Friday, April 4, 2014

कांग्रेस से लेंगे तेलंगाना का बदला सीमांध्र के लोग

अंबरीश कुमार विशाखापत्तनम। सीमांध्र के लोग तेलंगाना का बदला कांग्रेस से लेने जा रहे हैं। इस तटीय अंचल में कांग्रेस मुकाबले से ही बाहर हो चुकी है। वजह आंध्र को बांटकर तेलंगाना बनाना है। आंध्र से तेलंगाना निकलने के बाद जो बचा है उसे कोस्टल आंध्र या सीमांध्र कहा जाता है। एक झटके में जिस राज्य की भौगोलिक और राजनैतिक पहचान बदल दी गयी हो उसे समझने के लिये इस तटीय अंचल में आना चाहिए। तेलंगाना और कांग्रेस को लेकर हर तरफ नाराजगी। विशाखापत्तनम के रुशिकोंडा समुद्र तट को आभिजात्य वर्गीय लोगों का नया ठिकाना माना जाता है और यहाँ पर बहुत सारे रिसार्ट है। काम करने वाले कर्मचारी आसपास के इलाकों से आते हैं और देर रात तक वापस लौटते हैं क्योंकि यह इलाका शहर से दूर होने के बावजूद शांति वाला इलाका रहा है। पर तेलंगाना राज्य बनने के बाद यहाँ के लोगों में अजीब सी असुरक्षा का भाव नजर आता है। यहाँ के आफशोर रेस्तरां के कर्मचारी गोपालन ने कहा एक फ़्लाइओवर ब्रिज बनाने में पांच छह साल लगते हैं तो एक नई राजधानी बंनने में कितना साल लगेगा। राजधानी बनी तो यह शहर राजधानी की तमाम बुराइयाँ लेकर आएगा। अपराध बढ़ेगा, महंगाई बढ़ेगी और लोगों की शांति ख़त्म हो जायेगी। इस सबके साथ वह हैदराबाद हाथ से निकल जायेगा जो आंध्र के विकास की पहचान है। यही नजरिया इस अंचल के ज्यादातर लोगों का है। हैदराबाद शिक्षा, स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाओं के साथ कारपोरेट जगत का एक मुख्यालय भी है। इस अंचल के हाथ से यह सब निकल गया है तो नाराजगी है जिसे दूर होने में समय लगेगा। पर फिलहाल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसकी कीमत देनी पड़ेगी। कांग्रेस ने सीमान्ध्र में जो ग्यारह उम्मीदवार उतारे हैं उसमें तीन नए चेहरे हैं। पर कांग्रेस की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। एक कांग्रेस कार्यकर्ता जी राजगोपाल मानते हैं कि इस बार पार्टी को बड़ा झटका लग सकता है। इसका सीधा फायदा चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी और जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस को मिलने जा रहा है। तटीय तेलंगाना का यह इलाका काफी संपन्न है और पिछले कुछ सालों में विशाखापत्तनम का विकास तेजी से हुआ है। यह कभी मछुवारों की बस्ती थी तो आज तेजी से उभरता महानगर। साफ़ सुथरी और चौड़ी सड़कों के साथ यह तटीय इलाका सैलानियों को भी भा रहा है जो अरकू जैसे हिल स्टेशन से कुछ दूरी पर समुद्र तट पर पहुंचा देता है। कई जगह बात चीत हुयी तो साफ़ लगा कि इस महानगर में छोटे-मोटे काम करने वाले लोगों की पहली पसंद टीडीपी ही है। जगन मोहन रेड्डी को सारे करिश्मे के बावजूद एक ईमानदार नेता लोग नहीं मानते हैं पर कई समीकरण ऐसे है जिसपर ईमानदारी प्राथमिकता से खिसक जाती है। एक ऑटो ड्राइवर ने कहा-यहाँ भी वोट की कीमत तय है और फिलहाल एक वोट का बाजार भाव तीन हजार रुपए है। यह कीमत वाईएसआर आसानी से दे सकती है क्योंकि उसके पास बहुत पैसा है। यहाँ पर लोगों में जब आक्रोश हो तो कांग्रेस को हराने वाला नेता ही महत्वपूर्ण माना जायेगा। यही वजह है कि इस अंचल में मुख्य मुकाबला टीडीपी और वाईएसआर में सिमट गया है। टीडीपी को कुछ हद तक भाजपा से तालमेल और नरेंद्र मोदी के हिंदुत्व का भी मिल सकता है। शिक्षक मोहम्मद माजिद के मुताबिक जिस प्रकार की मजहबी गोलबंदी देश के कुछ भागों में हो रही है उसका असर इस इलाके पर भी है पर बहुत ज्यादा नहीं। इधर गैर हिंदू मतदाताओं की संख्या भी कम नहीं है इसलिये भाजपा से तालमेल का अगर फायदा है तो उसकी कुछ कीमत भी नायडू को देनी पड़ सकती है। हालाँकि विजयनगरम से लेकर विशाखापत्तनम के बीच जिन लोगों से भी बातचीत हुई वे टीडीपी की बढ़त मान रहे हैं और उसके बाद वाईएसआर का नंबर है। कांग्रेस अगर एक दो सीट पा जाये तो वह भी उसके लिये बहुत होगा। इस सब से यह तो साफ़ हो ही गया कि विकास का सवाल और विकसित राजधानी को खोने का बदला तटीय इलाकों के लोग कांग्रेस से लेने जा रहे है। राज्य तो बहुत बने पर यह पहली बार है कि एक राज्य अपने एक हिस्से के खोने का बदला लेने जा रहा हो। जनादेश न्यूज़ नेटवर्क

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