Friday, April 4, 2014

संघ कुन्बे को तबाह करेंगे मोदी

संघ कुन्बे को तबाह करेंगे मोदी हिसाम सिद्दीक़ी भारतीय जनता पार्टी को जनम देने वाले राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने नरेन्द्र मोदी को आगे बढ़ाया, इतना आगे कि अब वह किसी के कंट्रोल में नहीं रहे। अपनी इज्जत बचाए रखने के लिए भले ही आरएसएस चीफ मोहन भागवत अपने खास प्रचारको की मीटिंग में बंगलौर में यह कह आए हो कि मोदी-मोदी की रट लगाना आरएसएस का काम नहीं है, हकीकत यही है कि अब नरेन्द्र मोदी अपने कुन्बे के सबसे बड़े ओहदेदार आरएसएस चीफ मोहन भागवत को भी अपने से बहुत छोटा समझने लगे है। इसीलिए तो बंगलौर से दिल्ली आकर भागवत को अपने तर्जुमान राम माधव से बयान दिलाना पड़ा कि मीडिया में जो खबरें आई हैं आरएसएस चीफ ने ऐसा नहीं कहा था। भारतीय जनता पार्टी में आज राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज समेत किसी भी लीडर में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह मोदी से अपनी मर्जी मुताबिक कोई बात भी कर सके। जिस किस्म की डिक्टेटरशिप इस वक्त नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी में चला रखी है उससे साफ दिखता है कि नरेन्द्र मोदी ही पूरे आरएसएस कुन्बे के लिए ‘‘भस्मासुर’’ साबित होने वाले हैं। मुल्क के जो मुसलमान और सेक्युलर जेहन लोग इस फिक्र में है कि नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने से उन्हें कोई बड़ा झटका लगेगा उन्हें अब इस ख्याल को तर्क कर देना चाहिए क्योंकि मोदी अपने अलावा आरएसएस और बीजेपी में किसी को रहने ही नहीं देंगे। वह खुद ही अपनी पूरी की पूरी तंजीम तबाह कर देंगे। सिर्फ नरेन्द्र मोदी ही नहीं उनके साथ काम करने वाले अमित शाह की तानाशाही का आलम यह है कि बीजेपी सदर राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के रामपुर से अपने एक करीबी मुसलमान को और नई दिल्ली लोकसभा हलके से एमजे अकबर को टिकट देना चाहते थे लेकिन अमित शाह इन दोनों को टिकट देने के लिए तैयार नहीं हुए यह बात खुद राजनाथ सिंह ने अपने करीबियों से कही है। बीजेपी के कई सीनियर लीडरान खुद ही बताते हैं कि नरेन्द्र मोदी के चीफ मिनिस्टर बनने के तकरीबन साल भर बाद दो हजार दो में गुजरात असम्बली का जो एलक्शन हुआ था उसी वक्त से मोदी ने अपनी मर्जी मुताबिक टिकट देने की कोशिश की थी उस वक्त चूंकि पंडित अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, सुषमा स्वराज और प्रमोद महाजन जैसे कई ताकतवर लोग पार्टी में मौजूद थे इसलिए 2002 के असम्बली एलक्शन में मोदी पूरी तरह अपनी मनमानी नहीं चला सके थे लेकिन उसके बाद 2005 और 2012 के जो असम्बली और 2009 के लोकसभा एलक्शन हुए उन सभी में नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ और सिर्फ अपनी मर्जी से ही टिकट दिए वह मीटिंग में जरूर आते थे लेकिन किसी से राय मश्विरा किए बगैर अपनी जेब में रखी फेहरिस्त दे दिया करते थे और फिर फेहरिस्त में किसी किस्म की तरमीम वह बर्दाश्त नहीं करते थे। पूरी पार्टी ही मोदी की फेहरिस्त पर अपनी तस्दीक की मोहर लगाने पर मजबूर हुआ करती थी। अब सूरतेहाल और भी ज्यादा खराब हो चुकी है। आज बीजेपी, आरएसएस और उससे जुड़ी हुई तमाम तंजीमों की कोई हैसियत बाकी नहीं रह गई है अब मोदी खुद को सबका भगवान बना चुके हैं। वह जो चाहते हैं करते हैं कोई उनके सामने बोलने तक की हिम्मत नहीं रखता है। एक तरफ आरएसएस कुन्बा हिन्दुत्व का दम भरता है दूसरी तरफ मोदी आरएसएस कुन्बे के सभी बूढ़ों को बेइज्जत करके अपनी तंजीम से बाहर निकलने को ठीक उसी तरह मजबूर करते जा रहे हैं जैसे कुछ बदकिस्मत लोग अपने बूढ़े वाल्दैन को ‘‘ओल्ड ऐज होम्स’’ (बूढ़ों के यतीमखानों) में मरने के लिए छोड़ देते हैं। भारतीय जनता पार्टी में लालकृष्ण आडवानी की हैसियत मोदी के वालिद जैसी रही है। आडवानी ने ही एक जिम्मेदार वालिद की तरह नरेन्द्र मोदी को न सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी को नजर अंदाज करके मोदी को पहली बार वजीर-ए-आला बनाया और गुजरात दंगो के बाद जब वजीर-ए-आजम की हैसियत से वाजपेयी ने मोदी को हटाने का फैसला किया तो आडवानी अड़ गए और मोदी को हटने नहीं दिया। पहली फुर्सत में नरेन्द्र मोदी ने अपने उन्हीं वालिद जैसे सीनियर लीडर को बेइज्जत करके उन्हें उनकी औकात बता दी। सवाल यह है कि जो शख्स अपने ‘‘बाप’’ या बाप जैसे सरपरस्त का वफादार नहीं हुआ उस शख्स से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह पूरे मुल्क और मुल्क के अवाम का वफादार होगा या दूसरे लोगों की इज्जत करेगा। ऐसे बेटों को समाज में नालायक औलाद कहा जाता है। जब से बीजेपी और आरएसएस में नरेन्द्र मोदी कुछ ज्यादा ताकतवर हुए हैं तभी से उन्होंने एक एक कर संघियों को ठिकाने लगाने का काम भी किया है। अब चूंकि वह सबसे ज्यादा ताकतवर बन चुके हैं इसलिए सबसे सीनियर स्वंय सेवक और बीजेपी में सबसे बड़े कद के समझे जाने वाले अपने ही गुरू लालकृष्ण आडवानी को भी उनकी औकात बताने में जरा सी भी देर नहीं की। एक ही झटके में उन्होंने आडवानी को बता दिया कि अब उनकी कोई हैसियत बाकी नहीं रह गई है। आडवानी उनके नजदीकी हरेन पाठक, वाजपेयी के नजदीकी बालू शुक्ला जैसों को तो नरेन्द्र मोदी ने अब ऐन लोक सभा एलक्शन के वक्त हैसियत बताने और किनारे लगाने का काम किया है इससे पहले वह दीगर कई पुराने संघियों को अपने रास्ते से हटा चुके हैं जो लोग मोदी का मुआजना (तुलना) हिटलर से करते हैं वह तो हिटलर की तौहीन करते हैं लेकिन इतना सच है कि उनके काम करने का तरीका ठीक वैसा ही है जैसा किसी डिक्टेटर और बड़े अण्डरवल्र्ड सरगना का हुआ करता है। उन्हें इस बात में यकीन है कि अगर केाई मुकाबले में आ जाए या किसी से खतरा महसूस हो तो उसे अपने रास्ते से पहले ही मरहले में हटा दिया जाए। भले ही मुखालिफ को कत्ल क्यों न कराना पड़े। गुजरात में शुरूआती दिनों में हरेन पाड्या एक ऐसे संघी थे जो कभी मोदी के लिए सियासी खतरा बन सकते थे। वह दुनिया से ही उठा दिए गए। उनकी बीवी और बूढ़े वालिद सालों तक चीखते रहे कि उनके कत्ल के पीछे बहुत बड़ी साजिश है और वह साजिश नरेन्द्र मोदी की जानिब से रची गई है लेकिन उन दोनों की किसी ने नहीं सुनीं। आरएसएस के सीनियर प्रचारक हुआ करते थे संजय जोशी, पहले तो केशुभाई पटेल की जगह पर जोशी को ही गुजरात का चीफ मिनिस्टर बनाए जाने का फैसला बीजेपी ने किया था। उन्होंने चीफ मिनिस्टर बनने से यह कहकर इंकार कर दिया था कि वह आरएसएस तंजीम (संगठन) का ही काम करना चाहते हैं तभी आडवानी ने मोदी को चीफ मिनिस्टर बनवाया था। संजय जोशी की उंगली पकड़ कर मोदी ने प्रचारक की शक्ल में चलना सीखा था। सबसे पहले उन्हीं संजय जोशी को मोदी ने अपनी नफरत का शिकार बनाया। उनकी एक खुफिया सीडी मैदान में आ गई जिसमें उन्हें किसी खातून के साथ सेक्स में मुलव्विस दिखाया गया था। कई सालों तक संजय जोशी गुमनामी में खोए रहे फिर बाहर आए तो उन्हें बीजेपी में ओहदा मिल गया। मुंबई में पार्टी का अधिवेशन हुआ तो मोदी ने शर्त लगा दी कि जब तक संजय जोशी को पार्टी से निकाला नहीं जाता वह मुंबई अधिवेशन में शरीक नहीं होंगे और संजय जोशी को हटाया गया। जोशी जैसे बड़े स्वंय सेवक व प्रचारक को ठिकाने लगाने के बाद मोदी के हौसले और भी बढ़ गए फिर तो इस शख्स ने बीजेपी और आरएसएस में किसी को कुछ समझा ही नहीं। नरेन्द्र मोदी के ताकतवर होने से ठीक पहले तक आरएसएस की दंगा ब्रिगेड बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद का हर तरफ जिक्र हुआ करता था। 2002 के गुजरात दंगो में मोदी ने इन दोनों को भरपूर इस्तेमाल भी खूब किया। अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया जैसों के जहरीले बयानात के बगैर अखबार और टीवी चैनलों के न्यूज बुलेटिन अधूरे रहते थे। बजरंग दल के नाम पर गुण्डई करने वाले हर वक्त मुल्क के कोने कोने में गड़बड़ियां कराने के लिए हमेशा तैयार दिखते थे। आज इन दोनों का क्या हाल है और सिंघल व तोगड़िया अपने किन बिलों में छुपे हैं कोई नहीं जानता। इनकी गुमनामी के पीछे भी नरेन्द्र मोदी ही हैं। 2002 का असम्बली एलक्शन जीतने के बाद ही मोदी ने साफ कर दिया था कि गुजरात और मुल्क में एक ही बड़ा फिरकापरस्त और दंगाई रह सकता है, जो वह खुद हैं। अब प्रवीण तोगड़िया और सिंघल जैसों का क्या काम है। सिंघल और तोगड़िया को मोदी ने बर्फ में लगाया तो विश्व हिन्दू परिषद किसी जिले की सतह की भी तंजीम नहीं रही। इस तरह नरेन्द्र मोदी ने मुल्क पर पहला एहसान तो विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल जैसी दंगाई ब्रिगेड्स को खत्म करके किया। यह दोनों फिरकापरस्त तंजीमें दहशत की अलामत बन चुकी थी और आरएसएस व भारतीय जनता पार्टी की बहुत बड़ी ताकत हुआ करती थीं। इनसे भी पहले गुजरात में फिरकापरस्तों की सबसे बड़ी ताकत समझे जाने वाले केशुभाई पटेल को भी मोदी इस हद तक पहुंचा चुके थे कि उस बेचारे बूढ़े को राज्य सभा तक नहीं पहुंचने दिया। उसी गुजरात से बेजमीन शख्स अरूण जेटली राज्य सभा पहुंचा दिए गए तो दूसरी रियासतों से स्मृति इरानी और हेमा मालिनी तक पहुंच गई लेकिन केशुभाई पटेल को नहीं पहुंचने दिया गया। केशुभाई पटेल, राजेन्द्र राणा और शंकर सिंह वाघेला समेत आज गुजरात में एक मोदी के अलावा बाकी कोई पुराना संघी किसी जिले की सतह तक का लीडर नहीं बचा है। विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, संजय जोशी और गुजरात के सीनियर स्वंय सेवकों को ठिकाने लगाने के बाद नरेन्द्र मोदी को मौका मिला तो आडवानी, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी समेत बीजेपी की मरकजी कयादत का एक जो भ्रम था उसे भी मोदी ने तोड़ दिया है अब उनके साथ राजनाथ सिंह ही बचे हैं वह भी उस वक्त तक जब तक उनका इस्तेमाल है। इन्हीं हकायक की बिना पर हम यकीन के साथ कह सकते हैं कि कुदरत ने शायद नरेन्द्र मोदी के हाथों बीजेपी और आरएसएस का किला तबाह करने का फैसला किया है।

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