताते है कि ए.ओ.हयूम को पक्षियो से खासा प्रेम काफी रहा है। इटावा मे अपनी तैनाती के दौरान अपने आवास पर हयूम ने 165 से अधिक चिडियो का संकलन करके रखा था एक आवास की छत ढहने से सभी की मौत हो गई थी। इसके अलावा कलक्टर आवास मे ही बरगद का पेड पर 35 प्रजाति की चिडिया हमेशा बनी रहती थी। साइबेरियन क्रेन को भी हयूम ने सबसे पहले इटावा के उत्तर सीमा पर बसे सोंज बैंडलैंड मे देखे गये सारस क्रेन से भी लोगो को रूबर कराया था। अब बात करते है कि इटावा मे काग्रेंस की बदहाली पर। 31 अक्टूबर 1984 को अपने ही सुरक्षाकर्मियो के हाथो मारी गई प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी लहर के बाद मुलायम सिंह यादव के गढ इटावा मे संसदीय चुनाव मे काग्रेंस के चौधरी रधुराज सिंह को 1984 मे विजय मिली थी। इंदिरा लहर का असर यह हुआ कि काग्रेंस के चौधरी रधुराज सिंह को एक लाख 84 हजार चार को चार मत मिले और वे अपने करीबी प्रतिदंदी लोकदल के धनीराम वर्मा से पराजित हो गये। धनीराम वर्मा को इस चुनाव मे 161336 मत मिले इस तरह से चौधरी रधुराज सिंह 23068 मतो से विजये पाये। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद यह एक ऐसा चुनाव था जिसमे काग्रेंस को विजय मिली लेकिन उसके बाद काग्रेंस आज तक जीत के लिए तरस रही है। सबसे हैरत की बात यह है कि इस चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव की ताकत लगातार बढती ही चली गई और काग्रेंस को जनाधार धरासाई होता चला गया। अगर इंदिरा लहर की बात करे तो इटावा के आसपास कन्नौज सीट से काग्रेस से शीला दीक्षित,फर्रूखाबाद से खुर्शीद आलम खान,मैनपुरी से बलराम सिंह यादव,जलेसर से कैलाश यादव,फिरोजाबाद से गंगाराम और एटा से लोकदल के महफूज अली को जीत मिली थी। 1984 मे मुलायम सिंह यादव के गढ के आसपास काग्रेंस का ही तिलस्म काबिज था लेकिन एटा मे काग्रेंस के मुशीर खा मुलायम के सिपहसालार लोकदल के महमूद अली से चित हो गये। इंदिरा लहर मे मुलायम गढ मे काबिज हुई काग्रेंस मंडल चमत्कार मे बुरी तरह से ध्वस्त हो गई। 1989 के चुनाव मे मंडल लहर चरम पर हो चुकी थी ऐसे मे इटावा संसदीय चुनाव मे जनता दल से राम सिंह शाक्य 214264 ने कांग्रेस के सत्यनारायण दुबे 171249 को पराजित करने मे कामयाबी पाई। कुछ ऐसा ही कन्नौज की सीट पर हुआ जहा पर काग्रेंस की शीला दीक्षित को जद के छोटे सिंह यादव ने पराजित कर दिया। छोटे सिंह ने 220840 और शीला को 167007 मत मिले। फर्रूखाबाद मे जनता दल के संतोष भारतीय 165452 ने काग्रेंस के सलमान खुर्शीद 157968 को हराया। मैनपुरी मे मुलायम सिंह यादव के गुरू और जनता दल के प्रत्याशी उदयप्रतापसिंह 239660 ने कांग्रेस के कैलाश चंद्र यादव 155369 को पराजित किया। जलेसर मे जनता दल के मुलतान सिंह 221590 ने काग्रेंस के कैलाश यादव 123694 को पराजित किया। फिरोजाबाद से रामजी लाल सुमन 283774 ने काग्रेंस के गंगाराम 110948 को पराजित किया लेकिन मंडल लहर का असर एटा जैसी सीट पर नही दिखा क्यो कि यहा से भाजपा के महादीपक सिंह शाक्य 143442 ने काग्रेंस के सलीम शेरवानी 135969 को हराया यहा पर जनता दल का तीसरे नंबर पर रहा है। 1991 मे राममंदिर लहर के तौर पर सब जानते है इस दौर मे हुए संसदीय चुनाव मे मुलायम सिंह यादव इटावा संसदीय चुनाव मे बसपा के कांशीराम को चुनाव मैदान मे उतरवा करके सहयोग किया परिणाम स्वरूप कांशीराम 141290 की जीत हुई लेकिन मुलायम सिंह यादव के दल जनता पार्टी के प्रत्याशी रामसिंह शाक्य 82624 तीसरे नंबर पर जा पहुंचे लेकिन काग्रेंस के श्री शंकर तिवारी 74149 पर चौथे नंबर पर सिमट गये। कन्नौज मे भी काग्रेंस के प्रत्याशी चंद्र भूषण सिंह को 68480 मत ही मिले लेकिन जनता पार्टी के छोटे सिंह 17594 मत पा कर विजई हुये। मैनपुरी मे काग्रेंस के कैलाश चंद्र यादव को 93159 वोट मिले लेकिन जीत हुई जनता पार्टी के उदयप्रताप सिंह 126463 को मिली। फिरोजाबाद मे काग्रेंस के आजाद कुमार कर्दम 66183 वोट ही पा सके। एटा मे भी काग्रेंस के कैलाश यादव 56939 वोट मिले लेकिन जलेसर सीट से तो काग्रेंस अपना उम्मीदवार ही खडा करने की हिम्मत नही दिखा सकी। काग्रेंस की इज्जत बचाने का काम अगर किसी ने किया तो वो निकले फर्रूखाबाद के सलमान खुर्शीद जिन्होने जीत हासिल की अन्यथा पूरी मुलायम बेल्ट मे काग्रेंस चित ही रही है। 1996 के चुनाव का अगर हम ज्रिक करे तो मुलायम के गढ मे काग्रेंस चारो खाने चित हुई इटावा और आसपास की सातो सीटो पर काग्रेंस बुरी तरह से चित हुई है। इटावा संसदीय चुनाव मे काग्रेंस के नरेंद्र नाथ चतुर्वेदी आये जो 14743 मत ही पा सके,इसी तरह से कन्नौज से रामअवतार दीक्षित पर काग्रेंस ने जोर अजमाया उन्हे सिर्फ 9957 वोट मिले। मैनपुरी से कैलाश यादव को 14993,फिरोजाबाद से गुलाब सेहरा को 5947,एटा से गिरीश चंद्र मिश्रा को 24940,जलेसर से बलराम सिंह यादव को 72917 वोट मिले अगर इस चुनाव मे कोई सही हालात मे रहा तो वो है फर्रूखाबाद के सलमान खुर्शीद जिनको 97261 लोगो का जनसर्मथन रहा है। 1998 मे तो 1996 से बुरी हालत रही काग्रेंस के प्रत्याशियो की इटावा मे काग्रेंस के सत्यप्रकाश धनगर 10875,कन्नौज से प्रतिमा चतुर्वेदी को 17144,मैनपुरी से शिवनाथ दीक्षित को 6699,जलेसर से अवधेश यादव को 7505,एटा से के.पी.सिंह को 7662,फिरोजाबाद से बच्चू सिंह को मात्र 5642 ही वोट मिले। काग्रेंस के उम्मीदवारो को मिले वोट कही से भी नही लग रहे है कि यह देश की वजूद वाली पार्टी है इस चुनाव मे फर्रूखाबाद के सलमान खर्शीद ने जरूर 180531 वोट पा कर काग्रेंस की इज्जत को बचाया। 1999 मे इटावा से सरिता भदौरिया को चुनाव मैदान मे उतारा गया इनके पति काग्रेंस महासचिव अभयवीर सिंह भदौरिया की हत्या कर दी थी परिणाम स्वरूप चुनाव मैदान मे उतरने पर कुछ सहानुभूति मिली सरिता भदौरिया को 51868 वोट मिले। सभी राजनैतिक दलो ने इस वोट को काग्रेंस का नही सरिता भदौरिया का जनाधार माना। कन्नौज से दिग्विजय सिंह को 27082,मैनपुरी से मुंशीलाल को 15139,जलेसर से जावेद अली को 53717,एटा से राजेंद्र सिंह को 71892 वोट ही मिले फिरोजाबाद से काग्रेंस को कोई उम्मीदवार ही चुनाव मैदान मे उतरने के लिए नही मिला। फर्रूखाबाद से सलमान खुर्शीद ने अपनी बीबी लुईस खुर्शीद को चुनाव मैदान मे उतारा जहा से उनको 155601 वोट मिले। 2004 मे इटावा मे काग्रेंस से राजेंद्र प्रसाद जिनको कोई जानता पहचानता नही था को चुनाव मैदान मे उतारा गया राजेंद्र प्रसाद अपनी ओर कोंग्रेसियो को तमाम मेहनत मशक्कत के बाद 9482 वोट ही पा सके। इसी तरह से कन्नौज से विनय शुक्ला को 10501,मैनपुरी से राजेंद्र जादौन को 9897,एटा से रविन्द्र को 22442,फिरोजाबाद को 28105,जलेसर से शिवराज सिंह को 12735 वोट ही मिले लेकिन पहले की ही तरह फर्रूखाबाद से लुईस खुर्शीद को 177380 वोट मिले। पिछले लोकसभा चुनाव यानि साल 2009 मे इटावा से काग्रेंस को कोई उम्मीदवार नही मिला क्यो कि काग्रेंस हाईकमान ने महानदल से गठबंधन करने के बाद रिटार्यड आयकर अधिकारी शिवराम दोहरे को चुनाव मैदान मे उतारा जिनको किसी भी काग्रेंसी ने सहयोग नही किया परिणाम स्वरूप काग्रेंस रूपी महानदल को मात्र 5824 वोट ही मिल पाये। मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव के निर्वाचन क्षेत्र मैनपुरी और कन्नौज से कोई उम्मीदवार नही काग्रेंस को चुनाव मैदान मे उतरने के लिए नही मिला। फिरोजाबाद से राजेंद्र पाल को 6340,एटा से महादीपक शाक्य को 25037 मत मिले है। हासिये पर आ चुकी काग्रेंस की दुर्दशा के कारण जो भी माने जाये लेकिन हकीकत मे यही कहा जा सकता है कि देश स्तरीय राजनैतिक दल की दुर्दशा जरूर चिंता का विषय माना जायेगा। जनादेश न्यूज़ नेटवर्क

No comments:

Post a Comment